किसी की आँखों में सागर से भी गहरा पानी है
अब्र बनके जो दिल पर मेरे ठहरा पानी
बिना बुलाए ही आता है सूरते-सैलाब
पुकारे प्यास तो बन जाता है बहरा पानी
सुलगती धूप का तय तो सफर किया लेकिन
जहाँ उमीद थी निकला वहीं सहरा पानी
हवा के तेज़ थपेड़ों ने नाव जब उलटी
कनारे बैठके देता रहा पहरा पानी
जो हक़ के वास्ते करते हैं जां निसार यहाँ
उन्हीं के नाम पे चढ़ता है सुनहरा पानी
जिंदगी भी इसी से जहान भी ‘नरगिस’
खुदा के चेहरे सा ही रखता है चेहरा पानी ।
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