“एक रात’’ रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी

मैं बाल्यावस्था से ही सुरबाला के साथ पाठशाला जाया करता था तथा उसके साथ आंख-मिचौनी भी खेला करता था । मैं अक्सर उसके घर भी जाया करता था । उसकी मां मुझे बहुत स्नेह करती थीं। किसी-किसी दिन वे हम दोनों को एक साथ खड़ा करके निरख-निरख कर देखा करतीं और आपसी बातचीत में कहतीं … Read more