“उम्र का फ़र्क निदा फ़ाज़ली की कविता

 बहुत सारी खनकती हुई किलकारियों को सुन कर मैं किताब बंद करके कमरे से आँगन में आया लेकिन मुझे देखते ही मारिया के साथ हँसते खेलते उसके सारे नन्हे-मुन्ने साथी सहम सहम कर अपनी-अपनी शाख़ों पर वापस जाकर फिर से फूल बन गए केतकी चमेली गुलाब

Kumar vishwash love poetry(कुमार विश्वास लव पोएट्री)

 एक मैं हूँ यहाँ एक तू है ।  एक मैं हूँ यहाँ, एक तू है सिर्फ़ साँसों की ही गुफ़्तगू है ,          चाँद के साज़ पर रोशनी गीत गाते हुए आ रही है            तेरी ज़ुल्फ़ों से छन कर वो देखो चाँदनी नूर बरसा रही है ,,  … Read more

“उनको भी गम होगा”- निदा फाज़ली

 जिनकी पलकें भीग रही हैं उनको भी ग़म होगा  लेकिन जिस पर आब न ठहरे वो मोती कम होगा मेरे गीतों जैसी जैसी तेरे फूलों की तहरीरें  धरती तेरे अंदर भी शायद कोई ग़म होगा  भीग चुकी है रात तो सूरज के उगने तक जागो  जिस तकिये पर सर रक्खोगे वो तकिया नम होगा  बादल, … Read more

‘सूअर के छौने’ अनुपम सिंह

 बच्चे चुरा आए हैं अपना बस्ता  मन ही मन छुट्टी कर लिये हैं आज ,  नहीं जाएँगे स्कूल झूठ-मूठ का बस्ता खोजते   बच्चे मन ही मन नवजात बछड़े-सा कुलाँच रहे हैं  उनकी आँखों ने देख लिया है  आश्चर्य का नया लोक  बच्चे टकटकी लगाए  आँखों में भर रहे हैं  अबूझ सौन्दर्य  सूअरी ने जने हैं … Read more