जिनकी पलकें भीग रही हैं उनको भी ग़म होगा
लेकिन जिस पर आब न ठहरे वो मोती कम होगा
मेरे गीतों जैसी जैसी तेरे फूलों की तहरीरें
धरती तेरे अंदर भी शायद कोई ग़म होगा
भीग चुकी है रात तो सूरज के उगने तक जागो
जिस तकिये पर सर रक्खोगे वो तकिया नम होगा
बादल, चाँद, घटाएँ, सूरज, ये बातें क्या जानें
उनसे पूछो किस बस्ती में कैसा मौसम होगा
मेरे तेरे चूल्हों में तो इतनी आग नहीं थी
जिससे सारा शहर जला है कोई परचम होगा ।