‘फ्रिंस’ एक अद्भुत व भयानक रचना, An amazing and terrible creation frince. last part

 पिछले भाग में आपने पढ़ा , जयंत शंकर को बताता है कि उसकी पुतली को कुत्तों ने नोच डाला था जिसके बाद वो उस पुतली को देवदारु के नीचे दफन कर देता है। फ्रिंस की कहानी खत्म हो जाने के बाद दोनों रात के 10 बजे सोने चलें जाते हैं। आधी रात को शंकर की नींद कुछ गिरने के कारण टूट जाती है तो वह देखता है कि जयंत जग रहा है। जब वह उसकी तबियत पूछता है तो जयंत कहता है कि कमरे में कोई आया था। पूरा घर खोजने के बाद भी शंकर को कुछ नहीं मिला अंत में जयंत की रजाई पर गोल गोल छापे मिली तो शंकर ने कहा की बिल्ली होगी सो जाओ , और फिर खुद भी सोने चला गया। लेकिन अगली सुबह जयंत को देखकर लगा कि वो रातभर सोया नहीं , घूमने में भी उसका मन नहीं लगा। उसे परेशान देख जब बार-बार शंकर ने पूछा क्या हुआ तो उसने कहा कि बिस्तर पर बिल्ली नहीं फ्रिंस के पैरों के निशान थें । अब आगे- 

फ्रिंस एक अद्भुत व भयानक रचना पार्ट-1

फ्रिंस एक अद्भुत व भयानक रचना पार्ट-2

कमरे के अंदर आने पर मैंने कहा , 12 बज चुके हैं अब स्नान कर लेना चाहिए।

जयंत ने कहा, पहले तू हो आ। और फिर पलंग पर लेट गया। स्नान करते-करते मेरे दिमाग में एक विचार आया जयंत को स्वाभाविक स्थिति में लाने का यही एक उपाय है। जो विचार आया वह यह है कि अगर पुतली को किसी खास स्थान पर दफनाया गया है और उस जगह का पता है तो मिट्टी खोदने पर पुतली न सही लेकिन कुछ ना कुछ अंश को मिलेगा ही। कपड़े-लत्ते ज़मीन के तले तीस साल बाद नहीं रह सकते , लेकिन धातु की चीज़ जैसे- फ्रिंस के बेल्ट का बकलस, कोट के बटन , अगर बरकरार हों तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं। जयंत को अगर दिखाया जाय कि उसकी लाडली पुतली की केवल वे ही चीजें बची हुई हैं और बाकी सब मिट्टी में समां गई हैं तो हो सकता है उसके मन से यह उट-पटांग धारणा दूर हो जाए। अगर ऐसा नहीं किया जाए तो वह हर रोज़ अजीब-अजीब सपना देखेगा और सुबह उठकर कहेगा कि फ्रिंस मेरी छाती पर चल रहा था। इस तरह उसका दिमाग कहीं खराब ना हो जाए। 

यह बात जब मैंने जयंत को कही तो लगा ,उसे मेरा विचार पसंद आया है ।कुछ देर तक खामोश रहने के बाद वह बोला,’ खोदेगा कौन ? कुदाल कहाँ मिलेगा ? मैंने हंसकर जवाब दिया ,’जब इतना बड़ा बागीचा है तो माली होगा ही और माली रहने का मतलब है कुदाल भी है। उसे हम कुछ बख्शीश दे तो मैदान की थोड़ी सी ज़मीन खोदने में वह आनाकानी नहीं करेगा।’

जयंत तुरंत राजी हो गया । एक-दो बार जब और डांट पिलाई तो नहा-धो भी आया। खाना खाने के बाद हम बागीचे की तरफ के बरामदे में कुर्सी पर बैठ गये।हम दोनों के सिवा सर्किट हाऊस में कोई नहीं है। तीन बजने पर एक पगड़ीधारी आदमी हाथ में झारी लेकर बागीचे में आया। उम्रदराज आदमी है बाल , मूंछें और गलपट्टे सफ़ेद हो चुके है।

तुम कहोगे या मैं कहूँ? जयंत के सवाल पर मैंने अश्वासन की मुद्रा में हाथ उठाकर इशारा किया और कुर्सी छोड़कर सीधे माली के पास चला गया। 

मिट्टी खोदने के प्रस्ताव पर शुरू में माली ने मुझे संदेह से देखा। समझ गया ऐसा प्रस्ताव इसके पहले किसी ने उसके सामने नहीं रखा। उसके ‘काहे बाबू ‘ सवाल पर मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर मीठे स्वर में कहा ‘कारण अगर न ही जानो तो हर्ज क्या है ?पांच रुपए बख्शीश दूँगा जो कह रहा हूँ कर दो। कहना न होगा कि इस पर माली सिर्फ राजी ना हुआ बल्कि दाँत निपोरकर सलामी ठोंकी और ऐसा भाव दिखाया जैसे वो हमारा ख़रीदा हुआ गुलाम हो।

बरामदे में बैठे जयंत को मैंने इशारे से बुलाया । निकट आने पर मैंने देखा ,उसका चेहरा अस्वभाविक तौर पर बुझा हुआ है । मुझे उम्मीद हुई खोदने पर पुतली का कुछ ना कुछ अंश मिल ही जाएगा। इस बीच माली कुदाल ले आया। हम तीनो देवदारु के पेड़ के नीचे आने लगे।

पेड़ के तने के लगभग डेढ़ हाथ दूरी की ओर इशारा करके जयंत बोला ,’यहीं’।

ठीक-ठीक याद है न ? मैंने पूछा। जयंत ने कुछ नहीं कहा बस माथे को हिलाकर हामी भरी। कितना नीचे गाढ़ा था ? एक बित्ता नीचे तो होगा ही!

माली बेझिझक उस जगह को खोदने लगा। खोदते-खोदते पूछा कि ज़मीन के नीचे कोई धन-दौलत है या नहीं ?अगर है तो उसे भी हिस्सा मिलेगा या नही ? यह बात सुनकर यद्यपि मैं हँस पड़ा लेकिन जयंत के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।अक्टूबर में बूँदी में गर्मी नहीं पड़ती लेकिन फिर भी जयंत के कॉलर का नीचे का हिस्सा भीग गया है । वह एकटक ज़मीन की ओर देखें जा रहा है। माली कुदाल चलाये जा रहा है , अभी तक पुतली का कोई निशान क्यों नहीं दिख रहा ?

एक मयूर की तेज आवाज सुनकर मैंने उधर सर घुमाया ,तभी जयंत के गले से एक अजीब चीख निकली और मेरी आँखे तत्क्षण उसकी ओर चली गयीं। दूसरे ही क्षण अपने कांपते हाथ को धीरे से बढाकर तर्जनी से गड्डे की ओर इशारा किया। 

उसके बाद एक अस्वाभाविक स्वर में उसने पूछा, वह क्या चीज़ है? माली के हाथ से कुदाल गिर गई। ज़मीन की ओर देखने पर मैंने जो देखा उसके फलस्वरूप भय,विस्मय और अविश्वास से मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।

 

देखा , गड्डे के अंदर धूल से भरा हुआ दस-बारह इन्च का एक सादा-समूचा नरकंकाल हाथ-पैर फैलाये चित पड़ा है। 

यह कहानी अब यही समाप्त होती है। मैंने इसे भागों में बाँट कर लिखा है लेकिन अगर आप इसे सत्यजित राय जी की किसी कहानी वाली किताब से सिलसिलेवार तरीके से पढ़ेंगे तो और भी डर और सिहरन पैदा हो जाएगी आपके शरीर में। सोच कर देखिये ,’ बेजान गुड़िया के रूप में एक जिंदा आदमी का शरीर ?

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