निदा फाज़ली की सुकून भरी कविता “एक बात”

 उसने  अपना पैर खुजाया  अँगूठी के नग को देखा  उठ कर  ख़ाली जग को देखा  चुटकी से एक तिनका तोड़ा चारपाई का बान मरोड़ा  भरे-पुरे घर के आँगन में  कभी-कभी वह बात!   जो लब तक आते-आते खो जाती है  कितनी सुन्दर हो जाती है!

निदा फाजली की गजल ‘गुलाब का फूल’

 लचकती डाल पे खिलता हुआ गुलाब का फूल                  लबों के ख़म, झुकी आँखों की बोलती तस्वीर                      नई नई किसी बच्चे के हाथ की तहरीर  लचकती डाल पे खिलता हुआ गुलाब का फूल            … Read more

कुमार विश्वास की कविता “साल मुबारक”कुमार विश्वास की कविता “साल मुबारक”

  बाँटने वाले उस ठरकी बूढ़े ने                                     दिन लपेट कर भेज दिए हैं                                              नए कैलेंडर की चादर … Read more

निदा फाजली की गजल “खुदा”

 देखा गया हूँ मैं कभी सोचा गया मैं।                                  अपनी नज़र में आप तमाशा रहा हूँ मैं                              मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया      … Read more

आकाश से पथराव – दुष्यन्त कुमार की कविता

 रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है,                       यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है।  कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए,                         वो घरौंदा सही, मिट्टी का भी घर होता है।  … Read more

सर्दी

कुहरे की झीनी चादर में यौवन रूप छिपाये  चौपालों पर  मुस्कानों की आग उड़ाती जाये  गाजर तोड़े मूली नोचे  पके टमाटर खाये  गोदी में इक भेड़ का बच्चा  आँचल में  सेब कुछ धूप सखी की अँगुली पकड़े इधर-उधर मँडराये । -निदा फाजली

लहू-लुहान नजारों का जिक्र आया तो….

 कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए,                             कहीं  पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए।  जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा,                                  बहुत से … Read more

सातवें आसमान पर चल न

 सातवें आसमान पर, चल ना ! चल! सितारों के जाल पर, चल ना ! दिल बिना देवता की कासी है जिस में हर घाट पर उदासी है। कुछ है चटका हुआ सा मुझ में भी तू भी कितने जनम से प्यासी है मेरे अश्कों के ताल पर चल ना सातवें आसमान पर, चल ना ! … Read more

मुझे ईसा बना दिया तुमने

 ये जुबाँ हमसे सी नहीं जाती, ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती। इन फ़सीलों में वो दरारें हैं, जिनमें बसकर नमी नहीं जाती। देखिए उस तरफ़ उजाला है, जिस तरफ़ रोशनी नहीं जाती । शाम कुछ पेड़ गिर गए वरना, बाम तक चाँदनी नहीं जाती। एक आदत-सी बन गई है तू, और आदत कभी नहीं … Read more