रेडियो का ये सदाबहार जादू “कल भी आज भी” और आगे भी कायम रहेगा
रेडियो एक उपकरण है जिसके द्वारा सूचनाओं को संकेतों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। रेडियो में, विद्युत चुम्बकीय तरंगों को ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह ध्वनि को छोटी और लंबी दूरियों तक पहुंचाता है ताकि मानव कान सुन सके।” रेडियो की ये परिभाषा वैज्ञानिकों द्वारा दी गई है।
“रेडियो एक ऐसा हमसफर है जो भावनाओं को संगीत के रूप में बदलकर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाता हैं, ताकि हर व्यक्ति का दिल उसे सुन सके। यह छोटी दूरी हो या लम्बी दूरी, एक स्थान से दूसरे स्थान हर वक्त आपके साथ रहता है।” ये परिभाषा हैं हम जैसे रेडियो प्रेमियों की।
रेडियो के प्रारूप के लिए जर्मन भौतिक विज्ञानी हेनरिक हर्ट्ज़ को जाना जाता है । रेडियो बनाने की शुरुआत 1880 से शुरू हुई थी। रेडियो पर ऑडियो की शुरुआत दिसंबर 1906 में ब्रांट रॉक, मैसाचुसेट्स (बोस्टन के दक्षिण में) से की गई थी। 1908 में इसका वायरलेस प्रारूप बनाया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान लोगों का रेडियो सुनने का शौक परवान चढ़ा। सैनिक भी इसका उपयोग संदेशों के आदान-प्रदान में करने लगे।
भारत में पहला रेडियो प्रसारण जून 1923 में बॉम्बे के रेडियो क्लब द्वारा किया गया था। रेडियो टेलेक्स और रेडियो नेविगेशन के बाद 1933 में एडविन एच. आर्मस्ट्रांग द्वारा एफएम रेडियो का पेटेंट कराया गया। इस तरह दिन-प्रतिदिन होतें परिवर्तनों के साथ रेडियो भी बदलता गया, जिसके बाद रेडियो लोगों की जीवनशैली में शामिल हो गया। सिर्फ शामिल ही नहीं बल्कि उनके मनोरंजन के साधन के साथ दुःख-सुख का साथी भी बनता गया।
एक समय जब मोबाइल फोन दुर्लभ कोटि की श्रेणी में आतें थें तब रेडियो ही था जो लोगों के दिलों का पूरा ख्याल रखता था। जब अख़बार की पहुँच हर घर तक नहीं होती थी तो लोग रेडियो को कान से लगा कर देश दुनिया की खबरें इकठ्ठा करतें थें। जब टीवी पर आने वाले प्रोग्राम्स बड़े लोगों तक सीमित थें ,तब रेडियो पर आने वाले प्रोग्राम्स आमजन का मनोरंजन करते थें।
धीरे-धीरे समय ने करवट ली और रेडियो का स्थान लेने के लिए कई मशीने बाजार में आ गई जिससे रेडियो के क्रेज पर असर तो पड़ा लेकिन रेडियो का जादू बरकरार रहा।
बाजार में उतरे फोन रेडियो एप्लिकेशन तो साथ में लाएं लेकिन वो जुड़ाव वो अपनापन नहीं ला सकें जो रेडियो में था। रेडियो की तरह सब को इकठ्ठा करने की शक्ति नहीं ला सकें। फोन में बजते FM ने कानों को तो जगा दिया लेकिन रेडियो की तरह घर के आंगन को ,कमरों को और लोगों को नहीं जगा सका।
सुबह चिड़ियों की मीठी आवाज को टक्कर देने वाले विविध भारती के प्रोग्राम्स को फोन कहीं से भी नहीं पकड़ पाया। फोन को हाथ में लिए घर के काम निबटाना आज का चलन तो हो सकता हैं लेकिन रेडियो बजा कर काम करने की परंपरा को कभी तोड़ा नहीं जा सकता।
मुझे संक्रमण काल में उत्पन्न हुई इस जेनरेशन पर कभी तरस आता हैं तो कभी दुःख क्योंकि इन्होने रूह को सुकून पहुँचाने वाली कई सारी चीजें मिस कर दी हैं जिनमें रेडियो भी शामिल है।
आज की कमरे में बंद होकर नेटफ्लिक्स देखने वाली जेनरेशन कभी समझ ही नहीं पाएगी कि चांदनी रात में छत पे लेट कर रेडियो पे रजनीगन्धा सुनने का सुकून क्या होता है ? इयरफोन लगा कर सड़को पर चलते हुए खुद को “Cool ” समझने वाले आजकल के ये बच्चे जान ही नहीं पाएंगे कंधे पर रेडियो रख कर पूरा मोहल्ला घूम आने का स्वैग क्या था। फोन में अपने मन की प्ले लिस्ट सजाने में मशरूफ आज ये लोग “बिनाका माला” के जादू को महसूस भी नहीं कर सकतें।
ये इन लोगों का दुर्भाग्य हो सकता है लेकिन वो लोग जो आज भी रेडियो के उतने ही दीवाने हैं जितने कल थें तो आप बहुत ही लकी है क्योंकि आपके पास एक सदाबहार दोस्त है जो आपकी भावनाएं समझता हैं ।
जब आप खुश होतें हैं तो रेडियो पर आतें गाने में खुद को देखते हैं जब उदास होतें हैं तो लगता है मन्ना डे, मोहम्मद रफी ने आपको ही आवाज दी है। हर वक्त अलग-अलग चैनल पर आतें सुनने वाले गीत आपको वो दुनिया दिखा देतें हैं जो आपने देखी ही नहीं।
ज़रा से अकेलेपन को रेडियो जिस खूबसूरती से हैंडल करता हैं उतना तो शायद सिर्फ शराब ही करती हो ! किसी से माफ़ी मांगनी हो , किसी को प्रपोज करना हो रेडियो हर वक्त तैयार रहता हैं। RJ अनमोल और अमृता राव की लव स्टोरी कितनी ही बार सुनी होगी आपने !
बदलते वक्त में चाहे जितने भी पॉडकास्ट आएं, स्पॉटिफाई , जिओ म्यूजिक ,जिओ सावन जैसे माध्यम कभी भी रेडियो की फ्रीक्वेन्सी जैसा मज़ा नहीं दे सकते। एक टच से भले ही गाने बदल जाए या वाल्यूम तेज-धीमा हो जाए लेकिन रेडियो में उंगलियों से घूमा-घूमा कर चैनल चेन्ज करने में जो राहत है उसे नहीं पाया जा सकता।
इसीलिए इतनी तेजी से डिजिटल होती इस दुनिया में रेडियो कभी लुप्त नहीं हो सकता , उसका फॉर्म बदल सकता हैं, बॉडी शेप चेन्ज हो सकता है लेकिन रेडियो कभी भी रिप्लेस नहीं किया जा सकता । रेडियो ऐतिहासिक है और रहेगा । ये बात यूनेस्को भी जानता है तभी तो 3 नवंबर, 2011 को, यूनेस्को ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में घोषित किया ।
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