Case – 1 तिरुवनंतपुरम में एक 19 वर्षीय युवक ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके पिता ने उसे हार्ले- डेविडसन बाइक खरीदने से मना कर दिया। कट्टायकोनम के पास रहने वाले अजीत कुमार के बेटे अखिलेश सोमवार सुबह अपने घर के बेडरूम में लटका पाया गया। 14 लाख की बाइक के लिए ज़िद कर रहे अखिलेश के पास पहले से ही 5 बाइक्स थी।जब उसने नई बाइक के लिए ज़िद कि तो उसके पिता ने आर्थिक तंगी का हवाला देकर कुछ महीने बाद बाइक दिलाने को कहा था,उसी के बाद से ही अखिलेश अपसेट हो गया था और एक सस्ती सी बाइक के लिए अपनी महंगी जान को उसने कुर्बान कर दिया।
Case -2 उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में 18 वर्षीय पारस ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर लथे।आत्महत्या करने की वजह भी चौंकाने वाली निकली ,वह अपनी मां से बुलेट मोटरसाइकिल और नया मोबाइल मांग रहा था। मां के मना करने पर उसने इतना कठोर कदम उठाया।
Case -3 माता-पिता द्वारा बाइक न खरीद पाने से निराश 18 वर्षीय पोथुराजू रंजीत कुमार ने रायकल मंडल के रामरावपल्ली में अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।पुलिस के मुताबिक, रंजीत कुमार पिछले कुछ समय से मांग कर रहा था कि उसके माता-पिता उसके लिए एक बाइक खरीद लें। गरीब माता-पिता दोपहिया वाहन की व्यवस्था करने में विफल रहे तो किशोर ने घर में रखे किटनाशक को पीकर आत्महत्या की कोशिश की। अस्पताल में इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
Case – 4 अरेरा हिल्स थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में रविवार को बाइक नहीं मिलने पर माता-पिता के मना करने से निराश 22 वर्षीय युवक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।युवक सुमित समुद्रे अपने माता-पिता से नाराज था, जो उसके लिए बाइक खरीदने के लिए सहमत नहीं थे। सुबह उसके माता-पिता काम पर गए और शाम को जब वे लौटे तो सुमित अपने घर में फांसी पर लटका मिला। पुलिस ने कहा कि फिलहाल मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है लेकिन जांच में पता चला है कि सुमित माता-पिता से बाइक की मांग कर रहा था और वे उसकी मांग को पूरा नहीं कर पा रहे थे।
ये तो हुए वो केस जिन्हें आपने न्यूज में देखा होगा या किसी newspaper में पढ़ा होगा। ऐसा नहीं है कि ये बस दो ही चार केस हैं ऐसे तमाम बिगड़े, नादान युवा आपने अपने आस-पास देखें होंगे या देख रहे होंगे जो बाइक या मोबाइल फोन के लिए घर वालों से झगड़ते हैं, खुद को परेशान करते हैं, भूखे रहतें हैं और घर वालों को भी परेशान करते हैं। लेकिन आज का मुद्दा ये केस नहीं बल्कि एक Rare Case हैं जो शायद लाखों में एक बार घटित होता हैं। मेरठ के जब दो भाइयों अक्षय और अनमोल को उनके पिता ने बुलेट बाइक दिलाने से मना कर दिया, तो उन्होंने घर पर ही बैटरी से चलने वाली बाइक तैयार कर ली। यह बाइक एक बार में 5 रुपए के मामूली से खर्चे पर 150 किलोमीटर तक का सफर तय कर सकती है। बढ़ते पेट्रोल के दामों में यह इलेक्ट्रिक बाइक लोगों के पैसे बचा सकती है और पर्यावरण को बचाने में भी कारगार है। दोनों भाइयों ने अपनी बाइक का नाम तेजस रखा है जोकि भारतीय सेना के विमान के नाम से प्रेरित हैं। उन्होंने यह बाइक मात्र 55 हज़ार के खर्च पर बनाई हैं। अक्षय एमए कर रहें हैं और अनमोल पॉलिटेक्निक के स्टूडेंट हैं। दोनों ने कॉलेज जाने के लिए यह बाइक 3 महीने में तैयार कर ली और अब वो दूसरों की मदद को भी तैयार हैं। उनका कहना है कि अगर कोई उनसे तेजस बाइक बनाने को कहेगा तो उसके लिए भी बना देंगे।
ये खबर पढ़ने के बाद मैंने सोचा कि अगर ये दोनों भी बाइक ना मिलने पर अखिलेश,पारस या रंजीत की तरह मौत को गले लगा लेते तो क्या होता? दो चार दिन खबरों में रहते,माँ-बाप की तस्वीरें छपती, लोग उन्हें बेचारेपन से देखते और फिर कुछ दिन में सारा लाइमलाइट दूर हो जाता और उनके माता-पिता हमेशा के लिए दुःख दर्द के अंधेरे में खो जाते। जिस तरह से आज दोनों भाइयों की चर्चा हो रही हैं,जिस तरह से लोग उनकी और तेजस की सेल्फी ले रहें हैं, जिस तरह से देश भर में, सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही हैं, जिस तरह से उनके पिता और दोस्त उनपर गर्व कर रहें हैं,क्या उनके आत्महत्या करने पर ये सब हो पाता? जवाब है नहीं।
अपनी किसी नासमझी के लिए,अपनी ज़िद के लिए अपने माँ-बाप को जिन्दगी भर का दर्द दे जाने वाले युवाओं को आप नादान,बेवकूफ,स्वार्थी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? लेकिन यहाँ पर गलती सिर्फ युवाओं की ही नहीं माँ बाप की भी है वो शुरू से ही अपने बच्चों की जायज-नाजायज ज़िद पूरी करते आए हैं जो भी बच्चों ने इच्छा की वो तुरंत पूरी हो गई ऐसे में धैर्य , सब्र, सहनशीलता जैसे गुण उनमे विकसित ही नहीं हो पाते और जब अचानक से उन्हें सब्र करने को कह दिया जाता हैं तो उन्हें गुस्सा,चिडचिड़ापन होने लगता हैं वो तनाव में जाने लगते हैं, या बड़ो से उलटी सीधी तरीके से बात करने लगते हैं और कभी-कभी अपनी ज़िद ना पूरी होने पर खुदकुशी से भी नहीं कतराते। हम case-1 में इसे साफ तौर पर देख सकते हैं।
खैर यहाँ parents को किनारे हटाकर teenagers/young लोगों की बात करते है जिन्हें लगता है उनके पापा एक एटीएम मशीन हैं जिससे जब चाहेंगे पैसा निकालेंगे और अपनी ख्वाहिश पूरी करेंगे जाकर। जो ये भी नहीं सोचते कि पापा कि जेब में जो हज़ार रूपए रखे हैं शाम को वो उन्होंने सुबह से कितनी मेहनत करके कमाए होंगे ! हैं एक बात बताइए आप लोग,क्या आपको लगता है कि आप अम्बानी के खानदान में पैदा हुए है जो बात मुँह से निकलते ही पूरी हो जाएगी याकि आप सोचते हैं कि वो आपके पेरेंट्स नहीं बल्कि कोई जादुई जिन्न हैं अगर ये भी नहीं तो इतना तो जरूर सोचते होंगे कि वो आपके नौकर हैं अगर ये बात भी नहीं हैं तो क्यों?किसलिए अपनी ज़िद के लिए उनसे फरमाइशें किया करतें हैं और क्या सोच कर? वेस्टर्न culture तो खूब फॉलो करते हो एक बात वहाँ की ये भी फॉलो कर लेते कि वहाँ के बच्चे 14 साल के होने के बाद खुद का खर्च चलाने के लिए अपना काम ढूंढ लेते हैं । और आप 20-22 साल के होकर भी अपने माँ-बाप से ये उम्मीद लगाते हैं कि वो आपको फोन दिलवाएंगे या बाइक दिलवाएंगे। अरे क्यों दिलवाये भाई? तुमको खिला-पिला कर इतना बड़ा कर दिया यही बहुत काफी हैं। तिस पर तुम्हें लगता हैं कि तुमने पैदा होकर उनपर बहुत अहसान कर दिया हैं और खुदा ना खास्ता लटक- लूटक के मर-मुरा जाओगे तो तुम्हारे माँ-बाप भी मर जाएँगे तुम्हारे पीछे। नहीं ऐसा नहीं है बल्कि धरती से एक बोझ ही कम होगा क्योंकि जो इंसान अपने पेरेंट्स के sacrifices को ना समझता हो, जिसे अपनी घर की स्थिति ना पता हो जो सिर्फ अपने बारे में सोचता हो जो अपने माँ-बाप से बदले की भावना रखता हो वो बोझ ही होता हैं धरती पर ना सही लेकिन समाज पर तो जरूर।
तो खुद डिसाइड करिये कि आपको समाज पर बोझ बनाना हैं या अपने माँ-बाप का सहारा। आपको अखिलेश,पारस या सुमित बनेंगे या अक्षय और अनमोल बनेंगे। जस्टिन बीबर 18 साल में करोड़पति बन गया था यहाँ अगर मैं उसका उदाहरण लूँ तो आपके पास बहाने भी हो सकते हैं इसीलिए मैंने इन दो भाइयों का उदाहरण लिया। जिन्होंने rejection को लाइफ का The end नहीं समझा बल्कि इसे लोगों को प्रेरित करने का जरिया बना लिया। उन्होंने अपने पिता से बदला लेने की नहीं ठानी बल्कि अपने हालात बदलने की ठानी। चाहते तो वो भी ज़हर खा लेते, नदी में कूद जाते या फांसी पर लटक जाते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वो जानते थे कि वो पागल नहीं हैं जो दिमाग ना चला सके,वो अपाहिज भी नहीं हैं जो उन्हें अपने माँ-बाप पर निर्भर रहना पड़े वो नादान भी नहीं हैं जो अपने पेरेंट्स की सिचुएशन ना समझ सके। और हाँ सबसे बड़ी बात तो ये कि वो समझते थे कि उनके पापा अम्बानी नहीं हैं जो झट से बात निकलते ही फट से पूरी हो जाए। अब आप बताइए आप कब समझ रहे हैं ये सारी बात?
और हो सके तो ये भी सोच लीजियेगा कि बहन-भाई, मम्मी-पापा,दोस्त इन सब पर एक मशीन भारी पड़ जाए तो आप खुद को इंसान कहला सकोगे? जिस उम्र में लोगों को अपने सपनो के लिए दौड़ना चाहिए,प्यार के लिए भागना चाहिए दोस्ती निभानी चाहिए उस उम्र में एक छोटी सी ज़िद पर अड़ कर जिन्दगी खत्म कर लेना किस समझदारी की निशानी हैं। मान लीजिये कि ज़िद करके आपको बाइक मिल गई फोन मिल गया लेकिन जब आपको कभी कोई दिक्कत होगी तो आपका साथ कौन देगा दोस्त, बहन, पेरेंट्स की आपकी ये मशीन?