मैंने आदम की समझदारी को कभी दोष दिया ही नहीं, मैं तो नादान हौवा को मानती हूँ। -Awa
8 मार्च यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस …। मतलब साल भार के तानो के लिए , गुस्से के लिए , दर्द के लिए , थकान के लिए और आधे अधूरे कुछ ख्वाब जो आज भी आँखों में चुभते हैं उनके लिए मार्च का ये एक दिन । इस एक दिन से दुनिया स्त्री के साल भर के हिसाब की बराबरी करना चाहती है पर क्या ये संभव है? ये तो बिलकुल ऐसा हो गया कि किसी बच्चे से दो हज़ार का नोट लेने के लिए आप उसे बीस की नोट थमा दे।
चलिए वो तो बच्चा है , उसे दो हज़ार और बीस की नोट में फर्क समझ नहीं आया , लेकिन एक स्त्री तो इतनी बच्ची नहीं हो सकती कि उसे एक साल और एक दिन में फर्क समझ में ना आए, और बात सिर्फ एक साल की ही होती तो जैसे- तैसे निकल ही जाता लेकिन ये साल नहीं आपकी जिन्दगी हैं। जो आपको गुजारनी है… बितानी है.. कि जीनी है ये तय आपको करना पड़ेगा। उन लोगों की छोड़ ही देतें हैं जो आपको कष्ट देतें हैं बात मैं आपकी करुँ तो क्या खुद को प्यार करतीं हैं आप ? अपनी कीमत पता हैं आपको?
अच्छा चलिए यही बताइए जिन्दगी को जीने के लिए क्या करतीं हैं आप? …मैं बताऊँ..मैं सिर्फ एक ही फंडा मानती हूँ कि अगर जीना है तो क्यों अपनी लाइफ की चाभी किसी और को देना ?खुद की ही मालकिन बनिए, खुद को ही Follow कीजिए। जानती हूँ मेरे लिए जितना लिखना आसान है शायद आपके लिए उतना करना आसान ना हो , लेकिन लाइफ का मज़ा ही क्या जो कुछ कठिन चीजों से पाला ना पड़े।
खुद ही से जीतना है मुझे,खुद ही को हराना है… मैं भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अंदर एक जमाना है।
जिन्दगी की कठिनाईयों को challenge करते हुए आगे बढ़ीये ताकि साल का एक दिन नहीं बल्कि पूरा साल ही आपको अपना सा लगे और फिर उसके बाद जिन्दगी। दुनियादारी भूल के बस आप प्रतिदिन अपनी जिन्दगी को एक खुशनुमा दिन देने की कोशिश करें यकीं किजिये ये खूबसूरत दिन कब खूबसूरत साल में बदल जाएगा और खूबसूरत साल खूबसूरत जिन्दगी में पता भी नहीं चलेगा। लेकिन सारा फोकस सिर्फ खुद पर ही नहीं आसपास की औरतों पर और बच्चियों पर भी रखिये , क्यूँकि औरतें खुश्बू की तरह होतीं हैं उनकी महक हर जगह बिखरती हैं मतलब जो भी उनके पास जाएगा उनका होकर रह जाएगा। अपने आसपास ऐसी औरतों या लड़कियों को ढूंढिए जो जिंदा हो लेकिन उनके ख्वाब मर चुके हो, ऐसी औरतों को परवाज़ दीजिए, कुछ सपने दीजिये और कुछ हिम्मत भी ।
वो शख्स जो जताता है मिल्कियत तुझपर… जा ज़रा उसे उसकी औकात दिखा दे! -Awa
अब वक्त आ गया है की एक औरत दूसरी औरत को समझे , एक दूसरे के दर्द को बाँटें , क्योंकि जो साल भर आप झेलती हैं सामने वाली भी उतना ही झेलती हैं । ऐसा नहीं है की उसका साल 365 के बजाय 265 का होता है , और आपका 365 के बजाय 380 का । तो समझदार बनो मेरी जान एक दूसरे का साथ दो हर पैमाने पर स्कूल में, कॉलेज में, भीड़ में ,अकेले में सुख में , दुःख में , और हाँ एक दूसरे से जलन करना बंद करो पहले इससे आपका क्या फायदा होता हैं पता नहीं लेकिन हमारी इसी कमी का फायदा पुरुषवर्ग को काफी मिलता है ।
अरे हम लडकीयां हैं कोई तंदूर नहीं जो जलतीं रहें।
याद रखिये जिस दिन एक औरत ने दूसरी औरत का साथ देना शुरू कर दिया उस दिन पुरुषों की उल्टी गिनती शुरू। आपकी हिम्मत आपका सहारा शायद हर दिन महिला दिवस ले आए।