क्रिसमस का दिन था, सांझ ढल चुकी थी । मारिया भट्ठी पर बहुत देर से खर्राटे भर रही थी। लैम्प का सारा कैरोसिन जल चुका था, पर फ्योदर नीलोव अभी तक बैठा काम कर रहा था। उसका बहुत मन कर रहा था कि काम बन्द कर दे और बाहर जाये, पर दो हफ़्ते पहले कलाकोलनी नुक्कड़ वाले ग्राहक ने जूतों का ऑर्डर दिया था। वह कल ही आकर उसे बुरा-भला कह गया था और साथ में हुक्म दिया था कि किसी भी हालत में उसके जूते सुबह तक तैयार हो जाने चाहिए। “कैदियों जैसा जीवन है”, फ्योदर काम करते हुए बड़बड़ाया, “कुछ होते हैं, जो देर तक सोते हैं, कुछ देर तक मस्ती करते हैं और तू है कि हत्यारे की तरह बैठा है और सिलाई कर रहा है ।”
कहीं अनजाने में उसे नींद न आ जाये इसलिए वह थोड़ी-थोड़ी देर में मेज़ के नीचे रखी बोतल निकालता और एक घूँट पीता और हर घूँट के बाद अपना सिर हिलाता और ज़ोर से कहता, “जरा कोई बताये ये ग्राहक क्यों मस्ती में घूमते रहे और मैं यहाँ बैठा उनके जूते बनाता रहूँ? सिर्फ़ इसलिए कि उनके पास पैसा है और मैं ग़रीब हूँ?”
वह सब ग्राहकों से घृणा करता था। ख़ासकर उससे, जो कलाकोलनी नुक्कड़ पर रहता था। इन महाशय का चेहरा हमेशा ज़र्द और उदास रहता था, नाक लम्बी थी। वह बड़ा नीला चश्मा लगाया करता था और आवाज़ उसकी भारी थी। उसका कुलनाम जर्मन था, वह भी ऐसा कि उसको बोला ही नहीं जा सकता था। वह क्या करता था और उसका क्या ओहदा था, कोई नहीं जानता था । जब दो हफ़्ते पहले फ़्योदर उसके यहाँ नाप लेने गया, तो वह ज़मीन पर बैठा तन्दूर में हवा भर रहा था। अभी फ़्योदर नमस्कार भी नहीं कर पाया था कि धौंकनी की मश्क अचानक फूल गयी और सुर्ख लपटों में आग जल उठी। ताज़े मुर्गे के परों की भुनने की बू फैल गयी और कमरा घने लाल रंग के धुएँ से भर गया और इसलिए फ़्योदर को छींक आ गयी। घर वापस लौटते हुए वह सोच रहा था, जो ख़ुदा से डरता है, वह ऐसे काम नहीं करेगा। जब बोतल पूरी ख़त्म हो गयी। फ़्योदर ने जूते मेज पर रखे और सोचने लगा। उसने अपने भारी सिर को मुट्ठी से ऊपर उठाया और अपनी ग़रीबी और उदास और आशाविहीन ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगा, फिर धनवानों, उनके बड़े-बड़े मकानों, उनकी घोड़ागाड़ियों और हज़ारों नोटों के बारे में सोचने लगा। कितना अच्छा होता, अगर इन धनवानों के घरों में दरारें पड़ जातीं, घोड़े घुटकर मर जाते, उनके फरकोट बदरंग हो जाते और हैट सूख जाते! कितना अच्छा होता, अगर धनवान धीरे-धीरे भूखे और ग़रीबों में तबदील हो जाते। वह खुद एक ग़रीब मोची एक धनवान में तबदील हो जाता और तब वह बड़े दिन की शाम पर ग़रीब मोची को बुरा-भला कहता, उसे डाँटता-फटकारता। इस तरह का सपना देखते हुए फ़्योदर को अचानक अपना काम याद आ गया और उसने अपनी आँखें खोल लीं। कलाकार- ओ हेनरी
“क्या कहानी है?” जूतों को देखते हुए वह सोच रहा था। जूतों के ऊपर का चमड़ा तो कब का तैयार हो गया और मैं हूँ कि सिये जा रहा हूँ। इनको अब ग्राहक के पास ले जाना चाहिए। उसने जूतों को लाल रूमाल में लपेटा, कपड़े पहने और बाहर चला गया। सुइयों की तरह तेज़ चुभती हुई बर्फ़ पड़ रही थी। बहुत ठंड थी, अँधेरा था, कैरोसिन लैम्प बहुत उदास रोशनी फेंक रहे थे। जाने क्यों सड़क पर कैरोसिन की इतनी तीखी बदबू आई कि फ़्योदर खाँसने लगा और खाँसते-खाँसते हाँफ गया। पुल की तरफ़ जाने वाली सड़क पर धनवान जा रहे थे। हर किसी के हाथ में बहुत सा खाने का सामान और ढाई सौ ग्राम बोदका थी। घोड़ागाड़ियों की खिड़कियों में और स्लेज से धनवानों की पलियाँ उसे देख रही थीं, उसे चिढ़ा रही थीं और हँसते-हँसते कह रही थीं, “भिखारी! भिखारी !” फ़्योदर के पीछे आ रहे थे छात्र, अफ़सर, महाजन और जनरल उसे चिढ़ा रहे थे, “शराबी शराबी! मोची! जूते की नोक! भिखारी!”
ये सब उसे ज़लील करने की बात थी, पर फ़्योदर चुप रहा और गुस्से सिर्फ़ थूकता रहा। जब उसे वारसा का दूसरा मोची कुज़्मा लेबेदनीकी मिला और उसने बताया, “मैंने एक धनवान महिला से शादी कर ली। अब मेरे नीचे मोची काम करते हैं और तू वैसा ही भुक्खड़ और ग़रीब रह गया।” फ़्योदर अपने को काबू में न रख सका और उसे मारने के लिए दौड़ा और तब तक भागता रहा, जब तक वह कलाकोलनी नुक्कड़ नहीं पहुँच गया। उसका ग्राहक कोने से चौथे ब्लॉक में सबसे ऊपर की मंजिल के फ़्लैट में रहता था। उसके फ़्लैट तक पहुँचने के लिए एक लम्बा और अँधेरा आँगन पार करना पड़ता था और उसके बाद फिसलनभरी हिलती हुई कमज़ोर सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती थीं। जब फ़्योदर उसके घर के अन्दर पहुँचा, तो वह पहले की तरह, यानी दो हफ़्ते पहले की तरह वैसे ही फ़र्श पर बैठा था और कुछ तन्दूर में भून रहा था।
“हुजूरे अनवर, आपके जूते लाया हूँ।” फ़्योदर ने बड़ी उदासी में कहा। ग्राहक उठा और चुपचाप जूते पहनने लगा। फ़्योदर उसे पहनने में मदद करने के लिए एक घुटने पर झुका और उसका पुराना जूता उतार दिया,ग्राहक के इन्सानों जैसे पैर नहीं थे, वे तो घोड़े के खुर थे पर तभी वह उछला और डर के मारे बाहर दरवाज़े की तरफ़ भागा। “उफ़,” फ़्योदर ने सोचा, “यह बात है!” ऐसे में उसे सबसे पहले छाती पर क्रॉस बनाना चाहिए था, फिर सब कुछ वहीं छोड़कर नीचे भागना चाहिए था, पर तभी उसने सोचा कि शायद शैतान उसे पहली और आखिरी बार मिल रहा था और उसकी सेवाओं का लाभ न उठाना बेवकूफ़ी होगा। उसने अपने आपको सँभाला और क़िस्मत आज़माने का तय किया। अपने हाथों को कमरे के पीछे बाँधा, जिससे वह क्रॉस न बना पाये। वह बड़े अदब से खाँसा और उसने कहा, “कहते हैं, शैतान से ज़्यादा तो बुरी ताक़त कोई नहीं होती, पर हुजूरे अनवर, मैं समझता हूँ कि शैतान सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा होता है। माफ़ कीजिए, शैतान के खुर और दुम होते हैं, पर दिमाग़ किसी भी छात्र से कहीं ज़्यादा होता है।” Son – मैक्सिम गोर्की
“इस तारीफ़ का शुक्रिया”, तारीफ़ सुनकर ग्राहक ने कहा”शुक्रिया, मोची, तेरी क्या इच्छा है?” बिना वक़्त गँवाये मोची ने अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया। उसने कहा कि वह बचपन से धनवानों से जलता था। उसे हमेशा शरम आती थी। यह देखकर कि सभी आदमी एक सी ज़िन्दगी नहीं जी रहे हैं। सभी बड़े मकानों में नहीं रह रहे हैं और न ही सभी ख़ूबसूरत घोड़ों पर सवारी कर रहे हैं। एक सवाल पूछा जा सकता है, वह ग़रीब क्यों है? वह किस तरह वारसा के कुज़्मा लिवेदनीकी से कम है। उसके पास अपना घर है और उसकी बीवी हैट पहनकर घूमती है। उसकी नाक, हाथ, पैर, सिर, कमर सभी तो धनवानों का सा है, तो क्यों वह मेहनत करने लिए शापित है, जबकि और दूसरे मस्ती करते हैं? मारिया क्यों उसकी पत्नी है? वह औरत, जिसमें से इतर की खुशबू आती है, क्यों उसकी पत्नी नहीं ग्राहकों के घरों में अकसर ख़ूबसूरत राजकुमारियाँ देखने में आती हैं, पर वे उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं देतीं। वह सिर्फ़ हँसा करती हैं और एक-दूसरे के कानों में फुसफुसाया करतीं हैं कि इस मोची की नाक कितनी सुर्ख है? यह सच है कि मारिया अच्छी, नेकदिल और कमेरी है, पर वह अनपढ़ है और उसका हाथ सूजा हुआ है और बहुत दर्द करता है। अगर कभी उसके सामने राजनीति या किसी बुद्धिमानी की बात करनी शुरू कर दी जाये, तो वह एक हंगामा खड़ा कर देती है।” “तू क्या चाहता है?” बीच में रोकते हुए ग्राहक ने पूछा। “हुजूरे अनवर, शैतान इवानिच, आपका रुतबा बुलन्द रहे मुझे रईस आदमी बना दो।”
“ठीक है, इसके लिए तुझे अपनी आत्मा मुझे देनी होगी। अभी परिन्दों ने चहचहाना शुरू नहीं किया है, जा और इस काग़ज़ पर लिख दे कि तूने अपनी आत्मा मुझे दी और अपने दस्तख़्त कर दे।”
“हुजूरे अनवर,” फ्योदर ने बड़े अदब से कहा, “जब आपने मुझे जूते बनाने को कहा था, तो मैंने आपसे कोई एडवांस नहीं लिया था। पहले काम पूरा होना चाहिए, तभी पैसे की माँग करनी चाहिए।
“चलो, ठीक है।” ग्राहक मान गया। अचानक तन्दूर में एक सुर्ख लपट उठी, घना गुलाबी धुआँ फैल गया और ताज़ा मुर्गे के परों के जलने की बदबू कमरे में भर गयी। धुआँ छँट जाने के बाद फ़्योदर ने अपनी आँखें मलीं और देखा कि वह न तो अब फ़्योदर है और न ही मोची, बल्कि कोई दूसरा ही आदमी है, जिसके गले में माला है, जिसने गोटे की बास्कट और नयी पतलून पहनी हुई है और वह एक बड़ी मेज के सामने आरामकुर्सी में बैठा झूल रहा है। दो नौकर उसे खाना खिला रहे थे। अदब से नीचे सिर झुकाए हुए कह रहे थे, “हुजूरे अनवर, थोड़ा और खाइए, पेट भर खाइए।” बेर्तोल्ट ब्रेख्त की कहानियाँ
क्या रईसी है? नौकरों ने भैंसे के गोश्त का एक बड़ा टुकड़ा और खीरे से भरी सूप की प्लेट आगे सरकायी, इसके बाद कढ़ाई में भूनी हुई बतख लाये, थोड़ी देर के बाद सूअर का जैम। यह सब कितना रोचक और अच्छा है! फ़्योदर खाता रहा और हर चीज खाने से पहले सबसे अच्छी वोदका पीता रहा, मानो कोई जनरल हो या राजकुमार। सलामी के बाद उसे चर्बी भरा सूप पिलाया गया, फिर सूअर की चर्बी में बनाया गया आमलेट और भुना हुआ लीवर खिलाया गया। उसने सब मज़े ले-लेकर खाया।… और कुछ? उसे फिर खिलाया गया प्याज का केक, पिलाया गया साथ भाप में बनाया गया शलजम । उसने सोचा, कैसे ऐसा खाना खाने के बाद भी धनवान आदमी मोटे नहीं होते?… खाना हो जाने के बाद शैतान नीला चश्मा पहने हुए प्रकट हुआ, अदब से झुका, “फ़्योदर पेंतलोविच, आप खाने से सन्तुष्ट हैं?
पर फ़्योदर का पेट इतना अफर गया था कि वह एक शब्द नहीं बोल पाया। यह तृप्ति बड़ी ही भारी और दुखदायक थी। अपने आपको थोड़ा आराम देने के लिए उसने अपने बायें पैर के जूते का मुआयना शुरू किया।
‘‘ऐसे जूतों के लिए मैं कम से कम साढ़े सात रूबल लेता। यह किस मोची ने बनाये हैं?” उसने पूछा।
“कुज़्मा लिबेदकीन ।” कोचवान ने जवाब दिया। “उस बेवकूफ़ को फौरन तलब किया जाये।” फौरन बारसा के क़ुज़्मा लिबेदकिन को हाज़िर किया गया। वह बड़े ही अदब से दरवाज़े पर झुका खड़ा रहा और वहीं से पूछा, “क्या हुक्म है, हुज़ूरे अनवर?”
“ख़ामोश!” फ़्योदर चिल्लाया और अपने पैर पटके, “बहस करने की ज़रूरत नहीं है और याद रख कि तू सिर्फ़ एक मोची है। बेवकूफ़, तुझे तो जूते सीने भी । नहीं आते। मैं तेरी पिटाई कर दूँगा। तू क्यों आया है?”
“पैसे के लिए, हुजूर ।”
“कौन से पैसे? कैसे पैसे? दफ़ा हो जा! शनिवार को आना। ऐ इन्सान, इसकी गुद्दी पर एक घूँसा मार!”
तभी उसे याद आया, कैसे ग्राहक उससे बदतमीज़ी से बात किया करते थे और तब उसका मन भारी हो जाया करता था। तब उसने अपना मन हलका करने के लिए जेब में से नोटों का बंडल निकाला और उन्हें गिना। नोट बहुत थे पर वह और ज़्यादा चाहता था। नीला चश्मा पहने शैतान एक और पहले से मोटा बंडल ले आया, पर उसे और बड़े बंडल की चाह होने लगी। जितनी ज़्यादा देर तक वह नोट गिनता, तो और ज़्यादा असन्तुष्ट हो जाता।
शाम में शैतान लाल कपड़ों में एक लम्बी और गदरायी औरत ले आया और कहा, “यह उसकी नयी पत्नी है।” रात तक वह उसे चूमता रहा और केक खाता रहा। रात में वह गुदगुदे और नर्म बिस्तर पर लेट गया। रात-भर करवटें बदलता रहा, पर किसी भी तरह सो नहीं पाया। वह सारी रात बहुत बेचैन रहा। “बहुत पैसा है”, उसने अपनी पत्नी से कहा, “ध्यान रख, चोर चुरा ले जायेंगे। तू मोमबत्ती लेकर जा और सारा घर देख आ । ”
सारी रात वह नहीं सोया और बीच-बीच में उठकर देखता रहा, सन्दूक ठीक है या नहीं। पौ फटते ही सुबह की प्रार्थना के लिए गिरजाघर जाना था। गिरजाघर में तो ग़रीब-अमीर सभी का बराबर का दर्ज़ा होता है। जब फ़्योदर ग़रीब था, तो यह प्रार्थना किया करता था, “हे ईश्वर, मुझ पापी को माफ़ कर!” अब अमीर होने के बाद भी वही प्रार्थना कर रहा था। आख़िर फ़र्क़ क्या है? मरने के बाद अमीर फ़्योदर को सोने और हीरों में तो नहीं दफ़न करेंगे; करेंगे तो इसी काली मिट्टी में, जिसमें गरीब को दफन करते हैं। फ़्योदर भी उसी आग में जलेगा, जिसमें और दूसरे मोची। फ़्योदर को बहुत शरम आई और तभी उसका सारा बदन अकड़ गया और प्रार्थना के बजाय उसके मन में नोटों से भरे सन्दूक़, चोरों और अपनी विकी और मरी हुई आत्मा के बारे में काफी ख़्याल आये।
गिरजाघर से वह गुस्से से भरा निकला। इन बुरे ख़्यालों को मन से निकालने के लिए उसने हमेशा की तरह ज़ोर से गाना शुरू कर दिया। उसने गाना शुरू किया ही था कि तभी पुलिसमैन भागता हुआ उसके पास आया और झुककर अभिवादन करके कहा, “ऐ बैरन, कुलीनों को सड़क पर गाना मना है। आख़िर आप कोई मोची नहीं हैं।”
फ़्योदर ने अपनी कमर बाड़ से सटाई और सोचने लगा, किस तरह इन ख़्यालों से छुटकारा पाऊँ?
‘“ऐ बैरन,” दरवान ज़ोर से चिल्लाया, “बाड़ से ज़्यादा न सटे, फरकोट गन्दा हो जायेगा।”
फ्योदर फिर पास की दुकान में गया और अपने लिए सबसे अच्छा हारमोनियम खरीद लिया, फिर वह सड़क पर चलने लगा और बजाने लगा। अब आते-जाते लोग उसकी तरफ उँगलियाँ उठाते और हँसने लगते।
“यह भी कुलीन है।” कोचवान उसका मजाक उड़ा रहे थे, “कोई मोची लगता हैं।
“कुलीन को बदतमीज़ी नहीं करनी चाहिए।” पुलिसमैन ने उससे कहा, “इससे अच्छा तो आप किसी पब में चले जायें!” “हुजूर ईसा मसीह के नाम पर भीख दे दीजिए।” भिखारियों ने उसे चारों तरफ से घेरते हुए कहा, “कुछ भीख दे दीजिए।” पहले जब वह मोची हुआ करता था, तो भिखारी उसकी तरफ देखते तक नहीं थे और अब उसे रास्ता नहीं दे रहे हैं। घर पर हरा ब्लाउज और लाल स्कर्ट पहने उसकी नयी पत्नी ने उसका स्वागत किया। वह उसे प्यार करना चाहता था, पर तभी उसकी कमर पर एक घूंसा मारने के लिए उसने उसे घुमा दिया और पत्नी ने बड़े ही गुस्से से कहा, “मज़दूर बदतमीज़! बात करने की भी तमीज नहीं है। अगर प्यार करते हो, तो हाथ चूमो धक्का-मुक्की करना मना है।”
“उफ, ज़िन्दगी अजब हो गयी है।” फ्योदर सोच रहा था, “इन्सान जीते हैं, पर तू गाना नहीं गा सकता, हारमोनियम नहीं बजा सकता, औरतों के साथ मजाक नहीं कर सकता… अभी वह पत्नी के साथ चाय पीने बैठा ही था कि नीले चश्मे में शैतान आ गया और कहने लगा, “सो, फ्योदर पॅसोलविच, मैंने अपना वादा पूरा किया। अब आप इस काग़ज़ पर दस्तखत कर दीजिए और अपनी आत्मा मुझे दे दीजिए। अब आप समझ गये हैं, अमीर होने का क्या मतलब होता है?” और शैतान उसे नर्क में ले गया सीधे भट्ठी के पास और उसके चारों तरफ़ मूल इकट्ठे हो गये और चिल्लाने लगे, “बेवकूफ़! बदतमीज़! गधा!” नर्क में कैरोसीन की बदबू उसका दम घोट रही और तभी अचानक सब कुछ गायब हो गया। फ्योदर ने आँखें खोलीं और अपनी मेज़ और देखे, वही जूते और टीन का लैम्प। लैम्प का शीशा और हलकी लौ में से बदबूदार धुआँ आ रहा था। वैसे ही, जैसे से आता है। साथ ही नीला चश्मा पहने एक ग्राहक खड्ड़ा गुस्से में चिल्ला रहा था, “बेबकूफ़! बदतमीज! गधा! मैं अभी तुझे बताता हूँ, बेवकूफ़!
देखा, वही काला हो गया था भट्ठी के पाइप में दो हफ्ते पहले ऑर्डर दिया था और जूते अभी तक तैयार नहीं है। तू समझता है, मेरे पास तेरे चक्कर लगाने के लिए वक़्त ही वक्त है। बदमाश! धोखेबाज।”
फ़्योदर ने सिर हिलाया और जूते सीने लगा। ग्राहक देर तक उसे धमकाता रहा और गालियाँ देता रहा। आखिर जब उसका गुस्सा ठंडा हुआ, तो फ्योदर ने बड़े अदब से पूछा, “हुजूर, आप क्या करते हैं?”
“मैं आतिशबाजी बनाता हूँ। में आतिशबाज हूँ।”
सुबह की प्रार्थना का घंटा बज उठा। फ्योदर ने उसके जूते दिये, पैसे लिये और गिरजाघर की तरफ चल दिया।
सड़क पर आगे और पीछे रीछ की खाल से ढकी स्लेज खड़ी थीं। पटरी पर गरीब आदमी, व्यापारी, अफ़सर और कुलीन साथ-साथ चल रहे थे, पर फ्योदर अब अपनी क़िस्मत पर न तो रो रहा था और न ही अफ़सोस कर रहा था। उसे लगा कि ग़रीब और अमीर दोनों एक से ही बेवकूफ हैं। एक स्लेज में बैठकर आते हैं और दूसरे जोर से गा सकते हैं, हारमोनियम बजा सकते हैं और देखा जाये, तो दोनों का अन्त एक ही है। एक क़ब्र और जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए शैतान को अपनी आत्मा का एक छोटा-सा अंश भी बेचा जा सके।