“मुझे तुमसे मुहब्बत थी ” -निदा फाज़ली।
एक ख़त
तुम आईने की आराइश में जब खोई हुई सी थीं
खुली आँखों की गहरी नींद में सोई हुई सी थीं
तुम्हें जब अपनी चाहत थी
मुझे तुमसे मुहब्बत थी ।
तुम्हारे नाम की ख़ुशबू से जब मौसम सँवरते थे
फ़रिश्ते जब तुम्हारे रात दिन लेकर उतरते थे
तुम्हें पाने की हसरत थी
मुझे तुमसे मुहब्बत थी ।
तुम्हारे ख़्वाब जब आकाश के तारों में रोशन थे
गुलाबी अंखड़ियों में धूप थी आँचल में सावन थे
बहुत सों से रक़ाबत थीं
मुझे तुमसे मुहब्बत थी ।
तुम्हारा ख़त मिला
मैं याद हूँ तुमको इनायत है
बदलते वक़्त की लेकिन हर इक दिल पर हुकूमत है
वो पहले की हक़ीक़त थी
मुझे तुमसे मुहब्बत थी ।।