बर्मिंघम में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भारत लगातार सर ऊँचा करने के साथ-साथ सीना भी चौड़ा कर रहा है। वेटलिफ्टिंग , कुश्ती, हॉकी जैसे खेलों में झंडे गाड़ने के साथ-साथ पहली बार इस इवेंट में शामिल महिला क्रिकेट में भी परचम लहराया है। महिला टीम ने चांदी जीतकर देश की उन लड़कियों की चांदी कर दी है जिन्हें कहा जाता है कि क्रिकेट लड़कों का खेल है।
वैसे तो मैच की शुरुआत में भारतीय टीम को गोल्ड का दावेदार माना जा रहा था ,लेकिन कहते हैं ना कि अगर आपका दिन ना हो तो जीती भी बाजी हाथ से निकल जाती है और ये बात क्रिकेट जैसे खेल पर तो अधिक लागू होती है।कल भारतीय टीम का दिन नहीं था सो सोना तो निकल गया लेकिन चांदी अपनी हो गई।
भारतीय टीम सेमीफाइल में मौजूदा विश्व विजेता इंग्लैंड को रोमांचक मुकाबले में 4 रनों से शिकस्त दी। इसी जीत के साथ पूरे भारत को एक और गोल्ड की आस हो गई और उसी तरह की उम्मीद लग गई उनसे जैसे 2017 के वन डे वर्ल्डकप और 2020 में t20 वर्ल्डकप में लगी थी।लेकिन परिणाम वही रहा जो उन दोनों मैच का था इंडिया हार गई। कॉमवेल्थ में भी “भारत” फाइनल हार गया 9 रन से। ध्यान दीजिये “भारत हारा” भारतीय टीम नहीं। क्योंकि खेल कोई भी हो एक मध्यम खिलाडी अकेले ही उतारता है मैदान में लेकिन जैसे- जैसे जीत की ओर बढ़ता है पूरा देश उसके साथ आ जाता है। क्रिकेट पर यह बात पूरी तरह सत्य है। चाहे आप 1983 का कपिल सर की अगुआई वाला वर्ल्डकप देख लें या 2005 का वुमेन्स वर्ल्डकप का फाइनल। ओलम्पिक में नीरज चोपडा देख ले या साक्षी मलिक,जिमनास्ट में दीपा कर्माकर…।
फाइनल में पहुंचने से पहले इन में से किसी को देश ज्यादा नहीं जानता था। शुरू में तो ये एकला ही चलतें हैं पीछे से कारवां अपने आप बनने लगता है।तब इनकी जीत देश की जीत होती है इनकी हार देश की हार होती है। इसीलिए कल क्रिकेट में भारत देश हारा, भारतीय टीम नहीं। अपनी लड़कियों ने तो सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था अकेले, फाइनल में तो उस देश की उम्मीद उतरी थी जिस देश में पुरुषों के क्रिकेट मैच को प्राथमिकता दी जाती है। जिस देश में पुरुषों की लीग होती है जिस देश में पुरुष क्रिकेटर्स को भारी-भरकम फीस दी जाती है। इन सब के बदले में मेंस टीम से उम्मीद की जाती है। लेकिन क्या महिला टीम को इतना सब कुछ दिया जाता है?
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मुझे लगता है 1978 से जब से महिला क्रिकेट देश में शुरू हुआ हैं तब से आज तक उन्हें कभी भी पुरुष क्रिकेटर्स के सामान अधिकार नहीं दिए गयें हैं, ना उनकी जितनी फीस ही दी गई है। अगर उन्हें भी महत्वपूर्ण समझा गया होता तो देश में काफी पहले ही विमेंस लीग भी शुरू हो चुकी होती हमें 2023 का वेट नहीं करना पड़ता इसके लिए और अब तक एक दो ट्राफियां भी देश में आ चुकी होतीं।
महिला क्रिकेटर्स को हम सेल्फ मेड भी कह सकते हैं क्योंकि जिन महिलाओं ने दूसरे देश की टीमों के साथ अपने देश के लोगों से , उनकी सोच से खुद BCCI से कपड़ो के लिए , अच्छी ट्रेनिंग के लिए लड़ते हुए खेला हो वो सेल्फ मेड नहीं तो क्या हैं?
कोई बड़ी ट्रॉफी ना सही लेकिन भारतीय महिला क्रिकेट ने उनसे भी बड़े नगीने दिए हैं जो शायद उम्मीद से ज्यादा हैं। वनडे वर्ल्ड में सबसे ज्यादा 250 विकेट लेने वाली झूलन गोस्वामी हो या महिला क्रिकेट इतिहास में सबसे ज्यादा 10,868 रन बना कर विश्व में भारत का नाम रोशन करने वाली मिताली राज हो, खूबसूरत मुस्कान की मल्लिका स्मृति मंधाना हो या 17 साल 150दिन की उम्र में तीनों फॉर्मेट में पदार्पण करने वाली शेफाली वर्मा हो।
इतने ही ना जाने कितने ही नगीने है जो सोने से भी कहीं अनमोल हैं। यही नहीं देश में और भी कई गुमनाम नगीने हैं जिन्हें Bcci को जौहरी बनकर तराशना होगा ताकि कल को वो देश के लिए सोना लेकर आए। कल की जीती हुई चांदी आने वाले वक्त में भारत की लड़कियों को क्रिकेट में हीरा जैसा चमकायेगी और वे भी बोलेंगी बेबी गोल्ड…गोल्ड…गोल्ड। We proud of you Indian women’s team. We still believes you. कल आपका दिन नहीं था लेकिन कल आपका दिन जरूर होगा।
👉 मैने क्रिकेट पर लिखा इसका मतलब ये नहीं की मुझे बाकी खेलों की उपलब्धि में कोई दिलचस्पी नहीं हैं बस समय का अभाव है।
आज नही तो कल सही…✌️✌️
Well played Indian women's cricket team very much welcome…👍
Absolutely right dear…👌
You wrote very well The heart is happy…❣️❣️
Thanks
Thanks
Gayani ,samajhdar writear ban rahi ho, very good subject