सोमवार, शुक्रवार ,कभी तीज कभी त्यौहार ……
पेट पर पत्थर बान्धकर जो गुजारा है चलो उस वक़्त को
वापस मॉंगतें हैं यार !
त्यौहारों का सीजन चल रहा था दिपावली हो गई ,नरक चतुर्दशी हो गई और भाई दूज भी हो गया अब पुरुष प्रजाति सोमवार को अपने काम पर चली जाएगी ,बाल प्रजाति स्कूल मगर स्त्री प्रजाति …! जी नहीं! स्त्री प्रजाति कहीं भी नहीं जाएगी क्योंकि उनके त्यौहार अभी भी बाकी है , बाकी है…? अगर उनके बाकी है तो औरो को क्यों नहीं बाकी ..? शायद इसलिए क्योंकि ये त्यौहार खास स्त्रियों के लिए ही बनाया गया था सदियों पहले किसने बनाया क्यों बनाया , इसपर तो बहुत कहानियां हैं मगर मतलब सबका इतना ही है मॉं के भूखे रहनें से छठ मईय्या खुश रहेंगी और बच्चों की सेहत सुधरी रहेगी ।
छठ मईय्या का ये कठिन महापर्व महिलाएं(हिन्दू) खुशी -खुशी मनाती है (हालॉंकि पुरुष भी लेकिन 100% में से मात्र 0.001% ही ) और चार दिन तक सख्त नियमों का पालन करते हुए भूख-प्यास को मारतीं जातीं हैं और सदियों से चली आ रही एक साजिशाना परम्परा को जिंदा करतीं जातीं हैं।
ये कोई अकेला व्रत नहीं है जो हिन्दू स्त्रियां रखती हैं अगर आप पञ्चांग उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि साल के 365 दिन में से हिन्दू स्त्रियां 65 दिन तो व्रतों में ही निकाल देतीं हैं कभी सोमवार का व्रत अच्छे पति के लिए , गुरूवार का व्रत घर में धन सम्पदा के लिए , शनिवार को रोग-दोष की मुक्ति को , बेटी की शादी में व्रत , बड़ी बहू होने के नाते व्रत और नवरात्र व्रत तो रहतीं ही हैं पर ये सब ऐसे व्रत हैं जो मान्य नहीं हैं ,मतलब ये कि इनकी कीमत ज्यादा नहीं हैं ।
लेकिन करवाचौथ , भाईदूज ,छठ माता , अहोई माता ऐसे ही कुछ और व्रत हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है इसी लिए इनकी किमत ज्यादा है। करवाचौथ व्रत की मान्यता है कि ये व्रत जो सुहागिनें रखती हैं उनके पति की उम्र लम्बी होतीं हैं ,भाईदूज का व्रत करने से भाई स्वस्थ रहता है और अहोई माता व छठ मईय्या का व्रत करने से पुत्र दीघार्यु होतें हैं।
चलिए ठीक है व्रत रखना तो अच्छी बात होतीं हैं परम्पराओं को जीवित रखना भी अच्छी बात होती है ,अपनो की फिक्र करना भी अच्छी बात होती है ,शुभ होता है व्रत रखना लेकिन अगर इतना ही अच्छा इतना ही शुभ होता है तो पुरुष भी क्यों नहीं रखते ये सभी व्रत ? क्या परम्पराओं को चलाने की जिम्मेदारी स्त्रियों की ही है पुरुषोंं की नहीं ? क्या सन्तान सिर्फ स्त्री की ही कही जाती है पुरुष कुछ नहीं होता उनका ? क्या स्त्री को ही पति ,पुत्र , भाई इत्यादि की फिक्र करनी चाहिए पुरुष को भी पत्नी , पुत्री ,बहन के लिए व्रत करना चाहिए ! फिर सारे व्रत स्त्रियों के हिस्सें में ही क्यों आऐं ?
The second sex की लेखिका सिमोन द’बअवा के अनुसार तो इन व्रतों को एक सोची समझी साजिश करार दिया जा सकता है ताकि स्त्रियों केे पल्लू में एक और जिम्मेदारी बन्धींं जा सकेे और पुरुषों से आगे चलनेे का उनका ख्वाब कहीं पीछे रह जाए ।
ये कहना गलत होगा कि औरतों से ये व्रत जोर-जबरदस्ती से या दबाव में लेकर रखवाए जातें हैं । ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं , ये सब वो अपनी मर्ज़ी से करतीं हैं ताकि उनके पति या पुत्र को दीघार्यु प्राप्त हो । लेकिन क्या सच में एक औरत के भूखे रहने से एक पुरुष को दीघार्यु प्राप्त हो जाती है? नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता अगर ऐसा होता तो कुवाॅंरों की आयु तीस -पैतीस से ज्यादा नहीं होतीं ,अगर ऐसा होता तो जिनकी पत्नियां व्रत नहीं रखती वो लम्बे समय तक इस धरा का आनंद न उठाते और अगर ऐसा होता तो जिनकी मॉं व बहन नहीं हैं उनका क्या होता आप खुद सोच सकतें हैं एक अन्तिम बात हालॉंकि बहुत हास्यप्रद है लेकिन अगर सच में ऐसा होता तो पत्नियां नाराज होकर मायके जाने के बजाय पति को धमकी देतीं कि अगर तुमनें मेरी बात नहीं मानी तो अगली बार करवाचौथ का व्रत नहीं करुंगी और तुम्हारी उम्र घटा दूंगी ,अगर ऐसा होता तो दुनिया कम-से-कम भारत पर तो जरुर स्त्रियों का शासन होता।
स्त्री में तब अहंम् ब्रह्मास्मि अस्ति की भावना आना गलत नहीं होता । इसीलिए स्त्रियों मार्मिक दिल का कहा हुआ जरुर करिए मगर वही जो आपके तार्किक दिमाग ने भी सुझाया हो।