कबीर को देख कर सान्या और भी डर गयी , शायद अब उर्वी भी जिंदा ना बची हो ! लेकिन सान्या जिंदा रहना चाहती थी मौत उसके आँखों के सामने थी लेकिन फिर भी वो जीना चाहती थी। कबीर आगे बढ़ा तो सान्या उसे धक्का देकर भाग निकली,पीछे से कबीर भी उसका नाम लेकर दौड़ा । सान्या ने खुद को एक दूसरे कमरे में बंद कर लिया और सिसक सिसक के रोने लगी। कबीर बाहर से दरवाजा पीटता रहा ।
सान्या , प्लीज दरवाजा खोलो ।
नहीं, नहीं तुम सब मुझे मार डालोगे ।
मैं क्यो मरूंगा तुम्हें ? तुम्हारा दोस्त हूँ मैं, प्यार है मुझे तुमसे । क्योंकि तुम मर चुके हो, तुम भी उन लोगों के जैसे बन गएँ हो । ऐसा तो मै तुम्हारे बारे में भी कह सकता हूँ न ! मुझे भी डाउट होना लाज़मी है की तुम मर चुकी हो, लेकिन मै ऐसा नही कर रहा, क्योंकि अभी भी मुझे तुम पे थोड़ा भरोसा है , तुम भी मुझ पे भरोसा करो सान्या । देखो मुझे नही पता की मैं जिंदा यहाँ से जा पाऊंगा या नहीं लेकिन तुम्हें यहाँ से सही सलामत निकालना चाहता हूँ बस , मुझ पे भरोसा करके देखो सान्या बस एक बार। सान्या को कबीर की आवाज में सच्चाई झलकी तो उसने दरवाजे की सिटकनी की तरफ हाथ बढ़ा दिये लेकिन दरवाजा खोलती इससे पहले ही कोई दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगा ,” मुझे पे भरोसा करो सान्या, भरोसा करो । मै वो नहीं हूँ जो तुम सोच रही हो …….. मैं तो वो हूँ जो तुम सोच भी नहीं सकती। और एक हंसी की आवाज़ गूंज उठी बहुत भारी आवाज में । सान्या सहम के दीवार के सहारे बैठ गयी,उसके सारे कपड़े पसीने से भर गएँ थें और उसकी आँखे खून मिले आंसूओं से । कबीर भी उसे छोड़ के चला गया , वो लड़का जिसने कदम-कदम पे उसका साथ दिया , दर्दों में उसे हंसाया, मुसीबत में उसकी ढाल बना और आज वही…आज वही उसके सामने मुसीबत बन के खड़ा हैं । सान्या ने अपना मुँह अपनी ही गोद में छुपा लिया ।
सान्या मुझ पर भरोसा क्यों नहीं करती तुम , मैं जिंदा हूँ मै तुम्हारी कसम खाकर कह रहा हूँ सान्या की मैं सिर्फ यहाँ तुम्हें बचाने आया हूँ। मैं नहीं चाहता की उर्वी के जैसा तुम्हारे साथ भी कुछ हो जाये ।
उर्वी…. उर्वी को क्या हुआ ? सान्या ने अचानक सिर उठाया । कुछ नही यार हमने उसे अकेला छोड़ के बहुत बड़ी गलती कर दी थी उन लोगों ने उसे बहुत नोचा हैं यार , बहुत खून बह गया है उसका । हॉस्पिटल में हैं पता नहीं वो बचेगी भी या नहीं । तुम झूठ बोल रहें हो उर्वी हॉस्पिटल में नहीं हैं वो भी मर चुकी है जैसे दानिश मरा है वैसे ही ।
दानिश की मौत हो गयी ?
ऐसे बनो मत तुम्हीं लोगों ने उसे मार डाला है ।
सान्या एक बार दरवाजा खोलो प्लीज मै तुम्हें सब बताता हूँ । नहीं खोलूंगी । सान्या ने साफ मना कर दिया और चुपचाप अपने कान बंद कर लिए उसे बस अब सुबह का ही इंतजार था । काफी देर तक ऐसी ही खामोशी रही , जिसे कबीर की सहमी हुई और धीमी आवाज़ ने तोड़ा ।
सान्या जानती हो , मेरे सामने के कमरे का दरवाजा खुल गया है जिसमें मुझे तुम दिखाई दे रही हो , बिल्कुल तुम ।मेरी जगह कोई दूसरा होता तो धोखा खा गया होता और उधर चला गया होता लेकिन मै नहीं धोखे में फंसा जानती हो क्यों? क्योंकि मैंने तुम्हारी ख्वाबदार आँखों से मोहब्बत की है और मुर्दों की आंखें वो चाहे जो भी बन जाएँ उनकी आँखों में. ..ख्वाब नही दीखते आग नही दिखती और जिंदगी नही दिखती। इतना कह कर कबीर दरवाजे के सहारे बैठ गया ।
सान्या… मै जिंदा रहना चाहता हूँ, मुझे जिंदगी की बहुत तलब है बिल्कुल तुम्हारी ही तरह ,लेकिन अगर ऐसे दूर-दूर रहेंगे तो दोनो ही मारे जाएंगे। मै नही कहता की साथ होंगे तो बच ही जाएंगे लेकिन… तब अगर मौत भी आएगी तो मुझे खुशी होगी की तुम्हारी बाहों में आएगी। उसका गला रुंध गया लेकिन वो बोलता रहा ,” तुम्हें लगता है की मै मर गया हूँ और अंदर आ जाऊंगा तो तुम्हे भी मार दूंगा लेकिन तुम्ही सोचो, मरे लोगों को भला कोई दीवार रोक सकती है!फिर सबसे बड़ी बेवकूफी तो ये कर बैठी हो की वो लाल डायरी तुमने साथ ही रख ली है मतलब उस डायरी के साथ वो लोग भी इसी कमरे में तुम्हारे साथ ही है । दरवाजा ना खोलो तो वो लाल डायरी ही मुझे दे दो ताकि जो हो मुझे ही हो तुम बची रहो।
सान्या उसकी सारी बातें सुन रही थी , लेकिन वो लाल डायरी अपने से दूर नही करना चाहती थी उसे लग रहा था की इसी की वजह से अभी तक उसकी जान बची है अगर ये डायरी वो कबीर को देगी तो वो इसे जरूर पढ़ने के लिए बोलेगा। वो लोग किसी भी तरह मुझसे ये छिन लेना चाहते हैं ताकि मुझे मार सकें।
सान्या ने कबीर की किसी बात पर भरोसा नही किया । वैसी ही चुपचाप बैठी रही । थोड़ी देर बाद उसे लगा की कमरे में कोई चल रहा है , कदमों की आवाज बढ़ती ही जा रही है । वो सरक कर बेड के नीचे छुप गयी और वहीं से झांकने लगी।
उसने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई उसकी आँखों के सामने उसके सारे मरे हुए दोस्त घूम रहें थें हँस रहें थें। एक वक्त जब उसे जरा सी दिक्कत होती थी तो सारे परेशान हो जातें थें आज वहीं उसे मरना चाहतें हैं! क्या हो गया है इन सब को । वो चीखना चाहती थी लेकिन उसने अपने मुँह को दोनो हाथों से कसके दबा रखा था , वो सांस भी ना लेने की कोशिश कर रही थी और सबके जले-कटे , छिछले शरीर को देखती हुयी अपनी उल्टियों को रोकने की कोशिश कर रही थी ।
सान्या की डरी हुई नजरें एक कुर्सी पर टिक गई जिसपर एक औरत झूल रही थी बाल काफी उलझें थें फिर भी सान्या को लगा की वो उसे जानती हैं। वो अपने दिमाग़ पर जोर देने लगी, और अचानक से बिल्कुल शांत ही रह गयी। माँ. …… तु…माँ… भी । सान्या दहाड़ मारकर रोते हुए बेड के नीचे से निकली और कुर्सी की तरफ बहुत तेज भागी उसे अपनी जिंदगी का जरा भी ख्याल ना रहा । मम्मी…. तुम ….मम्मी , मम्मी…मम… सान्या उस कुर्सी से ऐसे लिपट गयी जैसे वो अपनी माँ से ही लिपटी हो , उस औरत ने दरवाजे की तरफ इशारा किया और गायब हो गयी । लेकिन सान्या कुर्सी को पागलों की तरह सीने से लिपटाती जा रही थी। कबीर ने दो बार उसका नाम लेकर दरवाजा पिटा फिर उसकी आवाज़ बिल्कुल खामोश हो गयी। सान्या की माँ घर से भागी नहीं थीं, न साध्वी बनी थीं उन्हे भी लाल डायरी के श्राप का शिकार होना पड़ा था । सान्या बार बार कुर्सी को चूम कर रो रही थी लेकिन तभी उसे उसकी माँ ने जो इशारा किया था वो याद आ गया उसने दरवाजे की तरफ देखा , उधर कबीर था मतलब वो सच में जिंदा है ! सान्या ने लपक कर वो लाल डायरी उठा ली और तुरंत दरवाजा खोला लेकिन ये क्या कबीर तो कहीं था ही नहीं. ….! सान्या ने सामने के कमरे की तरफ देखा तो कबीर की बात याद आ गयी की सामने के कमरे में भी सान्या है। उसने दरवाजा पिटा अंदर से कोई आवाज नहीं आयी तो उसने खिड़की से अंदर झाँका और बहुत तेज चीख पड़ी। कबीर औंधे मुँह जमीन पर पड़ा था उसके दोनो हाथ टूटे कर पीछे की तरफ बंधे हुए थें , पैरों में सिर्फ एक जूता था दूसरा थोड़ी दूरी पर पड़ा था । कबीर ने सर उठा कर मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा तो उसके मुँह से खून निकल के फर्श पर गिर गया उसने हाथ से इशारा करके सान्या को भागने को कहा । लेकिन वो उसी तरह खड़ी रही और रोते हुए बोली ,” कबीर मै तुम्हे कुछ नही होने दूंगी मै बचाऊंगी तुम्हे चाहे मुझे अपनी जान क्यो ना देनी पड़े। मै जो करने जा रही हूँ शायद उसके बाद मै तुमसे कभी ना मिलूँ लेकिन जाते-जाते मै तुमसे सिर्फ एक बात कहना चाहती हूँ की हाँ मैं भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ जितना तुम पहले प्यार से डरती थी इसीलिए नही कह पायी आज कह रही हूँ क्योकि आज मौत से डर नही लग रहा तो प्यार से क्या डर लगेगा। मेरे लिए लड़ना खुद को बचाना मै जा रही हूँ और अगर मेरी बहन इन गर्मियों की छुट्टियों में घर आएं तो उसे बोल देना की उसकी बहन भी माँ के पास चली गयी। इतना कह कर वो खिड़की से पलटी वो उसके सामने विक्रांत और निकित खड़े थे दोनो हंस रहें थें इस बार सान्या भी हंसी क्योकि उसके इरादे इनके जिस्म से ज्यादा खौफनाक बन चुके थे । इन लोगों ने उसे इतना डरा दिया था की की उसका डर ही ख़त्म हो गया था । विक्रांत ने उसका सिर पकड़ कर दीवार से टकरा दिया एक बार नहीं बार बार जब तक की सान्या ने उसके हाथ से अपने उस वाले हाथ से नहीं पकड़ा जिसमे काला धागा लिपटा था । सान्या के माथे से खून ऐसे बहने लगा जैसे ऊँची पहाड़ियों से पानी का झरना बहता है। सान्या को आगे कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन फिर भी वो किचन की दिशा की तरफ भागी। भागते हुए कहीं से उसके जख्मी पैरों में एक राड आकर बड़ी तेजी से लगी वो गिर पड़ी लेकिन सरकती हुई दीवार के सहारे से खड़ी होने की कोशिश कर रही थी लेकिन लेकिन किसी ने उसका हाथ पकड़ के पीछे की तरफ तोड़ दिया वो चीख कर बेदम हो गयी उसकी सांसे लम्बी-लम्बी चलने लगी उसके हाथ से लाल डायरी छूट गयी। दानिश और विक्रांत ने उसके पैर पकड़ के किसी अंधेरे कमरे में खींच लिया । उसने खुद को संभालने की कोशिश की लेकिन नही कर पायी।
मैं अपना बदला लिए बिना नहीं जाऊँगी मेरे साथ जो हुआ वो तुम्हारे साथ भी होगा। एक औरत की महीन और खूबसूरत आवाज़ थी ये, जिसने अपने नाखून सान्या की गर्दन में घुसा दिये थे जैसे गर्दन का मांस ही निकाल लेगी ।
मैने नही किया था… जिसने किया था सजा दी तुमने… उसे तो बाकी लोगों को क्यों मार रहीं हो मेरे परिवार को ,मेरे दोस्तों को। मना मैने किया था मेरे परिवार ने नहीं फिर उन्हे क्यों इस बेदर्दी से मारा गया था । उसने सान्या की गर्दन को और तेजी से दबोचा। सान्या दर्द से छटपटा पड़ी लेकिन उसमे इतनी हिम्मत नहीं बची थी की वो चीख सकें।
लाल डायरी मेरे पास है उसे छोड़ दो वरना मै इसे फाड़ दूंगा । कबीर किसी तरह खुद को ढेलता हुआ उस अंधेरे कमरे में आ गया था ।
नहीं कबीर ऐसा मत करना जो भी इसे फाड़ेगा ये डायरी फिर से वैसी ही होकर उसे मार देगी , विक्रांत के साथ भी यही हुआ था। सान्या को छोड़ कर सब कबीर को घेरे खड़े थे सान्या ने खुद को किसी तरह उठाया और कबीर के सीने से जा लगी । कबीर सोच रहा था की सान्या उससे गले मिल रही है लेकिन वो लाल डायरी पाना चाहती थी । सान्या लाल डायरी लेकर कमरे के बाहर आ गयी । पूरे कोरिडर में सिर्फ अंधेरा था भयानक हवा थी , बिल्लियों की रोने की आवाजें थीं और चमगादड़ो के पंखो की सर्सराहट थी। सान्या दीवार पकड़े-पकड़े किचन तक पहुँच गयी लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था जोर लगाकर खोलने से दरवाजा एक दम से खुला और सान्या का सिर पीछे की दीवार से टकरा गया। उसने एक हाथ से अपने सिर को सहारा दिया और अंदर गयी।
सामने दीप्ति, निकित , विक्रांत , दानिश सब उसकी तरफ बाहें खोले खड़े थे , सान्या मुस्कुरा दी उसकी आँखों में आँसू आ गएँ। अभी आ रही हूँ तुम लोगों के ही पास जानते हो ना नही रह पाती तुम लोगो के बिना । इतना कहके सान्या किचन में कुछ ढूंढने लगी । उसके हाथ पैर में जहाँ जहाँ चोट थी वहाँ पर कोई ना कोई जख्म लग ही रहा था वो चीखती और फिर समान इधर उधर करती कोई उसके बालों को पकड़ता कोई उसकी आँखों में नाखून घुसाने की कोशिश करता वो बार-बार काले धागे से उन्हें दूर करती । इतनी देर मे वो जान गयी थी की धागे में इतनी शक्ति नहीं हैं लेकिन कुछ असर तो अभी भी है ।
सान्या जो ढूंढ रही थी वो उसे मिल गया उसने काले धागे को लाल डायरी पर लपेट दिया और और लाइटर से उसे जलाने चली अचानक ही उसे एक झटका लगा और वो नीचे गिर पड़ी। नीचे गिरते ही उसने महसूस किया की उसके पेट में कोई नुकीली चीज घुसी है दोनो हाथों के सहारे से शरीर का ऊपरी हिस्सा उठाया तो पाया की एक बड़ी सी नुकीली चाकू उसके पेट के आरपार हो चुकी है । कबीर उसे देख के चीख पड़ा जो अभी-अभी दरवाजे के बाहर पहुँचा था। सान्या ने लाइटर मजबूती से पकड़ा और डायरी की तरफ बढ़ी । अचानक ही एक झुण्ड ने उसे घेर लिया थोड़ी ही देर में सान्या जमीन पर गिर पड़ी और अबकी उठी ही नहीं, उसके चेहरे पर नाख़ून से नोंचने के निशान थे पेट से सीने से खून बह रहा था पीठ पर के कपड़े फट गएँ थें। कबीर पागलों की तरह दरवाजा तोड़ने लगा । सारे मुर्दो के चेहरे उसकी तरफ हो गएँ और वो उसे मारने के लिए बढ़ गएँ। नहीं. …नहीं. ..सान्या तुम्हे मेरी कसम…. जब तक कबीर का वाक्य पूरा होता पूरे किचन में धू-धू कर के आग उठने लगी । सान्या मरी नहीं थी उसने अपना दिमाग़ लगाया था खुद को मारने के लिए। सान्या चीख रही थी आग की लपटें उसके शरीर पर बने हर अपवित्र निशान को जलाएं दे रहीं थी साथ में वो डायरी भी जो सान्या ने अपने हाथ में पकड़ रखी थी। सान्या जान चुकी थी की जब तक डायरी को नुकसान पहुंचाने वाला जिंदा रहेगा डायरी भी नही मिटेगी इसीलिए उसने खुद को भी डायरी के साथ मिटा लिया। किचन से एक एक करके सारे चेहरे मिटने लगे सान्या की चीख के साथ कई सारी चीखे उठने लगी और शांत पड़ने लगी आखिर में मुस्कुराती हुई सान्या की चीख भी शांत पड़ गयी। कबीर उसे बाहर से जलता हुआ देखता रहा और किसी बच्चे की तरह बिलख बिलख के रोता रहा ।
सुबह हुई रात का सारा बावंडर धम चुका था । कबीर राख को इधर उधर करके कुछ तलाश करने लगा , उसे कुछ मिला उसे उठाया और देखा तो वो सान्या का जला हुआ दिल था।
सान्या कहाँ है ? तीन दिन बाद होश में आते ही उर्वी ने कबीर से पूछा । कबीर उसके पास गया उसके माथे को चूमा और एक बंद डिब्बे की तरह इशारा करतें हुए बोला ,” वो देखो हमारे साथ ही तो है , तुमसे मिलाने कर लिए रोक रखा था उसे अब तुम ठीक हो गयी हो तो आज़ाद कर आएंगे सान्या को। उस डिब्बे की तरफ देखते ही उर्वी की आँखों से मुसलसल आँसू बहने लगे कबीर ने उसे सीने से लगा लिया । अब दोनो ही एक दूसरे से लिपट के रो रहें थें शायद कहीं से सान्या की धड़कन सुनना चाह रहें थें।
The End By – Awa