कुमारी मार्था मीकम कोने वाली एक छोटी सी बेकरी चलाती है। वह, जहा आप तीन सीढ़ियां चढ़कर जाते हैं और द्वार खोलने पर घंटी बजती है।कुमारी मार्था चालीस वर्ष की थी। उसकी बैंक की पासबुक से दो हजार डॉलर जमा का पता लगता था की उसके दो नकली दांत थे और एक सहानुभूति से भरा हृदय था । कुमारी मार्था से भी कम ही लोगों ने विवाद किए थे।सप्ताह में दो-तीन बार एक ग्राहक आता था, जिसमें उसने रुचि लेना शुरू कर दिया। वह एक अधेड़ आदमी था, चश्मा लगाता था और उसकी संवारी हुई भूरी दाढ़ी थी । वह जर्मन लहजे में अंग्रेजी बोलता था। उसके कपड़े घिसने लगे थे और हो रहा था। वे सिकुड़े थे, किन्तु वह साफ-सुथरा दिखाई जगह-जगह उनमें रफू देता था और बड़ा सभ्य था । वह सदैव बासी डबलरोटी के दो टुकड़े खरीदता था। ताजा डबलरोटी का एक टुकड़ा पांच सेंट का आता था। बासी दो टुकड़े पांच के थे। बासी डबलरोटी के अतिरिक्त उसने कभी कुछ न मांगा था।एक बार कुमारी मार्था ने उसकी उंगलियों पर लाल-भूरा धब्बा देखा। तब निश्चित ही जान गई कि वह एक कलाकार था और अत्यंत गरीब था । निःसंदेह वह किसी माले में रहता था जहां वह चित्र बनाता था और बासी डबलरोटी खाता था । कुमारी मार्था की वह बेकरी से बढ़िया चीजें खाने के बारे में सोचता रहता था।प्रायः जब कुमारी मार्था चाय के साथ चॉप्स, रोल्स व जैम खाने बैठती,तो आह भरती और इच्छा करती कि शिष्ट रंग-ढंग वाला कलाकार अपने माले में सूखे टुकड़े खाने के स्थान पर उसका स्वादिष्ट भोजन खाए। कुमारी मार्था का हृदय, जैसा आपको बताया सहानुभूति से भरा था।
उसके के संबंध में अपनी सोच को जांचने के लिए एक दिन अपने कमरे से एक चित्र ले आया जो उसने बाज़ार में से खरीदा था और डबलरोटी वाले काउंटर के पीछे लगा दिया। यह वेनिस का दृश्य था । चित्र में एक संगमरमर का शानदार महल पानी के किनारे चित्र में था। शेष में एक स्त्री पानी में हाथ डाल रही थी और बादल,आकाश आदि भी चित्रित थे। यह किसी कलाकार की दृष्टि में आए बिना नहीं रह सकता था। दो दिन बाद ग्राहक आया, “कृपया, डबलरोटी के दो बासी टुकड़े दीजिए।”
“बड़ा सुंदर चित्र है, मैडम ,” वह डबलरोटी बांध रही थी, तब वह बोला।
“हैं?” अपनी समझदारी पर प्रसन्न होती हुई कुमारी मार्था बोली, “मैं कला की प्रशंसक हूं।” नहीं अभी इतनी जल्दी ‘कलाकार’ की प्रशंसक बताना उचित नहीं होगा। “और चित्रों की तरह”, उसने जोड़ा, “आपको यह चित्र अच्छा लगा ?”
“इस महल को ठीक नहीं बनाया गया है। इसका अनुपात ठीक नहीं है। अच्छा, मैम।”उसने अपनी डबलरोटी उठाई, सिर झुकाया और जल्दी से बाहर निकल गया। हां, वह कलाकार ही होगा। कुमारी मार्था चित्र को वापिस अपने कमरे में ले गई। कलाकार की आंखें उसके चश्मे के पीछे से कैसी कोमलता और दयालुता से चमकती थीं। उसका माथा कितना चौड़ा था। चित्र को एक दृष्टि में परखने की सामर्थ्य, और बासी डबलरोटी पर गुज़ारा, किन्तु प्रतिभा को पहचानने से पूर्व अधिकतर संघर्ष करना पड़ता है।कला के लिए यह कैसा रहेगा, यदि प्रतिभा के पीछे बैंक में दो हजार डॉलर,एक बेकरी और एक सहानुभूति भरा, हृदय हो, किन्तु यह दिवास्वप्न था, कुमारी मार्था ।
अब अक्सर जब वह आता तो शोकेस के पार से थोड़ी बहुत देर बातें करता था। ऐसा प्रतीत होता जैसे वह कुमारी मार्था के मीठे शब्दों को सुनने के लिए तरसता हो ।उसने बासी डबलरोटी खरीदना जारी रखा। न कभी केक न कभी पाई और न ही कभी कुमारी मार्था पसंद के सैली लन्स ।उसे लगा कि वह कमजोर और निराश होता जा रहा था। उसके हृदयमें इस बात को लेकर पीड़ा थी कि वह उसकी एकमात्र खरीद में कुछ अच्छा खाने को जोड़ना चाहती थी, किन्तु इस कार्य को करने में उसका साहस जबाव दे जाता।उसके सामने हिम्मत न हो। वह कलाकारों का स्वाभिमान जानती थी। आज काउंटर के पीछे खड़े होने के लिए कुमारी मार्था ने अपनी नीली पोशाक निकाल ली। पीछे के कमरे में उसने बीजों और बोरैक्स से एक विचित्र पदार्थ पकाया।कई लोग इसे साफ रंगत, के लिए प्रयोग करते आये थे।इस दिन भी ग्राहक सदैव की भांति आया, सिक्का काउंटर पर रखा और अपने बासी टुकड़े मांगे। कुमारी मार्था इन्हें निकालने बढ़ी कि भारी खड़खड़ाहट और शोर के साथ एक फायर इंजन वहां से गुजरा। जैसा कोई भी करता, ग्राहक भी इसे देखने के लिए द्वार की ओर लपका।एकाएक कुमारी मार्था को अवसर मिल गया। नीचे वाली आलमारी में काउंटर के पीछे एक पौण्ड ताजा मक्खन रखा था। डेरी वाला दस मिनट पूर्व ही देकर गया था। कुमारी मार्था ने बासी डबलरोटी के टुकड़ों को चाकू से मध्य में गहरा काटा, ढेर सारा मक्खन इसमें डाला और टुकड़ों को पुनः कसकर दबा दिया जब ग्राहक मुड़ा, तब वह इन पर कागज लपेट रही थी । एक साधारण खुशनुमा छोटी-सी बातचीत के बाद जब वह चला गया कुमारीमार्था स्वयं पर मुस्कराई। उसका हृदय भी कांप रहा था। क्या वह दुस्साहस कर बैठी थी? क्या वह बुरा मान जाएगा? निश्चित तौर पर नहीं। खाद्य पदार्थों की कोई भाषा नहीं होती।
उस दिन बहुत समय तक उसके मस्तिष्क में यही विषय बना रहा। वह उस दृश्य की कल्पना कर रही थी, जब वह उसके छोटे से धोखे को जानेगा।वह अपने ब्रश और रंग की तश्तरी रख देगा। उसका ईज़ल खड़ा रहेगा,जिस पर वह चित्र बना रहा होगा, जिसका तारतम्य आलोचना से परे था ।वह सूखी डबलरोटी और पानी के अपने भोजन के लिए तैयार होगा और एक टुकड़ा काटेगा, आह! कुमारी मार्था का चेहरा लाल हो गया। क्या वह खाते में उस हाथ के संबंध में सोचेगा, जिसने इसे उसमें रखा था? क्या वह…
सामने वाले द्वार की घण्टी ज़ोर से घनघनाई। कोई शोर मचाता हुआ अंदर आ रहा था। कुमारी मार्था सामने लपकी। वहां दो आदमी थे। उनमें से एक युवक था जो पाइप पी रहा था, उस आदमी को उसने कभी नहीं देखा था। दूसरा कलाकार था ।उसका चेहरा भभक रहा था, उसका हैट उसके सिर पर पीछे को लगा था, उसके बाल बुरी तरह बिखरे थे। वह दोनों हाथों को घूंसे की शक्ल में कुमारी मार्था पर बुरी तरह लहरा रहा था।
“सत्यानाश!” वह बुरी तरह चिल्लाया और फिर जर्मन भाषा में कुछ बोला। दुसरे आदमी ने उसे परे खींचने की कोशिश की। ‘‘मैं नहीं जाऊंगा,” वह क्रोधित स्वर में बोला, “बल्कि मैं उसे बताता हूँ।”उसने कुमारी मार्था के काउंटर को ड्रम की तरह बजाया। “तुमने मुझे बरबाद कर दिया, ” वह चिल्लाया, उसकी नीली आंखें उसके चश्मे के पीछे से जल रही थीं, “मैं तुम्हें बताऊंगा, तुम पागल हो गयी थीं, बूढ़ी बिल्ली!”
कुमारी मार्था धीरे से आलमारी से टिक गई और एक हाथ उसने अपनी रेशम की नीली पोशाक पर रखा। युवक ने कलाकार को कॉलर से पकड़ लिया। “चलो,” वह बोला, “तुमने बहुत कह दिया।” उसने क्रोधित होने वाले को घसीटकर द्वार से बाहर निकाल दिया और उसे सड़क पर छोड़कर वापस लौटा।
“मेरा ख्याल है कि आपको बता दूं मैडम,झगड़ा किस बातपर है, यह ब्लमवर्गर है। यह भवनों के मानचित्र बनाता है। मैं इसी के कार्यालय में काम करता हूं।वह एक भवन के मानचित्र के लिए तीन माह से कठोर परिश्रम कर रहा था। यह एक पुरस्कार प्रतियोगिता थी। उसने कल ही रेखाएं खींचने का कार्य समाप्त किया था। आपको पता ही होगा कि पहले रेखाएं पैंसिल से खींची हैं। इसके बाद पैंसिल से खींची गई रेखाएं बासी डबलरोटी के चूरे से रगड़कर मिटा दी जाती हैं। यह आईडिया रबर से अच्छा होता है। “ब्लमवर्गर यहां से डबलरोटी खरीदता था। खैर, आज…. वैसे आपको पता ही है मैडम , मक्खन… खैर, ब्लमवर्गर की योजना अब किसी काम की नहीं रह गई, सिवाय इसके कि टुकड़े होने के लिए रेल की पटरियों पर डाल दिया जाए।”
कुमारी मार्था पिछले कमरे में गई। उसने रेशम की नीली पोशाक उतार दी और वही पुरानी भूरी पोशाक पहन ली, जो पहले पहना करती थी, फिर उसने बोरैक्स वाला मिश्रण खिड़की से बाहर डस्टबिन के बर्तन में डाल दिया।
– ओ हेनरी (अमेरिकन लेखक)
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