अभी तक आप लोगों का पढ़ा कि बचपन के दो दोस्त शंकर और जयंत राजस्थान गए हैं छुट्टियां मनाने । जहां जयंत बूँदी शहर को चुनता है सबसे पहले घूमने के लिए क्योंकि वहाँ जयंत बचपन में रह चुका था। जयंत शंकर को अपने बचपन की बातें बता रहा था कि अचानक उसे एक पुतली याद आ गई जो उसे उसके मामा ने दी थी । जब भी उस पुतली को उसके नाम फ्रिंस से पुकारो तो लगता कि वो भी बातचीत कर रही है जयंत फ्रिंस के लिए अपने सारे खिलौने भूल गया था लेकिन एक दिन उसकी पुतली टूट जाती है अब आगे –
टूट गई? कैसे? मैंने पूछा। जयंत ने एक लम्बी साँस ली और बोला,’एक दिन हम बाहर बरामदे में बैठकर चाय पी रहें थे।पुतली को बगल में घास पर रख दिया था ।पास ही बहुत सारे कुत्ते जमा हो गए थें।तब जिस उम्र में मैं था मुझे चाय नहीं पीनी चाहिए थी लेकिन मैंने ज़िद करके चाय ले ली।चाय की प्याली अचानक तिरछी हो गई और मुझ पर थोड़ी सी गरम चाय गिर गई, मैंने बँगले के अंदर जाकर पैंट बदला और जब बाहर आया तो वहाँ पर पुतली नहीं थी।खोज-पड़ताल करने पर मैंने देखा सड़क के दो कुत्ते मेरे फ्रिंस को लेकर टगऑफवॉर खेल रहें हैं। चुकीं वह बहुत मजबूत चीज़ थी इसीलिए फटकर दो भागों में नहीं बटीं लेकिन उसका चेहरा क्षत-विक्षत हो गया और कपड़ा फट गया। यानि मेरे फ्रिंस का कोई अस्तित्व नहीं रह गया। He was dead. उसके बाद? जयंत की कहानी मुझे बहुत मजेदार लग रही थी। उसके बाद क्या ? नियमानुसार फ्रिंस की अंत्योष्ठी कर दी।
इसका मतलब? उस देवदारु के नीचे उसे दफना दिया था,इच्छा थी ताबूत का इंतजाम करुँ क्योंकि विलायती आदमी था ना। कोई बक्सा भी होता तो काम चल जाता ,मगर बहुत खोजने पर भी कुछ ना मिला तो ऐसे ही दफना दिया। इतनी देर बाद देवदारु के पेड़ का रहस्य मेरे सामने था।
दस बजे हम सोने चलें गए। एक खासे बड़े बेडरुम में अलग-अलग पलंग पर हमारे बिस्तर लगे थे।कलकत्ते में पैदल चलने का अभ्यास नहीं था इसीलिए थकावट के कारण लेटने के दस मिनट में ही मुझे नींद आ गई। तब रात कितनी हो चुकी थी पता नहीं, लेकिन किसी चीज़ की आवाज से मेरी नींद टूट गई।बगल की तरफ मुड़ने पर मैंने जयंत को बिस्तर पर बैठा पाया। उसकी बगल में टेबल लैंप जल रहा था जिसकी रौशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। जयंत के चेहरे पर घबराहट दिख रही थी। मैंने पूछा , क्या हुआ?तबियत खराब है क्या ? इस बात का जवाब ना देकर जयंत एक दूसरा ही सवाल कर बैठा , ‘सर्किट हाउस में बिल्ली या चूहा जैसी कोई चीज़ है ? ‘ मैंने कहा,’ रहे भी तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । मगर तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो? छाती पर चढ़ कर कोई चीज़ गई और मेरी नींद टूट गई। मैं बोला , चूहा आमतौर पर नाली से आता है । इसके अलावा मुझे यह नहीं मालूम कि वो खाट पर चढ़ता है कि नहीं । जयंत ने कहा , इससे पहले भी मेरी नींद टूट चुकी है तब खिड़की में खच-खच जैसी आवाज आ रही थी। अगर खिड़की से आवाज आयी है तो ज्यादा सम्भावना बिल्ली की हो सकती है। मगर…..
जयंत के मन का खटका दूर ही नहीं हो रहा था । मैंने पूछा,’ रौशनी जलने पर किसी चीज़ पर नज़र पड़ी थी ?’. Nothing ! पर इतना जरूर है तुरंत बत्ती नहीं जलाई थी । शुरू में अचकचा उठा , थोड़ा डर गया रौशनी जलाने पर किसी चीज़ पे नज़र नहीं पड़ी। इसका मतलब अगर कोई चीज़ आयी होगी तो कमरे के अंदर ही होगी। ‘सो, दरवाजा जबकि बंद है ….’। मैं तुरंत बिस्तर के नीचे उतर आया और घर के हर कोने मे,खाट के नीचे ,सूटकेश के पीछे पड़ताल की। कहीं कुछ नहीं मिला,जयंत ने धीमी आवाज देकर मुझे बुलाया ‘शंकर!’ मैं कमरे में लौट आया ,देखा जयंत अपनी रजाई के सफ़ेद खोल की तरफ देख रहा है ।मैं उसके पास गया तो उसने रजाई का कोना रोशनी में बढाकर कहा , ‘देखो तो यह क्या है ?’ मैंने झुक कर देखा तो उस पर कत्थई रंग की छोटी-छोटी गोल छापे थीं। मैंने कहा ,’बिल्ली की हो सकती हैं ? ‘ जयंत कुछ नहीं बोला , पता नहीं वह क्यों बहुत चिन्तित हो गया।
मैं बगल में ही हूँ ,मैंने उसे आश्वासन दिया और बत्ती बुझाकर फिर से लेट गया। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है जयंत ने जो कहा वो सपने में देखा है।बूँदी आने पर उसे पुरानी यादों ने घेर लिया है इसीलिए वो मानसिक तनाव में है। इसी से बिल्ली के चलने का सपना देखा होगा! रात में फिर कोई घटना घटी मुझे नहीं मालूम, जयंत ने भी कोई नया अनुभव नहीं बताया सुबह।लेकिन उसे देख कर इतना तय था कि वो रात में सही से सोया नहीं। मैंने मन ही मन तय किया कि मेरे पास जो नींद की टिकिया है आज रात जयंत को खिला दूँगा।
अपनी योजना के अनुसार नाश्ता-पानी कर के बूँदी का किला देखने चलें गए। जयंत का बचपना आनंद देखकर लग रहा था कि वो पुतली वाली बात भूल चुका है , वह एक-एक चीज़ देखता और चिल्ला उठता,’ गेट के ऊपर वहीं हाथी है,यह वहीं चांदी का पलंग है और यह वहीं सिंघासन है……। मगर एक घण्टा बीतते-बीतते उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। एक लम्बी कोठरी में चहलकदमी कर रहा था तभी याद आया जयंत मेरे पास नहीं है, वह कहाँ गया ? हमारे साथ एक गाइड था उसने बताया ,’बाबू छ्त पर गए हैं। ‘ दरबार घर देखकर जब मैं छ्त पर आया तो देखा जयंत अनमना सा खड़ा है। वह इतनी चिंता में डूबा हुआ था कि मैं उसके बगल में जाकर खड़ा हो गया लेकिन उसकी दशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ अंत में मैंने उसका नाम लेकर पुकारा तो वह चौक उठा । ‘तुझे क्या हुआ है ठीक-ठीक बता , इतनी खूबसूरत जगह पर भी तू मुँह सीकर रहेगा यह मुझसे बर्दाश्त नहीं।’ जयंत ने बस इतना कहा तेरा देखना हो चुका, फिर अब …..! मैं अकेले होता तो थोड़ी देर और रुकता लेकिन जयंत की हालत देख सर्किट हाऊस लौटना पड़ा। हम दोनों चुपचाप गाड़ी के पिछले हिस्से में बैठे । जयंत के अंदर एक उत्तेजना दबी हुई थी जो उसके हाथों की हरकत से जाहिर हो रही थी। वह कभी खिड़की पर हाथ रखता, कभी गोद में , फिर उंगलियों को मटकाता या दांत से काटता। उसे छटपटाते देख कर मैं अशांति का अनुभव कर रहा था। दस मिनट तक यही सिलसिला चलता रहा तो मैं चुप नहीं रह सका कहा ,’अपनी दुश्चिंता मुझे बता दो ,हो सकता है तेरा कुछ उपकार हो जाए।’ जयंत ने सर हिलाकर कहा , कहने का कोई फायदा नहीं अगर कहूंगा भी तो तू यकीन नहीं करेगा । यकिन भले ना करुँ , लेकिन उस विषय पर तुझसे विचार-विमर्श तो कर सकता हूँ। कल रात फ्रिंस हमारे कमरे में आया था , रजाई पर उसके पैरों के ही निशान थे।इस बात पर मुझे जयंत के कंधो को झकझोरने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं करना था जिसके दिमाग मे ऐसी अजीब धारणा जमकर बैठ गई है उसे क्या समझाया जा सकता है। फिर भी मैंने कहा, तूने उसे देखा था ? नहीं! तब इतनी बात जरूर है जो चीज़ छाती पर चल रही थी वो चौपाया न होकर दुपाया थी , यह बात मैं साफ-साफ समझ रहा था।
सर्किट हाऊस के पास गाड़ी से उतरते समय यह जरूर तय किया कि जयंत को नर्व टॉनिक जैसी चीज़ भी दूँगा सिर्फ नींद की गोली से काम नहीं चलेगा। बचपन की एक साधारण स्मृति एक 37 साल के जवान को इतना परेशान करेगी यह नहीं होना चाहिए।
To be continued………