ब्राउन साहब की कोठी’ का राज last part

अभी तक आपने पढ़ा की एक युवा, रंजन को जिसे पुरानी किताबें खरीदने का शौक है उसे एक डायरी मिली थी। जो की एक अंग्रेज की थी जिसमें उसने साइमन के भूत का जिक्र किया था। उस भूत को देखने की लालसा में रंजन अपने दो दोस्तों अनीक और mr. बनर्जी के साथ उसी अंग्रेज ब्राउन की कोठी पर पहुँच जाता हैं क्योंकि आज अमावस की रात थी और साइमन का 113 साल पुराना भूत मिस्टर ब्राउन से मिलने आने वाला हैं जो खुद भी इतने साल पहले ही मर चुके हैं। अब आगे-

👉ब्राउन साहब की कोठी’ पार्ट 1

👉ब्राउन साहब की कोठी’ पार्ट 2

मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया। ताश निकालकर फेंटना शुरू किया। बैनर्जी ने कहा, ‘रमी ही चले। और यह खेल तभी जमता है जब पैसा लगाकर खेला जाए। आप लोगों को इसमें कोई आपत्ति है?”

मैंने कहा, ‘बिलकुल नहीं। तब इतनी बात जरूर है कि मैं ठहरा बैंक का मामूली कर्मचारी बहुत ज्यादा पैसा लगाने की मुझे सामर्थ्य नहीं है।

बाहर दिन की रोशनी फीकी हो गई है। हम खेल में तल्लीन हो गए। ताश के खेल में तकदीर कभी मेरा साथ नहीं देती है। आज भी वही हालत रही। मैं जानता हूँ, अनीक मन ही मन नर्वस है इसलिए अगर जीत उसकी हो तो मुझे बहुत कुछ निश्चिन्तता का अहसास होगा, मगर उसका कोई लक्षण नहीं दीख रहा है। एकमात्र मिस्टर बैनर्जी की तकदीर उनका साथ दे रही है। वे विलायती स्वर गुनगुनाते जा रहे हैं और दाँव पर दाँव जीते जा रहे हैं। खेलते-खेलते सन्नाटे के बीच एक बार एक बिल्ली की आवाज सुनाई पड़ी। उसके कारण मेरे उत्साह पर और अधिक पानी फिर गया। भुतहा मकान में बिल्ली का रहना भी उचित नहीं है। यह बात जब मैंने बैनर्जी से कही तो वे हँसकर बोले, ‘बट इट वाज ए ब्लैक कैट-इसी गलियारे से होकर गया है। ब्लैक कैट तो भूत के साथ जाता ही है, है न यह बात ?’

खेल का सिलसिला चलता रहा। बीच में एक अनजान पक्षी की कर्कश आवाज के अतिरिक्त किसी तरह की आवाज, दृश्य या घटना ने हमारी एकाग्रता में बाधा नहीं डाली।

घड़ी साढ़े छह बजा रही है। कहा जा सकता है बाहर रोशनी है ही नहीं। अच्छा ताश मिल जाने के कारण मैं लगातार दो बार जीत चुका हूँ। इस बीच रमी का एक और दौर चल चुका है। तभी कानों में एक अस्वाभाविक आवाज आई। कोई बाहर से दरवाजे को खटखटा रहा है।

हम तीनों के हाथ ताश समेत नीचे गिर पड़े।

खट्-खट्, खट्-खट् ।

अनीक का चेहरा इस बार और भी उतर गया। मेरी भी छाती अन्दर ही अन्दर धड़क रही है। मगर बैनर्जी में घबराहट का नामोनिशान तक नहीं है। अचानक सन्नाटे को भेदकर वे अपनी पुरजोर आवाज में चिल्ला उठे, दरवाजे पर फिर खटखटाहट शुरू हो गई। बैनजी पता लगाने के लिए चटपट उठकर खड़े हो गए। मन उनका हाथ पकड़कर कहा, ‘अकेले मत जाइए।’

हम तीनों एक साथ कमरे के बाहर आए। गलियारे में आने के बाद बाई तरफ हमने एक आदमी को खड़ा पाया। वह सूट पहने है और उसके हाथ में लाठी है। अँधेरे में उसे पहचानना मुश्किल है। अनीक ने मेरी आस्तीन पकड़ ली । इस बार और ज्यादा जोर से उसकी हालत देखकर मुझमें अपने आप एक साहस का भाव आ गया।

इस बीच बैनर्जी कई कदम आगे बढ़ चुके थे। वे चिल्ला उठे, ‘ओह, हेलो डाक्टर लार्किन! आप यहाँ ?’

अब मैंने भी उस प्रौढ़ साहब को गौर से देखा। सोने के चश्मे के पीछे उसकी नीली आँखों में एक सिकुड़न आ गई और वह बोला, ‘तुम्हारी मॉरिस गाड़ी बाहर दिखाई दी। उसके बाद देखा, खिड़की से मोमबत्ती की रोशनी आ रही है। इसीलिए सोचा, एक बार देख लूँ कि तुम पर किस पागलपन का भूत सवार हुआ है।’

बैनर्जी ने हँसकर कहा, ‘मेरे इन दो जवान मित्रों को एक अजीब एडवेंचर का शौक चराया है। कहा, एवरग्रीन लॉज में बैठकर ताश खेलेंगे।’

‘वेरी गुड, वेरी गुड जवानी ही इस तरह के पागलपन का वक्त हुआ करता है। हम बूढ़े सिर्फ अपने-अपने घर के कोच पर बैठकर पुरानी यादों को दुहराते हैं।

बेल बेल, हैव ए गुड टाइम

लॉर्किन साहब ने हाथ उठाकर ‘गुडबाइ’ कहा और लाठी ठुकठकाते हुए चले गए और हमें भी भूत की उम्मीद छोड़नी पड़ी। अब और क्या करें हम फिर ताश खेलने में जुट गए। शुरू में मैं लगभग साढ़े चार रुपया हार रहा था। पिछले आधे घंटे के दरमियान उसमें से कुछ वापस आ गया है। साइमन का भूत न भी दीखे मगर ताश में जीतकर अगर घर लौट सकूँ तो आज का यह रहस्य रोमांच कुछ सार्थक जैसा लगे । बीच-बीच में आँखें घड़ी की तरफ चली जाती थीं। असली घटना कब घटी थी। उसका वक्त मुझे मालूम नहीं। ब्राउन साहब की डायरी से पता चला था कि शाम के इसी वक्त वज्रपात से साइमन की मृत्यु हुई थी।

मैं ताश बाँट रहा हूँ, मिस्टर बैनर्जी अपनी पाइप सुलगा रहे हैं, अनीक कुल मिलाकर सैंडविच खाने के उद्देश्य से पैकेट में हाथ देने जा रहा है कि तभी उसकी आँखों की दृष्टि एक ही क्षण में बदल जाती है और उसके अंग-प्रत्यंग जड़ जैसे हो जाते हैं।

उसकी दृष्टि दरवाजे के बाहर गलियारे की तरफ टिकी हुई है। हम दोनों की भी दृष्टि स्वभावतया उसी ओर चली जाती है। जो कुछ देखता हूँ उसके कारण कई क्षणों के लिए मेरा गला भी सूख जाता है और साँसों का चलना बन्द हो जाता है। बाहर गलियारे के अँधेरे से दो चमकती हुई आँखें हमारी ओर अपलक ताक रही हैं।

मिस्टर बैनर्जी का दाहिना हाथ आहिस्ता-आहिस्ता कोट के वेस्ट पॉकेट की तरफ चला जाता है। और ठीक उसी क्षण जादू की तरह वह मामला मेरे सामने स्पष्ट हो जाता है और मेरे मन से सारा भय दूर हो जाता है। मैंने कहा, आपको पिस्तौल की जरूरत न हीं है, साहब! यह वही काली बिल्ली है।’

मेरी बात से अनीक में भी साहस का संचार हुआ। बैनर्जी ने पॉकेट से हाथ बाहर निकाल क़र कहा, ‘हाउ रिडिकुलस!’

अब वे चमकती आँखें हमारे कमरे की तरफ आने लगीं। चौखट पार करते ही मोमबत्ती की रोशनी में मेरी बात सही साबित हुई। यह वही काली बिल्ली थी।

चौखट पार कर बिल्ली बाईं तरफ मुड़ी। हमारी दृष्टि उसके साथ-साथ घूम रही थी, उसका पीछा कर रही थी ।

अबकी हम तीनों के गले से एक साथ ही एक शब्द बाहर निकल आया। अकस्मात् विस्मय होने पर जिस तरह शब्द निकलता है, ठीक उसी तरह का शब्द ।

इस शब्द के निकलने का कारण यह था कि हम जब ताश खेलने में व्यस्त थे, उसी बीच, पता नहीं कहाँ से और कैसे एक गाढ़े लाल रंग के मखमल से लिपटी हुई हाइबैक्ड कुरसी फायरप्लेस के पास आ गयी थी।

अमावस जैसे काली रात के अँधेरे में काली बिल्ली चुपचाप कुरसी की तरफ बढ़ गयी। उसके बाद वहाँ एक क्षण रुकी रही। फिर उसने एक छलाँग लगाई और कुरसी पर गुंजलक मारकर लेट गई। और उसी क्षण एक अजीब शब्द सुनकर मेरा शरीर विवर्ण हो गया। किसी एक अशरीरी वृद्ध की खिलखिलाहट के अन्तराल से बार-बार उच्चरित हो रहा है- ‘साइमन, साइमन, साइमन, साइमन ।’ और उसके साथ ही बचपने से भरी खुशियाँ और तालियों की गड़गड़ाहट ।

एक चीख सुनाई पड़ी और अनीक बेहोश हो गया। और मिस्टर बैनर्जी? वे अनीक को गोद में लेकर गलियारे से दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे । मैं भी अब बैठा नहीं रह सका। ताश, मोमबत्ती, फ्लास्क, चादर सब कुछ पड़े रह गए।

सौभाग्य से बंगलौर की सड़कों पर लोगों का आवागमन कम रहता है वरना हमारी गाड़ी की तेज रफ्तार की चपेट में आकर उस समय कितने आदमी घायल होते, कहना मुश्किल है। अनीक को गाड़ी में होश आ चुका था, मगर उसके मुँह से एक भी शब्द बाहर नहीं निकल रहा था। पहले-पहल मिस्टर बैनर्जी के मुँह से ही आवाज निकली।

अनीक के बेयरा के हाथ से ब्राँडी का गिलास छीनकर एक ही घूंट में आधा गिलास पी गये और घरघराती आवाज में बोले, ‘सो साइमन वाज ए कैट ।’

मैं भी इस हालत में नहीं था कि कुछ बोलता, मगर मेरे मन ने हामी भरी।

सचमुच साइमन ब्राउन साहब की अक्लमन्द, मनमौजी, अभिमानिनी आज्ञाकारिणी और लाड़ली थी। जिस साइमन की मृत्यु आज से एक सौ तेरह वर्ष पहले वज्रपात से हुई थी। वह यही पालतू काली बिल्ली थी ।

तो दोस्तो कैसी रही ये कहानी, आशा करता हूं आप लोगो को अच्छी लगी होंगी, आज के लिए इतना ही मिलते है अगले ब्लॉग में एक नई suspensive , और हॉरर के साथ, तब तक के लिए अलविदा, नमस्कार, good bye 👋 और हां स्टोरी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तो को भी शेयर करना मत भूलिएगा।

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