आजकल इंडिया में काफी बड़ा आंदोलन चल रहा है ,इस आंदोलन के कार्यकर्ता धूप में नहीं निकलते , लाठियां नहीं खाते, जख्मी नहीं होतें बल्कि घर में ही कमरे में पड़े हुए एक एक कर दिमाग में नायब किस्म की बेहूदगी इजाद करतें हैं और उसे सोशल मीडिया पर उंडेल देतें हैं ताकि अपने निम्न दर्जे के आंदोलन को सफल बना सकें।
इतिहास उठा कर देखा जाए तो आज तक भारत में जितने भी आंदोलन हुए हो, बारडोली आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन, अन्ना हजारे वाले भ्रष्टाचार खात्मे को लेकर हुआ आन्दोलन हो या किसान आंदोलन , सबका एक मकसद था लोगों की उन्नति, देश की उन्नति, देश की खुशहाली, आर्थिक मजबूती। लेकिन ये जो सोशल मीडिया वाला आंदोलन हैं ये देश का ऐसा पहला आन्दोलन है जो देश का घाटा सोचता है जो सोचता है कि 500-1000 लोग भूखे सोए, जो देश की बढ़ती जीडीपी देख ही नहीं सकता। मैं बात कर रही हूँ आज Bollywood boycotts culture की। जो एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के जाने के बाद से एक नए और बड़े रूप में फैल गया हैं। जिसका शिकार आजकल हर 3 में से 2 फिल्में हो रहीं हैं ये culture 2022 में कुछ ज्यादा ही पैर पसार ले गया है ,ऐसा नहीं है कि ये पहले कम सक्रिय था लेकिन इस साल कुछ कमजोर कहानियाँ, Unfit Starcast और कुछ स्टार्स का ego इस आंदोलन की सफलता के मुख्य कारण हैं। गंगूबाई काठियावाड़ी,शमशेरा, लाल सिंह चड्ढा, रक्षाबंधन, डार्लिंग्स , दोबारा जैसी मूवीस को नुकसान पहुचानें के बाद अब खाली दिमाग के बुद्धिमान लोग लाईगर , पठान , ब्रम्हास्त्र ,टाइगर-3 जैसी much awaited movies को boycott करने की तैयारी में लगे हुए हैं। इससे कुछ स्टार्स काफी खफा हैं, कुछ ऐसे लोगों को समझा रहें हैं कुछ स्टार्स इन्हें मुँहतोड़ जवाब देने की बात कह रहें हैं।
सबसे पहले हम बता रहें हैं सुपरस्टार अक्षय कुमार के विचार जो ये मानते हैं कि ” लोग समझदार है, जानते हैं कि क्या सही है क्या गलत। मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि ऐसी शरारत ना करें इससे हर इंडस्ट्री को नुकसान पहुँचता है । जब कोई फिल्म बनती है तो बहुत पैसा लगता है, मेहनत लगती है लेकिन यह भारत की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचा रही है और जाने अनजाने हम खुद को भी चोट पहुँचा रहें हैं। उम्मीद है लोग यह बात जल्द समझेंगे।“ बॉलीवुड की हाईवे गर्ल और डार्लिंग्स मूवी की ऐक्ट्रेस आलिया भट्ट काफी अग्रेसिव मूड में सलाह देतीं हैं कि ” हमें इस culture को खत्म करना होगा, हमें बहिष्कार का बहिष्कार करना चाहिए।” बॉलीवुड के “अन्ना” सुनील शेट्टी का साफ कहना है कि ” ट्विटर पर चल रहे boycott abhiyan से मुझे नफ़रत है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि ये जल्दी रुक जाए क्योंकि हम भी एक उद्योग हैं और बहुत सारे लोग हमें खिला रहें हैं। तो इसके लिए आइये एक ऐसे उद्योग को ना नष्ट करें जिसकी अपनी विरासत अच्छे लोगों की हैं जो किसी स्तर पर गलतियां कर देतें हैं लेकिन क्या हम इंसान नहीं है? एक मौका दिया जाए हमें। द कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने लोगों से अपील की कि ” हम जिसके लिए काम कर रहें हैं वह एक अच्छा सिनेमा है इसीलिए हम चाहते हैं कि लोग इसे देखें। हमारे पास 250 लोगों का एक दल है जिन्हें इससे नौकरी मिली हुई है। मैं बस इतना चाहता हूँ कि लोग आए इसे देखें और अच्छे काम की सराहना करें,सिनेमा का मतलब प्यार और सकारात्मकता फैलाना है।”
सबसे सही मुझे इन्ही की राय लगी कि आप किसी स्टार के नहीं उन 250 लोगों के लिए मूवी देखने जाएं क्योंकि उन्होंने भी फिल्म में काम किया है। जब किसी मूवी का boycott होता हैं तो फ़िल्मी स्टार को खासा नुकसान नहीं होता जितना उन 250-500 लोगों का होता है जिनके लिए एक मूवी ही सबकुछ होती है। एक मूवी के एक छोटे से सीन के लिए भी वो जी तोड़ मेहनत करतें हैं ताकि शाम में जो हज़ार पाँच सौ रूपए मिले उनसे उनका पेट भर सके। किराने वाला, अख़बार वाला, हीरो की गालियां और विलेन की दादागिरी झेलने वाला, background में dance करने वाला, सेट पर चाय देने वाला ,मेकअप करने वाला, कैमरामैन, लाइटमैन, साउंड सिस्टम वाला, बॉडी डबल, स्टंटमैन… और भी ना जाने कितने किरदार होते हैं एक फिल्म में। इन सब के लिए मूवी देखिये। चलिए आपको कोई “पर्सनल इशू” है किसी एक्टर या ऐक्ट्रेस से तो आप मत जाइये उनकी मूवी देखने कोई जबरदस्ती तो कर नहीं रहा है लेकिन दूसरों को तो चैन से मूवी देखने जाने दीजिये। उन्हें क्यों रोक रहें हैं, बहका रहें हैं वो कौन सा आपकी जेब से पैसे लेकर जाने वाले हैं मूवी देखने। करीना कपूर खान ने तो लोगों से कहा भी था ” जिसका मन होगा मूवी देखने का वो देखेगा,जिसका नहीं मन होगा तो वो ना देखें, हम किसी के साथ जबरदस्ती तो नहीं कर सकते।” अर्जुन कपूर ने इस मुद्दे पर अपने अलग ही तेवर दिखाए और बॉलीवुड से कहा ,” ये हमारी चुप्पी का नतीजा है , हमारी ख़ामोशी हमारी कमजोरी हैं अब हमें एकजुट हो इन लोगों को सबक सीखाना होगा ।” और भी कई सिलेब्रिटीज ने इस मुद्दे पर अपने मत रखें, सबकी राय अलग-अलग थी लेकिन सारांश एक ही था कि फिल्मों का बहिष्कार बंद होना चाहिए क्योंकि इससे ना सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान पहुँच रहा है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी घाटा हो रहा है।
स्टार्स का तो केवल स्टारडम कम हो रहा है लेकिन स्ट्रगलिंग एक्टर, साइड रोल और बाकी जगह पर मेहनत करने वालों का career, लाइफ और हेल्थ बर्बाद हो रही है। जनता तक ना पहुंचने वाली इन मूवीस में ना जाने कितने नए-नए चेहरे आए होंगे 30-40 सेकंड के लिए ये सोचकर कि अक्षय सर की मूवी है , आमिर सर की मूवी हैं लोग आएँगे देखने तो मुझे भी देखेंगे लेकिन कोई जाए तो तब ना। अगर बॉयकॉट का इतना ज्यादा ट्रेंड 90 के दशक के आसपास होता तो ना जाने कितने स्टार्स हम बिना देखें बिना जाने ही खो चुके होते जिनमें , नवाजुद्दीन सिद्दकी से लेकर शाहिद कपूर तक शामिल होते। ऐसा नहीं है कि तब इस बहिष्कार का अविष्कार नहीं हुआ था। इस बहिष्कार की शिकार पहली पिक्चर इंडिया थाई ( भारत माता) थी जिसे ब्रिटिश गवर्मेंट ने बैन किया था। इसके बाद अजाद भारत की फिल्म जो बहिष्कृत की गई थी, नील आकाशर नीचे नाम की पिक्चर थी जिसे स्वयं प्रधानमंत्री नेहरू जी ने बहिष्कृत किया था हालांकि 3 महीने के प्रयास के बाद इस मूवी को रिलीज कर दिया गया था। इसके बाद तो समय-समय पर कई मूवीस बॉयकॉट हुईं, सत्यम शिवम सुंदरम, कामासूत्र: A tale of love , फायर,वाटर , और माइ नेम इज खान जैसी कई मूवी बहिष्कृत की गई। लेकिन ये उस ज़माने की बात है जब ट्विटर नहीं हुआ करता था। आज हाथ में फोन है फोन में सोशल साइट्स हैं और उन पर ऐसी, वैसी ,जैसी,तैसी और ना जाने कैसी-कैसी बातों पर मुँह बनाने, गुस्सा दिखाने और अफवाहें फैलाने का मौका है। लेकिन एक समझदार व व्यस्त इंसान इस तरह की फालतू बातों पर ध्यान नहीं देता और अपने काम से काम रखता है। मैं मानती हूँ कि एक्टर्स के कुछ बयान उनके फैन्स का दिल दुःखा सकतें हैं, लोगों को गुस्सा दिला सकते है, लेकिन अगर वे माफ़ी मांगे तो उन्हें माफ़ी भी दी जानी चाहिए। किसी एक्टर की बात से , स्टाइल से , आप खफा हो उसे पर्सनल नहीं ले सकते हैं लेकिन आजकल ऐसा बिलकुल भी नहीं हो रहा है। कोई एक्टर अगर अपने दिलोदिमाग की बात कह भी दे तो लोग उस पर चढ़ जाते है और कोई दूसरा एक्टर अगर उसके समर्थन में बोल दे उसकी मूवी भी बॉयकॉट। मुझे समझ नहीं आता कि ये बॉयकटिए चाहते क्या हैं सिर्फ एक कठपुतली? जो फिल्म ने निर्देशक के हिसाब से नाचे और जिन्दगी में इनके हिसाब से चले। यार ऐसा नहीं हो सकता ना थोड़ा तो दिमाग होगा ही ना उसी से सोच लो कि ऐसा करना कहाँ तक सही हैं? खैर मैं यहाँ समझने- समझाने की कोशिश नहीं कह रही मैं बस बताना चाहती हूँ कि आप किसी एक्टर के बयान से खफा हैं तो पहले ये याद रखें कि इस देश के कानून ने सभी को आजादी के साथ अपने दिल की बात रखने की छूट दे रखी है और आप सभी को अपने-अपने तरीके से विरोध करने का हक़ भी दे रखा है लेकिन याद रखिये की किसी के पेट पर लात मरने का अधिकार भारत तो क्या दुनिया के किसी संविधान ने किसी को भी नहीं दिया