रस की परिभाषा – रस शाब्दिक अर्थ है – आनंद । काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं ।
संस्कृत में कहा गया है कि “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है ।
रस के प्रकार
सामान्य तौर पर हिंदी में रसों की संख्या 9 मानी जाती है लेकिन सूरदास जी ने वात्सल्य को भी रस की श्रेणी में ही रखा हैं अतः अब मुख्य रसों की संख्या दस मानी जाती हैं ।
(1) श्रृंगार रस – सौंदर्य के अवलोकन करने पर जो लोकोत्तर आनंद प्राप्त होता है उसे श्रृंगार रस कहते हैं । श्रृंगार रस को रसों का राजा कहते हैं, इसका स्थायी भाव “रति” है। इसके दो भेद होतें हैं –
(i) संयोग श्रृंगार : नायक-नायिका के दर्शन ,स्पर्श, मिलन आदि से उनके मध्य जो रति भाव उत्पन्न होता है,उसे संयोग श्रृंगार कहते है। उदाहरण – बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करै, भौंहन हँसे, देन कहै नटि जाय॥ (ii) वियोग श्रृंगार – जहाँ नायक-नायिका के मिलन का आभाव होता है वहाँ वियोग श्रृंगार होता है । उदाहरण – जो पहिले सुनि के निरखि बढ़ई प्रेम की आग । बिन मिलाप जिय विकलता सो पूरब अनुराग ।।
(2) करुण रस – जब भी किसी दृश्य या श्रव्य काव्य को देख या सुन कर मन में करुणा या दया का भाव उत्पन्न होता है , तो वहाँ करुण रस होता है। करुण रस का स्थायी भाव “शोक” हैं
उदाहरण – (I) सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सीलु बलु तेजु बखानी॥ करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहिं भूमितल बारहिं बारा॥ (ii ) जिस आंगन में पुत्र शोक से बिलख रही हो माता । वहां पहुँच कर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता। पति के चिर वियोग में व्याकुल युवती विधवा रोती। बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हे पीर नही होती।।
(3) हास्य रस – किसी व्यक्ति या वस्तु की असाधारण वेशभूषा ,आकृति, चेष्टा आदि को देखकर मन में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है वो अनुभाव,विभाव संचारी भाव से पुष्ट होकर हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव “हास” है।
उदाहरण –(i) हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल। तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-से गाल।
(ii)शीश पर गंगा हंसै, लट में भुजंगा हंसै। हास ही के दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।
(4) रौद्र रस – रौद्र रस का स्थायी भाव “क्रोध” है। किसी विरोधी व्यक्ति द्वारा , देश , मित्र ,समाज या धर्म का अपमान करने के प्रतिक्रिया स्वरूप मन में जो क्रोध का भाव उत्पन्न होता हैं , वह अनुभाव, विभाव एवं संचारी भावों से पुष्ट होकर रौद्र रस कहलाता है।
उदाहरण–(i) खून उसका उबल रहा था। मनुष्य से वह दैत्य में बदल रहा था।। (ii) उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
(5) वीर रस – युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने पर हृदय में जो उत्साह का भाव जाग्रत होता है उसे ही वीर रस कहते हैं । वीर रस का स्थायी भाव “उत्साह” है।
उदाहरण – (i) फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी। निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी। (ii) बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी । खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
(6) भयानक रस – भयप्रद वस्तु या घटना को देखने सुनने से या प्रबल शत्रु के विद्रोह कर देने से मन में भय का भाव उत्पन्न होता है । यही भाव अनुभाव, विभाव, संचारी भाव से रस रूप में परिणीत होता हैं तो भयानक रस कहलाता है। भयानक रस का स्थायी भाव “भय” है।
उदाहरण-(i) उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी।चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।। (ii) अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल। कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ।।
(7) वीभत्स रस – वीभत्स रस का स्थायी भाव घृणा या जुगुप्सा है। किसी भयानक वस्तु,दृश्य या घटना को देख कर मन में जो घृणा का भाव उत्पन्न होता हैं उसे ही वीभत्स रस कहते हैं ।
उदाहरण –(i)आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते।शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते । (ii) निकल गली से तब हत्यारा। आया उसने नाम पुकारा। हाथों तौल कर चाकू मारा। छूटा लोहू का फव्वारा।।
(8) शांत रस – शांत रस का स्थायी भाव “निर्वेद” होता हैं । संसार की नश्वरता का आभास करके मन में जो वैराग्य का भाव उत्पन्न होता हैं उसे ही शांत रस कहते हैं ।
उदाहरण– (i) मेरा तार हरि से जोड़े,
ऐसा कोई संत मिले।। (ii) मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥
(9) अद्भुत रस – अद्भुत रस का स्थायी भाव “विस्मय” है। किसी अविश्वस्नीय वस्तु या आश्चर्यजनक घटना को देखने या सुनने से मन में विस्मय का भाव जाग्रत होता है इसे ही अद्भुत रस कहते हैं
उदाहरण- (i)लक्ष्मी थी या दुर्गा वह, स्वयं वीरता की अवतार। देख मराठे पुलकित होते, उसकी तलवारों के वार।। (ii) देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया। क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।।
(10)वात्सल्य रस – माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाले रस को वात्सल्य रस कहा जाता है। वत्सल नामक भाव विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर जब रस रूप परिणति होता है , तब वहां वात्सल्य रस होता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल या स्नेह होता है।
उदाहरण – (i) तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान । मृतक में भी डाल देगी जान ।।
(ii) ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया।।
👉 कभी-कभी भक्ति रस को 11वें रस के रूप में मान्यता दी गई है।