भारतीय राजनीति के निम्न स्तर का दौर !

                                 भारतीय राजनीति के निम्न स्तर का दौर !

इन दिनों चुनाव प्रचार जोरो-शोरों पर हैं,आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल निकला है , धज्जियों के साथ-साथ मर्यादाएं भी तार-तार की जा रही है , आक्षेप सहे जा रहें हैं, कटाक्ष किये जा रहें हैं दूसरों की नाकामयाबियॉं दिखाईं जा रहीं हैं, और खुद की नाकामयाबियॉं छुपाईं जा रहीं हैं । कुल मिलकर सब प्रतिद्वंद्वी लगे हुए हैं जनता को बेवकूफ बनाने में।

राजनीति
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जनता को बेवकूफ बनाना किसे कहते हैं ये तो आप अच्छे से जानते ही होंगे खैर ये छोड़ते हैं जो मुख्य मुद्दा है आज का उसी पर ही बात करते हैं।

 

भारतीय राजनीति में एक दौर ऐसा भी रहा है जहाँ सियासत चाहे कितनी भी कट्टर क्यूँ ना चल रही हो इज्ज़त आपस में कमतर नहीं होती थी। चुनावी समर में चाहे कितने भी व्यंग बाण चलें लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाता था कि किसी के आत्मसम्मान को ठेस ना पहुंचे ।

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लेकिन आज  की राजनीति का दौर माशाअल्लाह….

आज कल टीवी और रेडियो पर एक ऐड बहुत चलता है जिसकी टैग लाइन है “2017 से पहले लडकीयां दिन में भी घर से निकलने में डरती थीं लेकिन 2017 के बाद से रात मे भी सुरक्षित हैं फर्क साफ है ” ऐसी ही तर्ज पर ऐसे ही कई और ऐड भी बने है।

लेकिन मैं सोच रही हूँ की क्या सच में उस राज्य में फर्क साफ देखा जा सकता है जिस राज्य का कर्ता-धर्ता अपने राज्य को उस वक्त अकेला छोड़ दूसरे राज्य मे वोट बटोरने में लगा हुआ हो जब राज्य में हाथरस , उन्नाव जैसे जिलों में बेटियों के साथ बलात्कार हो रहें हों?

क्या मौजूदा सरकार इसी फर्क की बात कर रही है ? इस थीम के सभी ऐड ऐसे ही है जिसमें पिछली सरकार और मौजूदा सरकार के बीच फर्क साफ दिखाया जा रहा है। लेकिन मुझे पिछली सरकार और इस सरकार में तो कोई खास फर्क तो नहीं दिखा है,लेकिन मुझे पिछले दशक की राजनीति और आज की  राजनीति में फर्क जरूर नज़र आया।

पहले की राजनीति में जहाँ इतना ख्याल रखा जाता था कि सामने वाले प्रतिद्वंद्वी की उम्र क्या है? योग्यता कितनी है , ओहदा कौन सा है ? इंसान कैसा है? उसका अनुभव कितना है ? और तो और सार्वजनिक मंचो पर इतने ही शब्द कहे जातें थें कि एक-दुसरे के सामने पड़ जाने पर शर्मिंदा ना होना पड़े ।

लेकिन आज की भारतीय राजनीति की पहचान ही’ अमर्यादित भाषा, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश, एक-दुसरे की निजी जिन्दगी को सार्वजनिक करना, ये तक ना देखना की सामने वाले की उम्र, अनुभव ,व्यक्तित्व ,क्या है, कैसा है ? हो गई है।

राजनीति
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ये भी नहीं सोचा जा रहा कि जिस व्यक्ति के बारे में मैं ऐसा बोल रहा /बोल रही हूँ अगर वो कभी सामने आ गया तो? लेकिन ये सोचे भी क्यों सोच तो गिरी राजनीति की गन्दी दीवारों में दब के रह गई है और संस्कार पार्टी के पास गिरवी पड़े हुए हैं। फिर प्रतिद्वंद्वी को आजकल प्रतिद्वंदी समझा ही कहाँ जाता है उसे तो सीधे देशद्रोही , दुश्मन, समझा जाता है।

 

इसीलिए अटल बिहारी वाजपेई जी ने कहा भी है कि-

 

 

तो भला कैसे कोई देशभक्त गद्दार को सम्मान दे , कैसे अदब दिखाए , क्योंकि आज का समय वहीं आ गया है जिसके बारे में अटल जी ने दशक पहले ही बता दिया था।

विपक्षी गद्दार बनने की ओर अग्रसर हैं और पक्ष तानाशाही की ओर बढ़ रहा है।

अब आप लोग देखिये की आप समझदार हैं , या सियासत द्वारा अघोषित बेवकूफ हैं , या आपकी आंख-कान बंद है , या सरकार आपके विवेक से खेल रही है।

आप चाहे जो भी हो मैं चाहे जो भी हूँ , लेकिन हमें फर्क साफ साफ नज़र आना चाहिए क्योकि अगर हमें फर्क साफ नज़र नहीं आया तो हो सकता हैं कि हम ……..।

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