ओजू तुम्हारे लिए मैं इतना गैर हो गया कि तुमने एक बार मुझे कॉल करके बताना भी जरूरी नहीं समझा कि. …. , मानता हूँ कि वो तुम्हारी माँ थी लेकिन मेरी भी तो कुछ थीं! लक्ष्य दरवाजे पर ही खड़ा था उसकी आँखों और आवाज में नमी थी।
नही ,वो सिर्फ मेरी माँ थी तुम्हारी वो कुछ नहीं थीं । ओजू ने उससे आँख मिलाते हुए कहा ।
यार ओजू तुम ऐसा कैसे बोल सकती हो? क्या हो गया है तुम्हें पहले तो कभी ऐसे बात नहीं करती थी। उसने ओजू के दोनो कन्धो को पकड़ कर हिलाया। ओजू ने उसके हाथ झटकते हुए कहा ,”पहले मैं नादान थी लेकिन अभी मुझमें समझ आ गयी है।”
उज्जवला, ये तुम हो? जिसे मैंने प्यार किया था , जिसे अपना सब कुछ मान लिया था वो तुम ही हो?
नहीं लक्ष्य अब मैं वो नहीं रही इसीलिए तुम जिसके लिए यहाँ आएं हो अब वो तुम्हें नहीं मिलेगी,तुम चले जाओ यहाँ से। मैं तुम्हारे लिए नहीं आया हूँ, अपनी माँ के लिए आया हूँ । मुझे उनकी एक तस्वीर चाहिए बस ताकि कभी मुझे अहसास न हो की मैं अकेला हूँ, अनाथ हूँ। बाकी तुम्हारे आगे हाथ फैलाने नहीं आया हूँ कि तुम खुद को मुझे सौप दो।
क्यों कर रहें हो तुम ऐसा जब वो तुम्हें पसंद नहीं करती थीं तो। ओजू गुस्से व बेबसी से चीखना चाहती थी पर आवाज जब्त कर गयी।
उन्होंने मुझे बेटा माना था और कोई भी माँ अपने बेटे से नाराज तो हो सकती है लेकिन उससे नफरत नही कर सकती। हाँ ये सही है कि जिस इंसान से वो बहुत प्यार करती थी उसकी आखिरी ख्वाहिश न पूरी होता देख उन्हें सदमा लग गया था। उन्होंने सोचा कि मेरी वजह से ही तुम उनसे खिलाफत कर रही हो , इसीलिए गुस्सा हो गयी थी थोड़ी देर के लिए। तभी उस वक्त मैं चला गया था वहाँ से मैंने सोचा जब उनका गुस्सा ठंडा हो जायेगा तो कॉल करके कहेंगी,” आजा , तेरे लिए अपने हाथों से चाय बनाई हैं! ” लेकिन….जब इतने दिनों में उन्होंने मुझे फोन नहीं किया तो मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है फिर आदित्य ने मुझे फोन किया तब पता चला कि ….! उसने अपने आंसू रोके लेकिन वो बह के गाल तक ही आ गये।
आदित्य ने तुम्हें कॉल क्यों की? उसने लक्ष्य को शक की निगाह से देखा।
क्योंकि वो तुम्हें हैंडल न कर पा रहा हो शायद….! खैर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं जब तुम मम्मी के दूर जाने का कारण मुझे मानती हो तो ये बातें मैटर ही नहीं करती कि कौन तुम्हारी फ़िक्र कर रहा है कौन तुम्हें संभाल रहा है ? मैं तो गैर हो ही चुका हूँ तुम्हारे लिए , गैर क्या मरा ही समझ लो… मुझे मेरे प्यार को , मेरी दोस्ती को , मेरी दुआओं को मेरी हर चीज…चीज को तुम… मरा ..! वो रोने लगा इतना कहते-कहते ही। ओजू भी रोती हुई उसके करीब हो गयी। ,” बड़ी मुश्किल से खुद को मजबूत किया है अब दोबारा मुझे कमजोर न करो, अब मैं सिर्फ अपने देवू के लिए जीना चाहती हूँ किसी आदित्य या लक्ष्य के लिए नहीं लेकिन तुम्हारी ऐसी बातें मुझे कमजोर कर देगी मैं फिर से तुम्हें प्यार कर बैठूँगी । लक्ष्य उससे दूर हट कर दरवाजे के पास गया और दरवाजा बंद करके थोड़ी देर उधर ही सर झुकाये खड़ा रहा शायद आंसुओ को रोकने की कोशिश कर रहा था । तुम रो सकते हो मेरे सामने । उसने पीछे से उसके कांधे पर हाथ रख दिया । लक्ष्य उसकी तरफ पलट कर खड़ा हो गया । तुम्हें प्यार करने की इजाजत है ओजू , इसमें कुछ भी गलत नहीं हैं । उसने अपनी दोनों हथेलियों में ओजू का मासूम सा चेहरा भर लिया।
पर अब मुझे सबकुछ गलत लगने लगा है मेरा जीना भी । उसने उसके प्यार भरे हाथों को वैसे ही दूर कर दिया जैसे किसी बेहद खूबसूरत गुलदस्ते को दूर करती है क्योंकि वो काफी महंगा होता है।
ओजू मुझ पर भरोसा करके देखो , एक बार फिर मुझे प्यार करके मुझे महसूस करके देखो, एक बार मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखो, मेरी साँसो को मेरी रूह को महसूस कर के देखो। वो ओजू के बिल्कुल करीब चला गया और उसे अपनी बांहो में खींच कर महसूस करने लगा। वो उसके दिल की धड़कन सुन पा रहा था , उसकी सांसों को पी सकता था उसके बालों की खुश्बू को खुद में समा रहा था वो चाहता था कि ओजू भी ऐसा करे लेकिन ओजू वाकई में पहले जितनी कमजोर नहीं थी अपनी भावनाएं दबा सकती थी, उनपर काबू रख सकती थी और जो इंसान अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रख सकता है असल मायने में वही मजबूत भी होता है।
नहीं लक्ष्य अब कुछ नहीं होगा मुझसे कुछ भी नहीं प्लीज चले जाओ यहाँ से। वो उससे दूर होती हुई चिल्लाने लगी उसपर। तुम मेरी माँ के कातिल हो प्लीज मुझे इसी वहम में जीने दो क्योंकि मैं सच में तुमसे प्यार नहीं करना चाहती। भगवान के लिए तुम यहाँ से चले जाओ।ओजू लक्ष्य पर चिल्ला ही रही थी कि दरवाजे पर किसी ने आवाज लगाई । वो चुप हो गयी लक्ष्य ने भी अपने आँसूओ को पोछ लिया । दरवाजे की बेल फिर बजी तो ओजू ने खुद को संभालते हुए दरवाजा खोला । इतनी आवाज क्यों आ रही थी ? आदित्य ने तुरंत ही सवाल पूछा और तुरंत ही उसका जवाब भी मिल गया लक्ष्य को देखते ही। तुमने लक्ष्य को माँ के बारे में बताया ?
मैने सोचा कि. …
बताया या नहीं ?
हाँ क्योंकि मुझे लगा कि इस वक्त शायद तुम्हें उसकी जरूरत… मैंने कहा था बुलाने के लिए?
मैं अपनी मर्जी से आया हूँ किसी के बुलाने पर नहीं । लक्ष्य ने बीच में जवाब दिया ।
तुमसे नहीं आदित्य से पूछ रही हूँ ।
मुझे देर हो रही है ओजू, मैं आंटी जी का कुछ सामान लेने आया था। इतना बोल कर आदित्य ओजू की नजरों से बचने के लिए उसकी माँ के कमरे की तरफ चल दिया । लक्ष्य और ओजू में फिर से बहसबाजी शुरु हो गयी। लक्ष्य कुछ कह रहा था ओजू कुछ जवाब दे रही थी। लक्ष्य की आवाज़ दबी हुई थी तो ओजू चीख सी रही थी। आदित्य कमरे में जाकर दरवाजे की आड़ से दोनों की बातें सुन रहा था ।
क्या मैं तुम्हारा दोस्त भी बनकर नही रह सकता? आखिर में हार कर लक्ष्य इतना ही पूछ सका किसी उम्मीद के साथ ।
नहीं पता । ओजू ने रूखी आवाज में ही जवाब दिया ।
तो क्या समझूँ तुमने मुझे हमेशा के लिए जिंदगी से निकाल दिया?
जो भी अच्छा लगे।
ठीक है तो मुझे आंटी जी की एक फोटो दे दो बस मैं चला जाऊंगा।
नहीं दे सकती क्योंकि कुछ ही फोटोज हैं मेरे पास ।
आदित्य को उनका सारा सामान दे सकती हो मुझे एक फोटो नही ?
मैने उसे कुछ दिया नहीं हैं वो कुछ ढूंढ रहा है जब वो उसे मिल जायेगा मैं सारा सामान वापस ले लूंगी।
क्या ढूंढ रहा है ।
मेरी माँ की मौत की वजह।
मतलब?
तुम न ही जानो तो बेहतर रहेगा ।
ठीक हैं इतना जानने का भी हक़ नहीं रहा तो …. मैं चला ही जाता हूँ ।
बेशक़…। ओजू ने ये शब्द बोल तो दिया लेकिन उसका दिल कह रहा था कि “मत जाओ लक्ष्य मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है।” लेकिन दिल की बात वो होठों पर नहीं आने दे रही थी बस वो आँखों से आंसू ही बनकर छलक पायी। उसे मजबूत दिखना था तो वो आँसू भी घोंट कर खुद में ही पीने लगी ।
क्या सच में दोस्ती लायक भी नहीं रहा मैं तुम्हारी…? मुझे थोड़ा वक्त चाहिए इसके लिए । वो कुछ कमजोर सी पड़ने लगी।
तो अभी मै जाऊं ? उसकी आवाज में घोर निराशा नजर आ रही थी।
ओजू, वो…मैं बताना भूल गया था कि देवू को कुछ कपड़े चाहिए उसका साइज मुझे नहीं पता वरना मैं ही ले आता, तुम चलो खरीद के दे दो चल के तो मैं उसे पहुँचा आऊं। आदित्य कमरे से निकल कर बरामदे में आ गया ।
उसे मेरे साथ ही कपड़े खरीदना पसंद था , मुझे उसका साइज अच्छे से मालूम है । लक्ष्य ने कुछ उम्मीद से कहा ।
अगर तुम्हें मालूम है तो तुम ही दोनो ले आओ जाकर , दे मैं आऊंगा।
ओजू से पूछो ये साथ चलेगी भी मेरे?
तुम दोंनो ही चले जाओ , मेरा जाना जरूरी तो नहीं!
तुम्हें उसके लिए शॉपिंग करने की आदत डाल लेनी चाहिए ओजू, आज हम दोनों चलें जाएंगे फिर दोबारा उसे कुछ जरूरत होगी तो? आदित्य ने कहा ।
ठीक है, आदित्य तुम भी मेरे साथ चलोगे, उधर से ही कपड़े लेकर निकल जाना यहाँ से दूर पड़ जायेगा उसका हॉस्टल। ओजू ने आदित्य की तरफ देखते हुए लक्ष्य के साथ चलने के लिए हामी भर दी।
ओजू ये सोच कर चली तो आयी कि अब देवू के लिए जो करना है उसे ही करना है , इसीलिए अब वो उसके लिए उसकी जरूरत की हर चीज के बारे में जानेगी जैसे उसकी माँ रखती थी वैसे ही वो भी देवू का ख्याल रखेगी। लेकिन यहाँ आकर वो आदित्य और लक्ष्य के साथ तालमेल ही नहीं कर पा रही थी या करना नहीं चाह रही थी अगर लक्ष्य ना होता तो शायद आदित्य के साथ ही चलती रहती लेकिन लक्ष्य के साथ होने से वो कुछ कदम पीछे चल रही थी और कभी-कभी रुक भी जा रही थी। उसे यहाँ रंग-बिरंगे कपड़ो में हर चीज सादी ही दिख रही थी , और उस सादेपन में जो हलका सा एक रंग छिटकता जो कभी आदित्य का रूप ले लेता कभी लक्ष्य का और इतने में ही उसे उलझन पैदा होने लगती। आज से पहले ये दोनों कभी इतने इत्मीनान से बात करते हुए , साथ मुस्कुराते हुए कभी नहीं चले , दोनो के पास चौड़े से हैं कंधे जिनके बीच की जगह उसे खुद में समेटने के लिए बेकरार नजर आती थी । नहीं! नहीं वो इन दोनो में से किसी की बांहों में नहीं जाना चाहती नहीं, अब उसे ये चौड़े कंधे नहीं चाहिए सहारे के लिए! अब वो अकेले ही जियेगी। चलते-चलते ओजू रुक गयी उसके माथे पर पसीना आ रहा था , उसने अपने आगे चलते आदित्य और लक्ष्य को देखा फिर अपने पैर पीछे की तरफ खींच लिए इतनी आहिस्ते से कि उन्हें पता न चले। यूँ लगा की वो उनकी जिंदगी से भी इतने आहिस्ते से पैर खींचना चाहती है और ये भी चाहती है की उन्हे पता भी न चले।
कपड़े पसंद करते-करते वो दोनो आगे निकले तो उन्हें लगा कि उनके पीछे हलके से चलने वाले कदमों की आवाज बंद हो चुकी है और कोई” हाँ-हूँ , ये भी ठीक है , ये रंग प्यारा है ,” कहने वाला नहीं बचा है। दोनो पीछे पलटे इधर-उधर नजर दौड़ाई लेकिन ओजू नहीं दिखी।
कहाँ गयी साथ ही तो चल रही थी? आदित्य ने लक्ष्य से पूछा। तुम देखो जाकर आसपास ही कुछ पसंद कर रही होगी तब तक मैं ये कपड़े पैक पर पैक करवा के आता हूँ ।
ओके जाओ, मैं देखता हूँ उसे यहीं कहीं होगी। आदित्य उसे ढूंढ़ते हुए वापस उसी तरफ चल दिया जिधऱ से सभी आएं थें। थोड़ा और आगे निकलने पर उसे सीढ़ियों से थोड़ा आगे ओजू दिखाई दी जोकि किसी के साथ खड़ी थी। आदित्य ने सोचा कोई जान-पहचान का आदमी होगा लेकिन उसने गौर किया की उस आदमी को उसने पहले कभी देखा ही नहीं और तो और ओजू के चेहरे पर भी गुस्सा दिख रहा है शायद वो उसे कुछ उल्टा-सीधा बोल रही है ! तो क्या ये ओजू को परेशान कर रहा है? हाँ वाकई वो ओजू की बॉडी को टच करने की कोशिश कर रहा था और ओजू उससे बचने के लिए इधर-उधर देख रही थी। कमाल है इतने बड़े शॉपिंग मॉल में एक ढंग का आदमी नहीं है जो उसकी हेल्प कर सके। आदित्य को ये सब देख बहुत गुस्सा आ गया और उसने बिना कुछ सोचे समझे ही उसे गालियां देना शुरु कर दिया और फिर जाकर उसका कॉलर पकड़ के उसे दीवार से लड़ा दिया । अचानक हुए इस हमले से सामने वाला संभल पाता इससे पहले आदित्य ने उसे दूसरी बार भी झटका दे दिया लेकिन अब तक वो भी संभल चुका था और उसने भी पलटवार किया। दोनों में लड़ाई होने लगी , आसपास भीड़ इक्कठा होती देख ओजू आदित्य को उससे अलग करने की कोशिश करने लगी लेकिन आदित्य कहाँ छोड़ने वाला था। दोनों ही एक दूसरे की जान का दुश्मन बने एक दूसरे को ज्यादा से ज्यादा चोट पहुंचना चाहते थें। सामने वाला ढीला पड़ने लगा था उसके मुँह से और सर से खून बह रहा था लेकिन आदित्य को जरा भी रहम नहीं आ रहा था वो उसे भुसे की तरह धुनते ही जा रहा था शायद वो उसे मार ही डालता अगर बीच में लक्ष्य और सिक्योरिटी ने आकर उसे छुड़ाया न होता तो। उन्हें अलग करके लक्ष्य ने माहौल शांत कराया और लोगों को अपने-अपने काम पर ध्यान देने का निवेदन किया। जब सब चले गये तो आदित्य ओजू पर ही गुस्सा करने लगा।
जब साथ चल रही थी हमारे तो यहाँ आने की क्या जरूरत थी? कोई दिक्कत थी तो हमें कहती कुछ चाहिए था तो हमें बोलती चुपके से यहाँ आकर खड़े होने से क्या मिला? ओजू को लगा कि आदित्य उसे उसकी जिंदगी से चुपचाप निकलने की साजिश पर डांट रहा है, वो सर झुकाये सुनती रही क्योंकि उसने तय कर लिया था कि वो निकल तो जरूर जाएगी उनकी जिंदगी से चाहे कोई कितना न गुस्सा करे ।
प्लीज यार पहले ही ये डरी हुई है तुम और डरा दो इसे। लक्ष्य ने आदित्य से चुप रहने को कहा।
क्या हुआ था यहाँ ओजू बोलो , यहाँ क्यों आयी थी क्या बोल रहा था वो आदमी? लक्ष्य ने बिल्कुल दुलार से पूछा। पता नहीं कौन था वो आदमी मैं तो बस यहाँ थोड़ी देर खड़ी रहना चाहती थी।
क्या कह रहा था वो ।
कुछ नहीं वही बातें जो आजकल के आवारा लड़के बोलते है। फिर भी कुछ तो बताओ।
अरे कुछ नहीं उसे मिसअंडरस्टैंडिंग हो गयी थी मैं यहाँ कोने में खड़ी थी इसीलिए ।
क्या मिसअंडरस्टैनिग हो गयी थी?
अरे छोड़ो अब तो बात ख़त्म हो गयी चलो चलते है ।
ओजू , तो तुम नहीं बताओगी ? अबकी आदित्य बोल पड़ा। ओजू उसे और गुस्सा नहीं दिलाना चाहती थी इसीलिए कुछ बताना नहीं चाहती थी लेकिन अब अगर वो न बताये तब भी गुस्सा तो उसे झेलना पड़ जाता इसीलिए वो बताने लगी ,” उसने सोचा कि मैं कॉलगर्ल हूँ, किसी अच्छे क्लाइंट का वेट कर रही हूँ यहाँ । इसीलिए वो यहाँ आया…. और मुझे ….. जबरदस्ती अपने साथ ले….
लक्ष्य मैं इधर से ही हॉस्टल के लिए निकल रहा हूँ तुम इसे घर तक छोड़ देना। आदित्य ने उसकी बात ख़त्म होने का वेट भी नहीं किया और वहां से निकल गया।
लक्ष्य उसे रोको बहुत गुस्से में गया है वो कहीं कुछ कर-करा न ले। ओजू घबरा गयी।
गुस्सा तो मुझे भी बहुत आ रहा है लेकिन उस बेचारे आदमी पर नहीं तुम्हारे ऊपर। आदित्य को बेवजह टोक दिया काश वो और तेज डांटता तुम्हें , चलो अब मेरे साथ।
उन दोनो ने ही उसे डांटा क्या सच में उसकी कोई गलती थी? वो तो उन दोनो से बचने के लिए ही वहाँ से हट गयी थी उसे क्या पता था कि आगे क्या हो जायेगा उसके साथ? आदित्य ही इतना हाइपर हो गया उसे दो-चार बातें सुनाकर छोड़ देता तो मुद्दा इतना बढ़ता ही नही…., नहीं फिर वो किसी और लड़की के साथ ऐसा करने की कोशिश करता ।आदित्य ने बिल्कुल ठीक किया जो उसे इतना मारा , वैसे क्या आदित्य मुझे अब भी उतना प्यार करता है जितना पहले करता था?आज उसने जो किया है उससे तो यही लगता है कि. …..? ऐसे ही सवालों की गठरी अपने दिमाग़ में लिए ओजू रात में इधर-उधर बिस्तर पर करवट बदलती रही , और आधी रात के बाद उसे नींद कब आयी कुछ होश ही नही रहा।
अगली सुबह जब वो उठी तो काफी हलका महसूस कर रही थी। अपने सुबह के सारे काम समेट कर , पूजा ख़त्म करने के बाद उसने जैसे ही चाय के साथ अखबार का पहला पन्ना देखा तो उसके होश उड़ गये , उसका सर भारी हो गया उसे हर चीज धुंधली दिखाई देने लगी, लगा कि आंगन उसके चारों तरफ चक्कर खा रहा है और फिर एक दम से उसके हाथ से चाय का कप छूट गया और वो भी धड़ाम से फर्श पर ही गिर पड़ी ।
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