जब एक स्त्री प्रेम में पड़ती हैं तो अपने प्रेम पर पूरा हक़ चाहती है वह चाहती है कि सामने वाले व्यक्ति पर जिसे वो प्यार करती है उतना ही अधिकार स्थापित करें जितना एक माँ अपने बच्चे पर। सिर्फ अधिकार जताना ही उसे अच्छा नहीं लगता बल्कि वो चाहती है की उसका प्रेमी भी उसपर उतना ही हक़ जताये जितना वो जता रही हैं। रिश्ते में कोई दुराव-छिपाव उसे रास नहीं आता वो चाहती है कि वो अपना सब कुछ बताए वो चाहती है कि सामने वाला भी अपना सारा हाल सुनाए, रिश्तों में ज़रा सा भी असुरक्षा की भावना ना आने पाये और अगर कभी ऐसा हो तो आमने-सामने बैठ कर बातें हो जिन बातों पर शंका हो वो पूछी जाएं जो बातें डराती हो वो कही जाएं।
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
पूछना जगह देना होता है
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
इससे तुम्हें भी जगह मिलती
पर तुमने सोचा होगा कि
पूछ कर कहीं जगह तो ना खो दूँ?
मुझे ही पूछने देते अगर तुम
तो पूछती मैं कि कुछ पूछना तो नहीं तुम्हें ?
सब ओर से चिने अपने कवच में भी
इतने असुरक्षित क्यों हो तुम ?
कि पूछने भर के अंदेशे से ढह जाते हो ?
अगर आप में भी कुछ भी पूछने की आदत नहीं है तो ये आदत डाल लीजिये क्योंकि स्वास्थ रिश्ते के लिए ये काफी जरुरी होती हैं। पूछना ऐसे वाला नहीं होना चाहिए कि लगे पर्सनल लाइफ में दखल दी जा रही हैं बल्कि ऐसा होना चाहिए कि एक पिता फ़िक्र कर रहा है , एक भाई स्नेह कर रहा हैं , एक दोस्त सलाह दे रहा हैं और एक प्रेमी प्रेम कर रहा हैं। पूछिए , की पूछने से दिमाग हल्का रहता हैं और दिल प्रेम से भारी। अगर आपको ये छोटी सी सलाह पसंद आयी हो तो इसे शेयर करना ना भूले। मिलते हैं अगले ब्लॉग में ।