ये जो कुछ भी हो रहा था किसी को समझ नहीं आ रहा था। दानिश को बार-बार शॉक दिए जा रहें थें।लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं था। हॉस्पिटल के बेड पर उसे जानवरों के जैसे कस के बांधा गया था ताकि वो भाग न सके। डॉक्टर को थोड़ी-थोड़ी देर में उसे बेहोशी की दवा देनी पड़ रही थी क्योकि थोड़ी ही देर में पहली वाली दवा का असर खत्म हो जा रहा था।
और वो होश में आते ही चीखने लगता था , “नहीं विक्रांत….नहीं. .. सान्या भाग तू…. ये तो अपनी दीप्ति है यार देख…देख तो कैसी हो गई हैं. …वीकू भाई…. तू ऐसा अच्छा नहीं लगता मैं तो तेरा दोस्त…नहीं जलाऊंगा नहीं.. फाड़…”। डॉक्टर्स का मानना था कि दानिश को विक्रांत की मौत का सदमा लगा है इसीलिए वो ऐसा हो गया है। घर वाले भी यही बात मान रहें थें क्योंकि दोनों की दोस्ती बचपन से ही गहरी थी। दानिश के पिता विक्रांत के पापा को सांत्वना देने आएं थें लेकिन अब हाल ये हो गया था लोग उन्हें सांत्वना दे रहें थें। विक्रांत का अंतिम संस्कार करने के बाद आधे लोग वापस हॉस्पिटल आ गएँ थें। उन्हें उम्मीद थी कि दानिश शाम तक होश में आने के बाद नॉर्मल हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि जितनी बार भी होश में आया उससे ज्यादा ही उसकी तबियत खराब हुई।
दो दिन सबके सामने मजबूत बनने का ढोंग करने वाली सान्या अपने घर में पहुँच कर दरवाजा बंद करते ही चीख-चीख के रोने लगी। उसके अंदर सबकुछ खाली हो चुका था सब कुछ। उसे लग रहा था कि उसने अपनी जिंदगी खो दी हैं। अपनी आँखों के सामने उसने दो दोस्तों को तड़प-तड़पकर कर मरते देखा और एक दोस्त को पागल होते। उसे कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि ये सब क्यों हो रहा हैं उसके साथ। अभी 2 साल पहले ही सब कॉलेज से निकले थें। सबके पास नई आँखे थीं सबके पास नए सपने थें। निकित और दीप्ती अपने नाम के रिसर्च पेपर निकलवाना चाहतें थें, कुछ नया डिस्कवर करना चाहते थें जो अभी तक इतिहासकारों से ,पुरातत्वविदों से काफी दूर हो। दानिश को नीली बत्ती चाहिए थी और विक्रांत तो बस अपनी बॉडी का शो ऑफ करके दुनिया जीत लेना चाहता था।लेकिन सबके सपने मिट्टी में मिल गएँ उन्हीं लोगों के साथ। निकित जिंदा है या नहीं और अगर है तो कहाँ हैं, विक्रांत की खबर सुनी नहीं होगी क्या?
कॉलेज में सब कहते थें कि ये ग्रुप कुछ जरूर करेगा लेकिन किसी को क्या पता था कि आगे जिन्दगी उनके लिए क्या कांटे बो रही है। 7 लोगों के उस ग्रुप में सिर्फ 3 ही लोग एक-दूसरे के साथ हैं ,सही-सलामत हैं बाकी दोस्तों ने दगाबाजी कर दी? भला दोस्ती में इतना बड़ा दगा कोई देता हैं? सब के सब कायर थें जिन्दगी से डर गएँ।
सान्या के आंसू जैसे ही सूखने लगते उसे तुरंत ही दानिश का चेहरा याद आ जाता और वो फिर फफक पड़ती। बड़ी मुश्किल से खुद को सँभालने की कोशिश कर रही थी लेकिन हो ही नहीं पा रहा था जबकि जानती थी दानिश के परिवार को जरुरत है उसकी,वीकू के माँ-पापा को हौसला मिलता है उससे और उर्वी और पायल को कबीर कब तक अकेले देखेगा । आखिरकार सान्या ने हिम्मत की और उठ कर अपने कमरे में चली गई।
सान्या कमरे की लाइट बंद करके सोने ही वाली थी कि उसकी नजर किताबों की सेल्फ में रखी लाल डायरी पर पड़ी। वो हैरान रह गई कि वो डायरी वहाँ कैसे पहुँची? सान्या ने हाथ में लेकर देखा तो लग रहा था कि काफी वक्त से ही वहीं रखी हो। क्या दानिश इसे साथ नहीं ले गया था? शायद नहीं ! लेकिन लेने तो इसे ही आया था फिर…? लेकिन कॉल भी तो आ गया था पायल का तो सभी भागते हुए पहुंचे थें ऐसे में किसी को क्या ले जाने का होश रह गया होगा भला? दानिश भी ये डायरी जल्दी में यहीं छोड़ गया होगा। सान्या ने वो डायरी अपनी टेबल पर रख ली और पढ़ने बैठ गई।
डायरी के कवर पर हाथ घुमाते हुए सान्या सोच रही थी कि इतनी खूबसूरत डायरी पर कोई खाल क्यों चढ़ाएगा वो भी इंसान की! क्या ये सिर्फ उन लोगों का भ्रम था या वाकई में ये हकीकत है ? जो भी हो लेकिन कुछ तो खास है इसमें , बहुत खास। यही सोचते हुए सान्या ने डायरी का पहला पेज खोल दिया। पहले ही पेज पर खूबसूरती से लिखें नामों को देख कर उसका दिल ही आ गया। उस वक्त के लोग पंख और स्याही से जितना बढ़िया लिख लेते थें उतना अच्छा तो आजकल के महंगे-महंगे पेन भी नहीं लिख पाते हैं। कुछ नहीं हाथ चलाने की कला हैं बस । सान्या ने उसे निहारते हुए दूसरा पन्ना भी खोल दिया । अभी पढ़ना शुरू भी नहीं कर पायी थी कि उसे लगा कि कोई उसके घर का दरवाजा पीट रहा हैं।ध्यान से सुनने की कोशिश की तो वो आवाज दोबारा नहीं आयी। उसने फिर से पढ़ने के लिए खुद को तैयार किया और इस बार भी अभी दो लाइन भी नहीं पढ़ सकी थी फिर से दरवाजे पर बहुत तेज-तेज दस्तक हुई। सान्या का सारा ध्यान फिर हट गया उसने दरवाजे की तरह कान लगाए, हाँ शायद सच में कोई दरवाजे पर था या है ? लेकिन इस वक्त..? उसने खड़ी की तरफ देखा ढाई बजने के करीब था । इतनी रात में कौन हो सकता है ? सान्या उठकर हॉल की तरफ चल दी।
दरवाजे के छेद से देखा तो कुछ धुंधला सा चेहरा दिखा। उसने दरवाजा खोला तो वो तुरंत अंदर आ गया उजाले में उसका चेहरा साफ दिख रहा था ।
निकित तुम..? इतने दिन बाद वो भी इतनी रात में ? दीप्ति की मौत के इतने दिनों बाद अचानक निकित को देख कर वो चौक गई।
हाँ दीप्ति ने काम दिया था तो उसे करने में व्यस्त था इतने दिनों में । निकित सान्या के कमरे की तरफ चल दिया । कैसा काम? और… और ये तुम इतना दुबले कैसे हो गएँ? ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हारा सारा खून ही चूस लिया हो । दो महीने से भाग रहा हूँ,छुप रहा हूँ तो ऐसा तो हो ही जाऊंगा न। भाग रहे हो…? किससे? क्या मुझसे! सान्या ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया । पागल हो क्या तुमसे क्यों भागूँगा मैं बल्कि मैं तो तुम्हें बचाने के लिए भाग रहा था जानती हो कहाँ था इतने दिनों से? निकित ने अपना हाथ छुड़ा लिया और आगे बढ़ गया। तुम मुझसे ही भाग रहें थें न ? अरे यार तुम समझती ही नहीं कि किस मुसीबत में हैं हम सब, उसी के लिए मैं ग्वालियर गया था जहाँ तुम्हारे परदादा रहतें थें। तुम मानोगी नहीं लेकिन हकीकत ये है कि तुम्हारे परदादा की वो डायरी श्रापित हैं । मधुमिता नाम की बंजारन की रूह रहती हैं उसमें जो तुम्हारे खानदान के हर इंसान का नाम मिटाती आयी है और इस खानदान की दो ही निशानियां बची है अब एक तुम और तुम्हारी छोटी बहन। शायद उसे लगा था कि अब उस खानदान में कोई नहीं बचा है लेकिन तुमने जब पहली बार उस डायरी को छूआ उसे पता चल गया की तुम उसी खानदान से हो जिसके एक आदमी ने उसे और उसके परिवार को बेरहमी से मार डाला था। इसीलिए दीप्ति ने मुझे ये लाने भेजा था। निकित पलटा और काले रंग का मोटा सा धागा उसे दिखाने लगा। सान्या ने उस धागे को गौर से देखा और अपने हाथ में ले लिया। इस धागे को 41 दिन की पूजा के बाद सिद्ध किया गया है अब हम दोनों इसे उस डायरी पर बाँध कर उसे जला देंगे। जानती हो दीप्ति ने मुझे ये डायरी ग्वालियर ले जाने के लिए दी थी और हिदायत दी थी कि इसे खोलू भी न। लेकिन रास्ते में मुझे लगा की दीप्ति ने कोई मजाक किया है इसीलिए मैंने इसे पढ़ा ज्यादा नहीं लेकिन आधी और मुझे समझ आ गया कि दीप्ति सही बोल रही थी। मैं मरना नहीं चाहता था इसके लिए मैं डायरी के कुछ पेज ही अपने साथ रख पाया बाकी डायरी मैंने अपने घर में छिपा दी थी पता नहीं तुम्हारे पास कैसे आ गई। इतने दिन से उसी पूजा में था मैं इसीलिए बचा रहा और अब आगे ये धागा बचायेगा हमें । निकित सीढियां चढ़ते हाफ गया था।
सान्या के कमरे की खिड़की से रोशनी बाहर आ रही थी। लाइट जल रही है मतलब की तुम आज सोई नहीं थी अभी तक।निकित ने कमरे के दरवाजे को अंदर की तरफ धकेल दिया और कमरे में पहुँचा । कमरे में पहुँचते ही उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया उसकी सांस लगभग रुक सी गई। उसने अपने कांपते हाथों से जेब को टटोलने की कोशिश की ,” जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती कर दी आज उसने जिसकी सजा सिर्फ मौत थी।”
तुम मुझसे भाग रहें थें न ? खनकती मुस्कान के साथ ये शब्द उसके कान के पास गूंजे । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो पीछे मुड़े और सान्या को देखें या सामने डायरी पर सर रखकर सोती सान्या को देखता रहें। उसे डायरी पर सर रख के सोती हुई सान्या हिम्मत दे रही थी तो वो उसे ही देखता रहा। वो तेज चीखना चाहता था ताकि वो जग जाए लेकिन उसकी आवाज़ नहीं निकल रही थी और वहाँ तक जा पाये तो उसके कदम नहीं बढ़ रहें थें। निक… कितने अच्छे हो तुम मेरी हर बात मानते हो , चलो मेरी एक और बात मान लो कि मर जाओ , तुम्हारा जिंदा रहना पसंद नहीं आ रहा मुझे तुम मर जाओ प्लीज। उसने अपनी आँखे बंद कर ली थी लेकिन उसे पता था कि उसकी दोनों बांहों को पकड़े कोई खड़ा है और वो आवाज बहुत जानी-पहचानी भी है। देख तू कितना परेशान करता है मेरी बहन को मेरी बहन बोल रही है मर जा तो मर जा ना उसकी ख़ुशी के लिए। किसी ने पीछे से उसकी पीठ पर हाथ जमाते हुए कहा । विक्रांत…..????? निकित पलट पड़ा ,”सामने सच में विक्रांत था , लेकिन ये क्या…विक्रांत तो था ही नहीं बस एक जला छिछला शरीर खड़ा था हाँ चेहरा थोड़ा ठीक था। विक्रांत तुम को भी….. उसे लगा कि पूरी दुनिया उसके आगे घूम गई । उसके कंधे पर हाथ रख के किसी ने अपनी तरफ घूमा लिया ,”मुझसे बात नहीं करनी क्या?” दीप्ति खड़ी मुस्कुरा रही थी। निकित जान चुका था कि अब वो बचेगा नहीं , उसने एक बार भीगी हुई आँखों से सान्या को देखा और अपनी ऊपर की जेब में हाथ डाल कर कुछ निकाला और अपने मुँह में कुछ डाल लिया ।
खिड़की से झांकती धूप ने सान्या के चेहरे को चूमना शुरू कर दिया। बाहर चल रही ठंडी ठंडी हवा में चिड़ियो की आवाज शहद बहाये दे रही थी। ऐसे में सान्या की नींद खुलना लाजमी था। उसकी आँखे खुली तो उसने देखा की वो डायरी का पहला पन्ना ही देखते-देखते सो गई थी। उसने डायरी को बंद कर दिया और कुर्सी से उठी लेकिन उठते ही दोबारा चीख कर बैठ गई। उसके कमरे में कोई पड़ा था । थोड़ी देर ऐसे बैठे रहने के बाद उसने हिम्मत की और धीरे-धीरे उसके पास गई। जब उसे पलटा तो उसके होश उड़ गएँ। इतने दिनों से गायब निकित उसके सामने लेटा था अपना दुबला-पतला नीला शरीर लिए। उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करें इसीलिए वो जोर-जोर से चीखने लगी। इतने बड़े से इस घर में उसकी चीख सुनने वाला उसके सिवा भी कोई है उसे नहीं पता। लेकिन हकीकत यही है कि कोई तो है।
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