राजनीति का बेशर्म रंग

 शाहरुख़ खान और दीपिका पादुकोण की “पठान ” मूवी 25 जनवरी को रिलीज होने वाली हैं जिसका मुझे बहुत ही बेसब्री से इंतजार हैं क्योंकि हर चीज़ ही हमें कुछ ना कुछ नया सिखाती है लेकिन इस मूवी से हमें बहुत कुछ अच्छा जानने को और अच्छा सीखने को मिलेगा।ऐसा इसलिए कि सिर्फ इसके एक गाने से हमें जब ये अनमोल ज्ञान प्राप्त हो सकता है कि रंगों का भी जाति-धर्म, समुदाय हो सकता हैं तो पूरी फिल्म में तो ऐसे अप्राप्य ज्ञान की वर्षा हुई होगी।                                 👉love is love not…..     

  मध्यप्रदेश के गृहमन्त्री नरोत्तम मिश्रा और नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह ने इस बेहद गंभीर मुद्दे पर आपत्ति जताई हैं कि कोई महिला भगवा रंग की ड्रेस पहनकर हिन्दू धर्म को कैसे बदनाम कर सकती हैं? अगर ये गंभीर मुद्दा ना उठा होता तो मुझे लगता है मेरे जैसे देश के करोड़ युवा इस बात से अनजान ही रह जाते की रंगों का भी अपना धर्म होता हैं। हमने तो आज तक यही पढ़ा था कि रंगों का स्वभाव होता हैं उनकी कुछ प्रकृति होती हैं जैसे गरम या शीत लेकिन मैं कसम खा कर कहती हूँ कि आज तक मैंने रंग का कोई धर्म नहीं पढ़ा था इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी मुझे वो तो शुक्र हो “बेशर्म रंग” का जिससे पता चला कि धर्म के साथ-साथ रंग शर्मदार या बेशर्म भी हो सकते हैं। जब इस बात की जानकारी मुझे हुई तो मेरे मन से बरबस ही निकला कि देश को ऐसे होनहार तेजस्वी नेताओं की सख्त जरुरत हैं जो महंगाई, बेरोजगारी, बलात्कार,हिंसा, मर्डर, भ्रष्टाचार से भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दों पर राजनीति का मार्ग प्रदर्शित करें और हम जैसे बुद्धिहीन मनुष्यों को चिन्तित होने का असल कारण प्रदान करें बेरोजगार होना भला कोई चिन्तित होने जैसी बात हैं! ये तो एक फैशन हैं जो आजकल अधिकतर युवा फॉलो करता नज़र आता हैं। असल चिंता तो ये होनी चाहिए कि पूरे देश में भगवा रंग की साड़ी को कैसे पहुँचाया जाए और युवा लड़कियों, बुजुर्ग महिलाओं आदि सभी को कैसे वो साड़ी पहनने के लिए प्रेरित किया जाए एवं उन्हें कैसे मनाया जाए कि वो भगवा रंग का कोई भी अंतवस्त्र ना पहने। क्योंकि उन्हें क्या पता कौन सा रंग कहाँ पहनना चाहिए या नहीं ये तो तेजस्वी प्रकार के नेता लोग को ही पता होगा ना! 

इन सब बातों पर गौर करने पर मुझे लगता हैं कि इन नेताओं को पठान फिल्म की टीम को माफ़ कर देना चाहिए क्योंकि वो भी मनुष्य ही हैं आप जैसे महान तो थे नहीं कि उन्हें पता होता कि दीपिका को भगवा रंग के छोटे कपड़े ना पहनाया जाए। उन्होंने तो सोचा कि जहाँ नीला, काला,पीला , सिल्वर कलर पहना ही रहें हैं वहाँ भगवा ही सही या हो सकता है कि वो भगवा और ऑरेन्ज कलर में कनफ्यूज हो गए हो बेचारे? जैसे की हम लोग कनफ्यूज रहते हैं इंग्लिश में देखते हैं तो ऑरेंज कलर ही दिखता हैं हिंदी में देखते हैं तो परम्परा, प्रतिष्ठा,अनुशासन से लिपटा हुआ भगवा रंग। लेकिन मेरी तो कनफ्यूजन दूर हो गई है और मैं जा रही हूँ अपने वार्डरोब से सारे ऑरेंज कलर वेस्टर्न ड्रेस निकाल के साड़ी और सूट रखने क्योंकि मैं भगवा रंग को बदनाम नहीं करना चाहती आखिर मैं भी इस देश की जिम्मेदार नागरिक हूँ क्या हुआ अगर मुझे फिट आने वाले कपड़े अक्सर मुझे भगवा रंग में ही मिले तो मैं ओवरसाइज या लो साइज का ले लूंगी कुछ, भले मेरा बदन खराब हो जाए लेकिन देश की सभ्यता नहीं खराब होनी चाहिए।     

 खैर बहुत हो गई मजाक की बातें अब कुछ काम की बात करें? जैसा की पठान मूवी का सॉंग “बेशर्म रंग” आते ही विवादों मे घिर गया हैं लीजेंड लोग इस वजह से गाने की आलोचना कर रहें हैं क्योंकि उन्हें ये गाना कॉपी किया हुआ लगता हैं जो कि हो भी सकता हैं या शायद हैं भी लेकिन अल्ट्रा प्रो लीजेंड इस बात पर खफा हैं कि दीपिका ने इसमें भगवा रंग की बिकिनी क्यों पहनी?ऐसा करके वो कुछ दिन लाइमलाइट में तो जरूर रह लेंगे लेकिन बुद्धिजीवी लोग राजनीति के अंधकार में जाते चेहरे को देखकर अफ़सोस करेंगे। अब देश में महिला के अंतवस्त्रों पर भी राजनीति होगी? चलिए ठीक हैं कि गाने पर आप वल्गर होने का आरोप लगातें हैं लेकिन क्या ये पहला गाना हैं जो ऐसा हैं इससे पहले कोई ऐसा गाना नहीं देखा आपने क्या? आजकल तो अधिकतर गाने इससे भी ज्यादा बेहूदे और इससे भी ज्यादा न्यूडिटी वाले निकल रहें हैं उनपर आपको आक्रोश नहीं आ रहा। ओटीटी पर जो कॉन्टेंट दिखलाया जा रहा हैं उससे युवा पथभ्रष्ट नहीं हो रहें ?उससे हानि नहीं हो रही भारतीय सभ्यता की? लेकिन उनपर कोई सियासत नहीं की जाएगी क्योंकि उसमें कट्टर स्वभाव रखने वाले लोगों की भावनाओं को भड़काया नहीं जा सकेगा लेकिन यहाँ पे ऐसा किया जा सकता हैं क्योंकि दीपिका ने जो कपड़ा पहना हैं वो भगवा हैं और इस कलर को हिन्दू संस्कृति से ऐसे जोड़ा जाता हैं जैसे शादी वाले हाथ और मेहंदी। जैसे हरे कलर को मुस्लिम मान लिया गया हैं वैसे ही भगवा कलर को हिन्दू।

मुझे कुछ नहीं पता आगे किन-किन मुद्दों पर राजनीति होगी लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि जिन पर भी राजनीति होगी वो मुद्दे तो नहीं होंगे इसी तरह की बेतुकी बातें होगी, झूठे वादे होंगे, ये लव जिहाद या रंग-रंग होगा लेकिन मुद्दा कोई भी नहीं होगा क्योंकि मुद्दे बनाए नहीं जाते मुद्दे समाज में मौजूद रहते हैं।

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