मेरा आज का दिन भी बाकी दिनों के जैसे ही समान्य ही बीत रहा था ,मैं खाना खाने के बाद पढ़ाई करने जा रही थी मगर एक बेहद ही वीभत्स व क्रूरतापूर्ण घटना ने मेरे मन को विचलित कर दिया । वैसे तो भारतीय समाज में शायद ऐसी घटनाएं आम सी हो चली हैं और मैं परिचित भी हो चुकी हूँ थोड़ा बहुत समाचारों या अखबारों के माध्यम से मगर जब अखबारों में पढ़ती थी तो इतना भयानक नहींं महसूस होता था लेकिन जब ऐसी घटना मेरे पड़ोस के गांव में हुई तो मेरे मन का विचलन स्वाभाविक हैं।
मेरे पड़ोस के गांव में आज सुबह एक लड़के व एक लड़की के शव प्राप्त हुए है , सिर्फ़ उनको मारा गया होता तो तकलीफ़ कम होती ,मगर उनके साथ काफी बर्बरता भी की गई।
लड़के के दोनों पैर काट दिए गए और लड़की का चेहरा बिगड़ते हुए उसकी नाक काट दी गई । पर इतनी बड़ी घटना के बाद कोई खास चर्चा नही हो रही ,सड़क पर पुलिस की गाड़ी का हार्न नही बज रहा ,कहीं कोई शोर-शराबा नहीं ,न कोई रोना-धोना, जानते हैं क्योें ?क्योंकि इज्ज़त की बात है और हमारे समाज मे तो सदियों से जान से महत्वपूर्ण इज्ज़त मानी गई है।
मुझे नहीं पता उन शवों की शिनाख्त हो पायी या नहीं , मुझे नहीं पता उनके घर वालों में से कोई सामने आया कि नहीं, मुझे नहीं पता पुलिस केस बनेगा कि नहीं ,मुझे नहीं पता उनकी मांओं ने अपना कलेजा कैसे कठोर किया होगा ,मुझे नही मालूम एक बाप जिसने अपनी लाडली को कन्धें पर बिठा दुनिया दिखाई थी वही कैसे उसकी दुनिया उजाड़ सकता है , मुझे नहीं पता कि जिस भाई को राखी बांध अपनी रक्षा का वचनलेती थी उसने कैसे अपने हाथों जान उसकी जान ली होगी?
मगर मैं इतना जरुर जानती हूं कि प्रेमी युगल की इस हत्या ने चिथड़े लपेटे खड़े भारतीय समाज की इज्ज़त को फिर से उजागर कर दिया, मैं इतना जरुर जानती हूँ कि ये हत्या सियासत की थाली में गर्मागर्म नहींं परोसी जाएगी ,मैं इतना जानती हूँ कि ये किसी अखबार के पहले प्रष्ठ पर छपकर आपके घर तक नहींं पहुँचेगी,मैं इतना जरुर जानती हूँ कि आदमी ने भले ही अपने जिस्म के लिए नैतिकता के चोले सिल लिए हो मगर उसके अन्दर का जानवर आज भी नंगा हैं ,मैं बस इतना जानती हूँ कि ये न इस वीभत्स समाज की पहली घटना हैं और न आखिरी ।
यार किस समाज में जी रहे है हम लोग ?जहाँ अपनी मर्ज़ी से जीने की जिद्द करने पर मार दिया जाता है ।
किसी से प्यार करना ,किसी के साथ जिन्दगी बिताना ये स्वयंसे लिया गया फैसला होता है यह हक हमें हमारे देश के संविधान ने भी अनुच्छेद 21 केद्वारा दे रखी हैं तो इसे गलत बताने वाला ये समाज कैसे हो सकता है क्या समाज संविधान से भी ऊपर है ?
जुकाम बुखार की तरह इज्ज़त के नाम पर अपने ही बच्चों की बलि चढ़ाने की ये बीमारी भी आम होती जा रही हैं ,बेनाज महमूद, सरोज राजस्थानी (परिवर्तित), अमीना सईद व शराह सईद (और भी न जाने कितने नाम जो शायद किसी ने सुने ही न हो ) इन लोगों की गलती बस इतनी कि कोई अपने ब्वायफ्रेंड के साथ लिव इन मे रहने लगी ,किसी ने अपने पिता की पसन्द के लड़के से शादी को इन्कार किया ,तो किसी ने दूसरी जाति के लड़के से प्यार किया ।पर इस गलती की सजा बहुत बड़ी मिली – मौत ।
Honour killing जो अपने सम्मान के लिए लोग करते है ,क्या वाकई इससे इज्जत बचती है ? किसी का किसी को पसन्द करना तो इज्ज़त के खिलाफ नही हैं लेकिन किसी का खून करना न सिर्फ़ इज्ज़त बल्कि इन्सानियत के भी खिलाफ है।
रब माफ करीं,खाप ,आक्रोश ,तलवार,NH10 और भी ऐसी कई मूूवीज़ ने इस मुद्दे को संवेदन शीलता से उठाया हैं कई लेेेख लिखें गए इस पर और कई कहाानियां भी आयीीं लेकिन इस अपराध को रोकने केलिए लोगों की सोच मे बदलाव लाना चाहिए ,इसके लिए जरूरी हैं कि पहले हम प्रेम का सही अर्थ समझे फिर दुसरो को भी समझाए खासकर उन मां बाप को जो सच्ची मोहब्बत को स्वीकार नहीं रहें और झूठी इज्जत को नकार नहींं रहें । मेरा यह लेेेख पढ़ने वाले हर व्यक्ति को इस अन्याय के खिलाफ एक बार तो समझने व समझाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इज्जत और मोहब्बत की इस लड़ाई में इन्सानियत हार रही है यार।