ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो।
दर्दे दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा, क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिये बैठे हैं अपने पिंजरे, आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे, आज संदूक से वे ख़त तो निकालो यारो।
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो।
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की, तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो। –दुष्यंत कुमार