ये जुबाँ हमसे सी नहीं जाती,
ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती।
इन फ़सीलों में वो दरारें हैं,
जिनमें बसकर नमी नहीं जाती।
देखिए उस तरफ़ उजाला है,
जिस तरफ़ रोशनी नहीं जाती ।
शाम कुछ पेड़ गिर गए वरना,
बाम तक चाँदनी नहीं जाती।
एक आदत-सी बन गई है तू,
और आदत कभी नहीं जाती।
मैकशो मय ज़रूर है लेकिन,
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती।
मुझको ईसा बना दिया तुमने,
अब शिकायत भी की नहीं जाती। dushyant kumar( हिंदी साहित्य के महान लेखक) 👉इतवार वाली आँखे। 👉 हिंदुस्तान ही तो है 👉 कवि का हृदय