सियासत को लहू पीने की लत है! वरना मुल्क में सब खैरियत है।
किसी मशहूर शायर का यह शेर आज की परिस्थितियों पर एक दम सही बैठता है / आज जब पूरी दुनिया कोरोना के नये वैरिएंट ओमिक्रोन में फिर से बन्दी की ओर बढ़ रही है, उस समय में भारत जैसे जनसंख्या के मामले में दूसरे स्थान पर रहने वाले देश में चुनाव जैसी अति महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रक्रिया पूर्ण कराने की चुनाव आयोग की जिद्द ही को लहू पीने की लत कहा गया है उपरोक्त शेर में /
सोशल डिस्टेंस, दो गज की दूरी है बहुत ही जरूरी का मंत्र देने वाली सरकार में चुुनाव आयोग का यह कहना कि हम चुनाव अपने नियत समय पर ही कराएंगे , चुुनाव आयोग की ढिठाई है,मासूम लोगों की जिन्दग़ीी से खिलवाड़़ करना हैैं/
फिर चुनाव कोई छोटी जगह का नहीं तीन-तीन राज्यों का है,जिसमेें एक राज्य (यूपी) की जनसंख्या देश में सर्वाधिक हैं,मतलब भीड़ बहुत ज्यादा ,मतलब खतरा बहुत ज्यादा/
क्या रात में कर्फ्यू लगाकर दिन में चुुनाव प्रचार करना किसी मजाक से कम है? क्या इससे कोरोना की गति पर कोई नियंत्रण होगा की कोरोना काफी तेजी से पैर पसारेगा भारत में? यह कदम वर्तमान सरकार की लालसा नहीं दिखाता , एक बेवकूफी नहीं है इस कदम में? इस चुुनाव की वजह से क्या बच्चों का भविष्य खतरें में नहीं आ जाएगा? चुुनाव सीधे जाकर यूपी बोर्ड परीक्षा को प्रभावित करेगा /
कई और तथ्य हैं जो एक पढ़ें लिखें समुदाय को अवश्य सोचना चाहिए और उम्मीद है मुझे कि सोचा भी जाएगा आप लोगों द्वारा/