What is the god? भगवान हैं भी अगर हैं तो कैसा हैं?

 नवरात्र चल रहें हैं पूरे देश में आस्थामयी माहौल हैं। लोग अपनी-अपनी आराध्य देवियों को खुश करने में लगे हैं।जगह-जगह पर रामलीलाएं आयोजित की जा रही हैं और दशहरे के दिन रावण की मृत्यु के साथ अधिकतर रामलीलाएं समाप्त हो जाएँगी और चारों तरफ भगवान राम के नाम का उदघोष होगा और साथ ही साथ जय बोली जाएगी हनुमान जी की, लक्ष्मण जी की माँ लक्ष्मी की, सीता माँ की , भोले और पार्वती जी की। यह तो किया ही जाएगा आखिर हमें अपने भगवान को जो प्रसन्न किया करना हैं। लेकिन यहाँ पर सवाल ये है कि हम जिसे प्रसन्न करने का प्रयत्न कर रहें हैं वो है भी! क्या सच में कोई भगवान है इस ब्रह्माण्ड में? या सिर्फ हवा-हवाई बातें हैं? आइये देखते हैं दर्शनशास्त्र क्या कहता हैं इस पर।

भारतीय दर्शन को दो भागों में विभक्त हैं एक आस्तिक ( वेद को मानने वाला) और नास्तिक ( वेद को ना मानने वाला)। आस्तिक दर्शन में वेदांत,मीमांसा,सांख्य,योग , वैशेषिक तथा न्याय। नास्तिक दर्शन में- चार्वाक,जैन,बौद्ध ये तीन दर्शन आते हैं

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आस्तिक दर्शन के अनुसार भगवान का स्वरूप-

वेदांत, “ईश्वर सभी वस्तुओं में विद्यमान हैं।” के कथन जिसे pantheism (सर्वेश्वरवाद) कहते हैं के करीब माना जाता हैं लेकिन ऐसा नहीं हैं, बल्कि वेदांत Panetheism (निमितोपादानेश्वरवाद ) का अनुसरण करता हैं जिसके अनुसार ” ईश्वर केवल विश्वरूप ही नहीं,विश्वातीत भी हैं। अर्थात् भगवान केवल सभी वस्तुओं में ही नहीं वरन पूरे ब्रह्माण्ड में विद्दमान हैं।

योग के अनुसार ईश्वर परम पुरुष है जो सभी जीवों से ऊपर और सभी दोषों से रहित है । वह नित्य, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्व-शक्तिमान पूर्ण परमात्मा है । 

वैशेषिक के अनुसार- महेश्वर ही अखिल विश्व के स्वामी या शासक हैं।उन्हीं की इच्छा से संसार की दृष्टि होती है उन्हीं की इच्छा से प्रलय होता हैं।सारा काम महेश्वर की इच्छा से ही होता हैं। 

मीमांसा ने स्वर्ग एवं मोक्ष को तो जीवन का चरम लक्ष्य माना हैं इसके लिए यज्ञादि को भी महत्वपूर्ण माना हैं किंतु ईश्वर के अस्तित्व को नहीं स्वीकार किया है।

सांख्य- सांख्य प्रकृति को ही भगवान का दर्जा देता हैं, प्रकृति को ही संसार का मूल कारण माना हैं।इसके बाद पुरुष को जगत का उत्पादनकर्ता माना हैं तथा ईश्वरवाद का स्पष्टता खंडन किया हैं।

नास्तिक दर्शन के अनुसार भगवान का स्वरूप-

चार्वाक – दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार किया गया है

चार्वाक-दर्शन में प्रत्यक्षीकरण को ज्ञान का एकमात्र साधन माना गया है।प्रत्यक्षीकरण से ईश्वर का ज्ञान नहीं होता। इसलिए इसका अस्तित्व नहीं है। चार्वाक अनीश्वरवाद पर जोर देता है । जड़-तत्त्वों के सम्मिश्रण से संसार की उत्पत्ति हुई हैं। इसके लिए सृष्टिकर्ता की कल्पना करना व्यर्थ है। चार्वाक के अनुसार संसार की सृष्टि के लिए ईश्वर की आवश्यकता नहीं है। 

बौद्ध दर्शन में ईश्वर अस्तित्व को नहीं माना गया है। ईश्वर को,

संसार का कारण नहीं माना गया है। संसार प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम से संचालित होता है ।

बौद्ध-दर्शन की तरह जैन-दर्शन में भी अनीश्वरवाद पर जोर दिया गया है। जैन-दर्शन के अनुसार ईश्वर को विश्व क स्रष्टा मानना भ्रांतिमूलक है | जैन-दर्शन के अस्तित्व को अप्रमाणित मानता है। 

इस्लाम में भगवान का स्वरुप निरपेक्ष, निराकार हैं। इनके अनुसार अल्लाह ही समस्त विश्व का निर्माता हैं।

  स्पिनोजा के भगवान

स्पिनोजा ने अपरिमित,स्वयम्भू, एवं अद्वितीय द्रव को ईश्वर माना हैं। द्रव अथवा पदार्थ वह हैं जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है अर्थात् प्रकृति में ही उन्होंने ईश्वर की कल्पना की हैं। ये ईश्वर को वैयक्तिक या अवैयक्तिक इकाई के रूप में ईश्वर नहीं मानते हैं। स्पिनोजा ने कहा है कि ईश्वर की पूजा करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं ईश्वर वहीं हैं जो हमारे अंदर हैं। इनका मत है कि ईश्वर मनुष्य का बनाया हुआ उत्पाद है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी स्पिनोजा के भगवान को ही अपना भगवान बताया है।

गीता के अनुसार भगवान का स्वरूप-

गीता में भगवान को परमपुरुष माना गया हैं। गीता में ईश्वरवाद एवं सर्वेश्वरवाद का चित्रण मिलता है। ईश्वर विश्व में पूर्णत: व्याप्त है। ईश्वर परम सत्य है। ईश्वर को अक्षर, जगत् का कारण एवं सनातन पुरुष कहा गया है। ईश्वर विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है। ईश्वर कर्मफलदाता है। वह सभी जीवों को कर्मों के अनुसार दुःख-सुख प्रदान करता है। ईश्वर सबका माता-पिता एवं स्वामी है। ईश्वर विश्व में व्याप्त है एवं विश्व से परे भी। 

इतने सारे दर्शनों के मत सुनकर और पढ़कर कोई भी एक सटीक निष्कर्ष निकालने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि सारे मत एक-दूसरे के विरोधी लगते हैं। एक दर्शन भगवान के अस्तित्व को ही सबकुछ मानता हैं तो दूसरा दर्शन ईश्वर के अस्तित्व को सिरे से नकार देता हैं। अगर आप आस्तिक हैं तो आप वैशेषिक या योग के मत को पूरे दिल से स्वीकार करेंगे और अगर आप नास्तिक है तो आप खुद को चार्वाक दर्शन का प्रणेता भी समझ सकते हैं।(यहाँ आस्तिक व नास्तिक ईश्वर सम्बन्धी हैं वेद सम्बन्धी नहीं ।) लेकिन जो बीच के हैं मतलब कि ना आस्तिक ना नास्तिक जो तटस्थ हैं और ना ईश्वर के घोर विरोधी हैं ना परम समर्थक वो किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएंगे। ऐसे लोगों के लिए ही मैंने इस ब्लॉग को अपने कुछ उदाहरणों से लिखने की कोशिश की हैं जो शायद आपको भगवान के होने या होने के निष्कर्ष निकालने में मदद करें।

 मान लीजिये आप नास्तिक ( कट्टर नहीं ) हैं। आप किसी आस्तिक( कट्टरी) से मिलेंगे और उस से अगर भगवान की उपस्थिति की चर्चा करेंगे तो वो ना सिर्फ भगवान के अस्तित्व की दृढ़ स्थापना करेगा बल्कि एक से बढ़कर एक आपको उदाहरण भी चिपका देगा। न्याय या गीता के बल पर तो कम ही वेद-उपनिषद को साधते-साधते अपने साथ हुए ऐसे-ऐसे चमत्कार बताएगा आपको कि आप अपनी सारी साइंसिनियत भूल जाएंगे आपका कोई भी तर्क उसकी आस्था पर भारी नहीं हो पायेगा। उसके अनुसार भगवान ना होतें तो लोग उसकी प्रार्थना ही नहीं करतें, इस सृष्टि का संचालन ही नहीं होता, ये वेद-पुराण होतें ही नहीं अगर भगवान नहीं होतें, गीता आती ही नहीं और रुके काम स्मरण मात्र से पूरे नहीं हो जाया करते। भगवान हैं तभी तो धामों पर इतनी भीड़ रहती हैं। ऐसे ही उससे दो से तीन घंटे की चर्चा के बाद आप जब उठेंगे तो मान लीजिये आप दुनिया के सबसे बड़े ईश्वरवादी बन चुके होंगे, विज्ञान और भगवान में आप भगवान को अपना आराध्य बना चुके होंगे।  

वहीं मान लीजिये आप आस्तिक हैं ( कट्टर नहीं) और तब आप किसी घोर नास्तिक से भगवान विषय पर चर्चा करतें हैं तो उसके तरकश में आपको अलग तीर और तर्क मिलेंगे। वो आपको चार्वाक या बौद्ध नहीं बताएगा बल्कि अपना ही कोई दर्शन आपको बड़े गंभीर स्वर में सुनाना शुरू कर देगा। उसके अनुसार तो ईश्वर हैं ही नहीं वरना दुनिया में कोई पाप होता ही नहीं और अगर कोई पाप होता तो उसकी सजा भी उसे मिलती, अपराधी यूँ जमानत पर या पैसे खिलाकर बाहर नहीं घूम रहें होतें। मंदिरों में भगवान के सामने कोई चोरी-डकैती या कोई जघन्य अपराध नहीं होता यहाँ तो मंदिर से भगवान की मूर्ति ही चोरी हो जाती हैं, अगर भगवान होता तो सबको बराबर मान देता ये क्या की कोई अकूत सम्पति का मालिक और कोई कचरे से बीन के खाने को मोहताज, ऐसा कौन भगवान है जो अमीरों की सुनता है गरीबों की नहीं। और ना जाने क्या-क्या उसके तरकश से शब्दबाण चलें। उससे चर्चा के बाद तो आपका दिल ही उठ जाएगा भगवान नाम से ही।ईश्वर के नाम से आपको ऐसी चिढ़ हो जाएगी आपको की अगर आपसे कोई भिखारी ” भगवान के नाम पे दे दे ” बोलेगा तो आप बजाय देने के उसकी कटोरी से उठा ही लेंगे।

चलिए ये तो अनसुलझा हल रहा ईश्वर की उपस्थिति पर जोकि मुझे ज्यादा परेशान नहीं करता मुझे तो परेशानी इस बात से है कि भगवान है तो कैसा हैं आखिर? वो जो हनुमान जी की मूर्ति हैं, विष्णु जी की मूर्ति हैं, भोले की हैं या जानकी, पार्वती ,सरस्वती की वैसा हैं भगवान कि सफ़ेद कपड़े से लिपटे लम्बी दाढ़ी में लम्बे से दिखते जीजस जैसा हैं भगवान मतलब की कुलमिलाकर मनुष्य जैसा भगवान हैं की जानवरों जैसा या पेड़ जैसा। हाँ भाई क्योंकि जब हम लोगों के भगवान के हम लोगों की तरह आँखे, कान , नाक, शरीर हैं तो जानवरों का भी तो कोई भगवान उनके जैसा ही होगा ना ? बालदार शरीर वाला, लम्बे-लम्बे नाख़ून वाला, चार पैरों वाला, जिसकी वो पूजा करतें होंगे ! जैसे आदमियों के लिए आदमियों वाला भगवान हैं वैसे ही शेर के लिए शेर वाला भगवान , हिरन के लिए हिरन जैसा , पक्षियों के लिए उनके जैसे और पेड़ो के लिए बिलकुल पेड़ जैसा भगवान होता होगा ना ? क्या इसे ही स्पिनोजा ने ईश्वर स्वीकार किया हैं? क्या यही हैं सांख्य का ईश्वर? लेकिन हम ऐसे देखें की भगवान तो सिर्फ एक ही हैं समस्त पृथ्वी पर समस्त ब्रहाण्ड में ईश्वर एक ही हैं तो सोचना होगा कि कैसा हैं भगवान जैसा मनुष्य सोचता हैं वैसा? जैसा जानवर सोचते हैं वैसा या हवा जैसा की पानी जैसा बिलकुल वैसा जैसा वेदांत ने माना या योग ने बताया ? कैसा हैं ईश्वर? और जब हम कैसा हैं ईश्वर सवाल की तलाश पर निकलते हैं तो वापस उसी धुरी वाले सवाल पर आ पहुँचते हैं की ईश्वर हैं भी? बिलकुल ऐसा की हम पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं और वहीं पहुँचते हैं जहाँ से शुरू किया था। कभी-कभी इंसान का चलना जरुरी होता हैं कहीं पहुंचने से भी ज्यादा, क्योंकि उसी चलने में ही जीवन का अर्थ निकल आता है। इसी चलने की तरह ही हैं ये प्रश्न कि भगवान क्या हैं? एक ऐसा यक्ष प्रश्न जिसका जवाब हजारों-लाखों सालों से दुनिया ढूंढ रही हैं फिर भी इसका उत्तर आज तक नहीं मिला। इस सवाल का जवाब हजारों-लाखों साल बाद तक भी खोजा जाएगा लेकिन इसका उत्तर तब भी नहीं मिलेगा क्यों? क्योंकि ये प्रश्न उन प्रश्नों में सम्मिलित हैं जिनका कोई उत्तर बना ही नहीं, जैसे- पानी का स्वाद क्या हैं? हवा का रंग क्या है? शैतान है या नहीं? हम यहाँ किसलिए हैं? इन्ही बिना उत्तर के सवालों में यह एक प्रश्न भी अपनी सबसे मजबूत स्थिति में खड़ा है और खड़ा रहेगा भी, कबतक? शायद तब तक जब तक दुनिया रहेगी।

3 thoughts on “What is the god? भगवान हैं भी अगर हैं तो कैसा हैं?”

  1. ईश्वर अनंत है, ईश्वर अनादि है, ईश्वर निराकार है,ईश्वर परम सत्य है, ईश्वर निर्मूल है, ईश्वर वायु है, ईश्वर जल है, ईश्वर को हम जैसा मान ले वैसा है ईश्वर, ईश्वर सर्व स्वरूप विश्वरूप श्रष्टा,नियंत्रक,संहारक है ईश्वर,ईश्वर प्राण है,ईश्वर देह है,ईश्वर सर्वस्व है

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