नए साल मे जहां पूरी दुनिया जश्न मे डूबी हुई थी , सारे धर्म सारी जातियां भूलकर लोग एक दूसरे को गले लगाकर नए साल के आगमन की बधाइयां दे रहें थें , वहीं दूसरे गृह से आए निम्न कोटि के कुछ प्राणी नए साल पर साम्प्रदायिकता फैलाने के प्रयास मे लगे हुए थें , बिना ये सोचे कि उनके इस कुकर्म की वजह से कितनी महिलाओंं व लड़कियों का मानसिक उत्पीड़न होगा वो किस हद तक परेशान हो सकती हैं।
मैं इस बात से ज़रा भी हैरान नहीं हूँ कि इन सब में एक लड़की का भी अहम रोल रहा क्योकि जब किसी व्यक्ति की आँखों पर साम्प्रदायिकता की पट्टी कस जाती है तो वह सही क्या है और क्या गलत है यह नहीं देख पाता,उनके लिए बस वही सही होता है जो उसके धर्म में मान्य हो । ना जाने क्या सोच कर कुछ युवाओं ने ये बुल्ली बाई ऐप बनाया और अपनी संकीर्ण सोच का परिचय दिया।
बुल्ली बाई ऐप, एक ऐसा ऐप जो मुस्लिम समुदाय की महिलाओंं को टारगेट करता है , उनकी फोटो नीलाम करता है और फिर उन्हें ट्रोल करता है अभद्र भाषा का प्रयोग करता है । मुझे समझ नहीं आता की ऐसा करके इन युवाओं (श्वेता सिंह विशाल कुमार झा, नीरज….आदि साजिशकर्ता) को क्या मिला , वे सिर्फ अपने विरेचन के लिए अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए पूरे के पूरे एक समुदाय को आहत कर सकते है ? अरे भाई धर्म है, धर्म के नाम पर तो लोग लाशें बिछा देते है तो समुदाय विशेष को आहत करना तो बस मामूली सा खेल है कौन सा भला मारपीट की बस थोड़ा सा उन्हें तंग ही तो किया … जो शायद उनके लिए सौ बार मरने के सामान था।

मैं कुछ खास नहीं कहना चाहती हूँ बस इतना की महिलाएं चाहे जिस समुदाय की हो अगर उन्हें मानसिक या शारीरिक क्षति पहुंचाई जाती है , या अपशब्द कहे जाते है तो ना सिर्फ उस समुदाय की अन्य महिलाओंं को बुरा लगता है बल्कि सही मायने मे अपने अंदर स्त्रीत्व का भाव समेटे हर स्त्री को बुरा लगता है व सच्चे पुरुष भी इससे आहत होते हैं।
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