जैसे ही विक्रांत की तबियत की खबर मिली सारे दोस्त दौड़ते हुए हॉस्पिटल पहुँचे,उन्हें डर लगा था कि विक्रांत के साथ कुछ बुरा ना हो जाएँ लेकिन विक्रांत के साथ बुरा नहीं बहुत बुरा हुआ।
पायल की चीखों से हॉस्पिटल का कॉरिडोर बिलकुल कांप जा रहा था, जैसे ही सारे दोस्त वहाँ पहुंचे तो पायल दौड़ के सान्या से लिपट गई। सब जान चुके थे कि क्या हुआ है फिर भी हिम्मत करके ICU के सामने जाकर खड़े हो गएँ अंदर देखा तो पाया कि डॉक्टर्स विक्रांत के शरीर से सारी मशीने हटाकर उसकी लाल-लाल दानों से भरी हुई बॉडी को पैक कर रहें थें। ये देख के सबके होश हवा हो गएँ उर्वी और कबीर तो सीधे खड़े भी नहीं हो पा रहें थें लेकिन दानिश को दोस्त से किया वादा याद था तो उसने किसी तरह खुद को संभाला और विकी के पेरेंट्स के पास गया। विक्रांत की माँ हॉस्पिटल के एक बेड पर बेहोश पड़ी थीं उन्हें ड्रिप लग रही थी और उसके पिता पथरीली आँखों से अपनी बीवी का चेहरा देख रहें थें चेहरे पे जर्द सफेदी के सिवा कुछ भी नहीं था ना कोई गम ना कोई ख़ुशी। गम भी किया जाएँ तो किस बात का ? उसका अहसास भी तो हो कैसे? जब ख़ुशी होती है तभी गम का अहसास भी होता है लेकिन जब उनकी जिन्दगी से सारी खुशियाँ ही चली गई तो गम का तो पहले ही अस्तित्व मिट गया। विकू के पापा को इस हालत में देख दानिश दौड़ के उनसे लिपट गया एक भी शब्द नहीं बोल पाया बोले भी क्या कि जो हुआ भूल जाओ और आगे का सोचो ! कैसे ? जब किसी इंसान की सारी दुनिया ही उजड़ गई तो उसका वर्तमान क्या और क्या उसका भविष्य ।
सान्या की हिम्मत नहीं हुई कि वो जाकर देखे कि विक्रांत को क्या हुआ है बस उन सब के रोने-चीखने से ही समझ गई कि उसका एक और दोस्त दुनिया छोड़ चुका है । दीप्ति के जाने के महीने भर के अंदर दूसरे दोस्त का खो जाना ये उन सबके लिए एक सदमा था ऐसे में भी सभी को मजबूत बनके रहना था क्योंकि उन्होंने तो अपने दोस्त खोए थें तो संभल सकतें थें लेकिन यहाँ कोई था जिसने अपनी जिन्दगी खो दी थी , मोहब्बत खो दी थी और अपने जीने का आधार खो दिया था। कबीर डेड बॉडी को वार्डबॉय के साथ बाहर तो लाया लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई कि एक बार भी विक्रांत के फफोलेदार चेहरे को सफ़ेद चादर से बाहर निकाल के देखें। अंतिम संस्कार की सारी तैयारियां तो हो गई थीं लेकिन विक्रांत की बुआ के आने के इंतजार में सूरज अस्त हो चुका था इसीलिए रात में अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता था । विक्रांत की बॉडी को उसके घर में ले जाकर रख दिया था। विक्रांत के माँ-बाप दोनों ही सदमे में थें। विक्रांत की माँ को थोड़ा भी होश आता तो तुरंत वीकू…बच्चा …लाल कहकर उसकी बॉडी से लिपट जाती थीं और वहीं बेहोश हो जाती थी। इसीलिए उनको कमरे में बंद कर दिया गया था और उनके पास उर्वी को छोड़ दिया गया था। विक्रांत के पापा के पास अन्य रिश्तेदार बैठ कर सांत्वना देने की कोशिश कर रहें थें । पायल और सान्या अलग कमरे में बैठे थे। पूरे घर को देख के ऐसा लग रहा था कि कोई वीराना हो बीच-बीच में कोई रोने-धोने की आवाज उठती तो वो भी शांत हो जाती। कबीर दानिश के पास था न दोनों कुछ बातचीत ही कर रहें थें और न खामोश ही रह रहें थें ऐसा लग रहा था कि दोनों की आंखे पूछ रही हो कि “वीकू मौत का जिम्मेदार कौन?” इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था और इसी का जवाब ढूढने के लिए कबीर उठ कर कमरे के बाहर निकल गया और थोड़ी देर में बैग पीठ पर टांग कर वापस आया और दानिश से बोला,”तुम सबको संभालना मैं सुबह तक वापस आ जाउंगा जबतक मैं ना आऊं तब तक अंतिम संस्कार ना करना।” कहाँ जा रहें हो इतनी रात में?सुबह चलें जाना । नहीं !बर्दाश नहीं मुझे अब कुछ भी ,मैं पता लगा कर ही रहूँगा कि ये कैसे हुआ अचानक। इसीलिए मैं अभी यहाँ के पानी का सैंपल लेकर लैब जा रहा हूँ। तुम सान्या को बचाना चाहते हो ! जबकि वो तुम्हें प्यार भी नहीं करती तब भी ? मैं किसी को बचाना नहीं चाहता बस सच्चाई का पता लगाना चाहता हूँ रही बात प्यार करने या न करने की तो वो पर्सनल मैटर है तुम्हें उसपे नहीं बोलना चाहिए।
दानिश को लगता था कि कबीर सान्या को किसी भी कीमत पर बचाना चाहता है लेकिन वो सान्या को उसके किये की सजा दिलाकर जरूर रहेगा। जैसे उसे ये विचार आया उसने बैग से लाल डायरी निकाल ली। आज वो पता करके ही रहेगा की सान्या ने इस डायरी में ऐसा क्या लिखा है जिसने उसके दोस्त की जान ली। मैं तेरी इस दर्दनाक मौत का पता लगा कर रहूँगा मेरे दोस्त। सफ़ेद चादर के ऊपर से दानिश ने विक्रांत का शव छूते हुए कहा। सफ़ेद चादर पर वो लाल डायरी खोलकर पढ़ने बैठ गया। पूरे कमरे की लाइट बुझा कर उसने सिर्फ डायरी पर ही रौशनी रखी थी। पहला पन्ना खोला तो उसपर लाल रंग के इंक से, जो खून लगता था शायद , दो नाम लिखें थें एडवर्ड मिलर और मधुमिता। दानिश को अजीब लगा कि सान्या तो हिन्दू है तो उसके परदादा ईसाई कैसे हो सकते हैं? शायद उसके या दादा ने या पापा ने हिन्दू धर्म अपना लिया हो । अरे हाँ , सान्या ने एक बार बताया था कि उसके पूर्वजों के पूरे गाँव ने छूआछूत और भेदभाव से तंग आकर ईसाई धर्म अपना लिया था लेकिन उसके दादा जी एक स्वतन्त्रता सेनानी बने थें और उन्हें अंग्रेज बिल्कुल पसंद नहीं थें इसीलिए उन्होंने हिंदू धर्म में वापसी कर ली थी। दानिश ने उन अक्षरों पर उँगलियाँ फिराई और उस समय के अंतर को इस समय में लाकर कम करने की कोशिश की। तो क्या ये सच में इतनी पुरानी है कि इसमें सान्या की कोई चाल हैं । ये जानने के लिए दानिश ने उस पन्ने को पलट दिया और पढ़ना शुरू किया।
खट….खट…. पूरे कमरे में किसी के जूतों की आवाज सी महसूस हुई । एक दो बार दानिश ने इग्नोर किया तीसरी बार में उसने दरवाजे की तरफ नज़र दौड़ाई दरवाजा बंद था। मतलब की कोई नहीं आ सकता कमरे में वो अकेला है और विक्रांत की बॉडी हैं बस। उसने फिर से डायरी पढ़नी शुरू कर दी वो अपना ध्यान ज़रा भी इधर-उधर नहीं करना चाह रहा था क्योंकि डायरी में लिखी कहानी उसे मजेदार लग रही थी वो जानना चाहता था कि एक अधेड़ अंग्रेज ने एक युवा खूबसूरत बंजारन को देखा और उसे अपने साहबों के सामने नाचने के लिए बुलाया तो फिर क्या हुआ उसके आगे ? उसने फिर से ध्यान लगा कर धीमे-धीमे अक्षरों में पढ़ना शुरू किया। दानिश की आदत रही है कि उसे जब भी कुछ याद करना होता है या जब भी उसे कुछ अच्छा लगता है तो वो उसे बोल-बोल के पढ़ने लगता है। इसीलिए विक्रांत दानिश के साथ पढ़ने नहीं बैठता था ग्रुप स्टडी के लिए हमेशा सान्या के घर जाता था। क्योंकि जब दानिश बोल के पढ़ता था तो उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब हो जाती थी इसीलिए आज तक विक्रांत ने कभी दानिश के साथ पढ़ाई नहीं की।
दानिश को पढ़ते-पढ़ते अचानक से लगा कि कोई भारी कदमों से कमरे में बेचैनी से चल रहा है और उसकी घबराई हुई सांसें दानिश को सुनाई दे रहीं हैं। उसने तुरंत पूरे कमरे की लाइट ऑन कर दी। लाइट में पूरा कमरा साफ था कहीं कोई भी नहीं चल रहा था। दानिश ने लाइट ऑफ करके फिर से पढ़ना शुरू कर दिया।
दानिश ने जब बंजारन की खूबसूरती का वर्णन पढ़ना शुरू किया तो पहले तो उसे हँसी आयी कि उस ज़माने के लोग भी इस तरह के रसिया आदमी हुआ करते थें , बालों से लेकर पैर तक की खूबसूरती को शब्दों में यूँ पिरोया गया था कि लग रहा था कि कोई कवि प्रकृति का वर्णन कर रहा हो। बंजारन का रूप , लावण्य उसकी गहरी आसमान जैसी नीली और गीली आँखे ऐसी की लगता था उसमें सैकड़ो तारे जगमगाते रहते हो ,उसके होंठ जैसे गुलाब के शर्बत में लाल मोती….. दानिश की हँसी जा चुकी थी और वो उस बंजारन की खूबसूरती में खोता ही जा रहा था कि तभी उसे लगा कि किसी ने उसके हाथ से जोर से डायरी खींचने की कोशिश की है,उसने तुरंत लाइट जला दी लेकिन इस बार भी कोई नहीं था । लेकिन दानिश संतोष करने के लिए वहाँ से उठकर घूमने लगा । बाथरूम चेक किया ,खिडकी से झाँक-ताक कर देखा बेड के नीचे देखा फिर वापस उसी जगह पर आ गया उसे थोड़ा पसीना आ रहा था और प्यास भी लगी थी लेकिन कमरे में कोई नहीं था जिससे पानी माँगा ले और विक्रांत की बॉडी को कमरे में अकेला छोड़कर नहीं जा सकता था। थोड़ा सोचने के बाद उसने उर्वी को कॉल करके पानी मंगाने की सोची लेकिन उसे अंदर से डर लगा कि कमी कहीं यहाँ के पानी में ही हुई तो ? वैसे तो दानिश यहाँ खेलते-खेलते ही बड़ा हुआ है लेकिन समय का खेल देखिए उसे यहाँ के पानी से भी डर लग रहा है। इसीलिए दानिश ने प्यासे रहना मुनासिब समझा और वापस अपनी जगह पे बैठ के पढ़ने लगा।
डायरी के पेज बदलने के साथ दानिश के चेहरे के भाव भी बदलते जा रहें थें और उसकी आवाज में उतार-चढ़ाव आतें जा रहें थें।” यार ऐसा कौन करता हैं? एक बंजारन के लिए कोई अपनी गर्भवती पत्नी पर इस बेरहमी से हाथ उठाता है, और इतने गर्व से अपनी प्रेमिका के लिए ये बात लिख के भी रखता हैं। छी: उसका मन अजीब हो गया था।थोड़ा रुककर उसने फिर पढ़ना शुरू किया।
उस ज़माने में भी अदा के साथ प्रपोज करने का चलन था ये दानिश को तब पता चला जब एडवर्ड ने अपने साहबों के सामने उस बंजारन को उस दिन फिर नाचने बुलाया और नृत्य खत्म होने के बाद उससे अपनी शादी की बात करने की योजना बनाई थी। दानिश ने पेज पलटा और आगे की बात जानने की कोशिश की । कमरे में लगी घड़ी 2:30 बजने का इशारा कर रही थी लेकिन उसकी आँखों में दूर तक नींद नहीं थी वो जल्द से जल्द पूरी कहानी पढ़ लेना चाहता था । दानिश का दिल टूट गया जब उसने पढ़ा कि मधुमिता ने एडवर्ड की लिखी डायरी को लेने से साफ मना कर दिया उसके साहबों के सामने ही, और उसके साहब लोग उसपर हँस रहें थें। इतनी मेहनत करके वो गाँव के छूत से अंग्रेजी सभा का सदस्य बन गया था नाम बदलने के साथ-साथ रहने का ठिकाना भी बदल लिया था लोग उसे सच में गोरा साहब समझते थें और कभी किसी ने उससे ऊंची आवाज में बात भी नहीं कि ऐसे में मधुमिता ने उसके लिए इंकार कर दिया ये कहते हुए कि “साहब बंजारे जरूर है लेकिन देशद्रोही नहीं ।” एडवर्ड ने उसे धमकी भी दी कि अगर हाँ नहीं कहा तो उसके नाचने-गाने का काम हमेशा-हमेशा के लिए बंद करवा देगा भूखो मरने की नौबत आ जाएगी। “भूखो मरेंगे तो क्या हुआ कम से कम सुकून तो रहेगा की अपने स्वाभिमान और देश की आन के लिए मरे और फिर ऊपर वाले ने ये शरीर दिया है इसमें लोच दी है कला दी हैं तो आपके देश ना सही कहीं और कुछ इंतजाम होगा। हम तो बंजारे हैं ही चलते रहना तो काम है हमारा। सारे अंग्रेज बैठे हँस रहें थें जैसे कोई सिनेमा चल रहा हो उन्हें ज्यादा हिंदी समझ नहीं आती थी लेकिन फिर भी भाव वो जान रहें थें। साहबों की देखा-देखी अन्य लोग भी उसी तरह हँस रहें थें । एडवर्ड गुस्से से पागल हो चुका था उसने आव न देखा ताव तुरंत अपनी……. दानिश ने पन्ना पलटा तो आगे के पन्ने फटे हुए थें शायद किसी ने नोच के अपने पास रख लिया था। दानिश ने बेचैनी से पूरी डायरी शुरू से पलटनी शुरू की वो जानना चाहता था कि आगे क्या हुआ….?
उसने अपनी पिस्तौल निकाली और 2 गोलियां मधुमिता के माथे में मार दी। सारे अंग्रेज साहब उठ खड़े हुए लेकिन उसने सभी को अंग्रेजी में कुछ कहा तो वो शांत हो गएँ । उसने दो गोलियां और बंजारन के सीने में दाग दी। आसपास खड़े लोग चुप होकर तमाशा देखते रहें सब डर गएँ उस एडवर्ड से । दानिश का गाला सूख गया पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया उसे लगा कि उसके सामने बैठकर कोई डायरी के आगे की कहानी पढ़ रहा है। उसने तुरन्त लाइट जलाई लेकिन इस बार उसकी जान जाते-जाते बची। सामने विक्रांत बैठा था अपना फफोलेदार लाल शरीर लेकर और मुस्कुरा रहा था। दानिश पत्थर बन चुका था पूरा उसे लगा कि वो जिंदा ही नहीं है लेकिन उसने फिर भी हिम्मत दिखाते हुए कहा ,”विक्रांत……!” आज पहली बार विक्रांत उसके साथ पढ़ रहा था । विक्रांत के कहानी जारी रखी ,” उसके मरने के बाद मधुमिता को कसाईखाने में ले जाया गया क्योंकि एडवर्ड को उसकी खाल चाहिए थी। मधुमिता की खाल को छीलकर साफ करने के बाद एडवर्ड के सामने पेश किया गया और उसने वो खाल उस डायरी पे चढ़वा ली जो उसने बंजारन को देने के लिए लिखी थी। उसे लगा कि उसने अपने खून की कीमत जो कि उसने पहले पृष्ठ पर सजाने में बर्बाद किया था उसकी भरपाई हो गई। तुम्हीं बताओ उस ज़रा से खून में और एक पूरे जीवन में पूरे शरीर में इतना कम अन्तर हो सकता है ? विक्रांत ने दानिश से सवाल किया तो उसे समझ नहीं आया कि वो क्या जवाब दे ,उसने फिर वहीं सवाल किया और दानिश इस बार भी कुछ नहीं बोल पाया। तीसरी बार भी जब ये सवाल हुआ तो दानिश ने गर्दन घूमा ली और तब देखा तो उसकी चीख निकलते बची। विक्रांत अभी भी उसी तरह सफ़ेद बिस्तर पर लेटा था लेकिन उसका चेहरा ही सही-सलामत था गर्दन के नीचे की सारी खाल गायब थी। यही हाल होगा हर उस इंसान का जो डायरी को जलाने या फाड़ने की कोशिश करेगा। बिलकुल सट कर उसके कान में दीप्ति बोली। दानिश चीख पड़ा लेकिन उसकी बदकिस्मती थी कि उसके गले से आवाज नहीं निकल पायी। दानिश के चेहरे के उड़े रंग देख के दीप्ति हँस पड़ी। दानिश को लगा कि वो पागल हो जाएगा उसने अपने दोनों हाथ कान पे रख लिए । डरो नहीं मैं ही हूँ और तुम्हारे साथ भी वहीं करूँगा जो हर डायरी पढ़ने वाले के साथ करता हूँ। विक्रांत उसके दोनों कानो से उसके हाथ हटाते हुए बोला । दानिश उसे धक्का देकर दरवाजे की तरफ भागा लेकिन जब वहाँ पंहुचा तो दरवाजा कहीं नहीं था पूरे कमरे में सिर्फ दीवारे थी। वो दिवार को पीटने लगा जोर-जोर से सभी को आवाजें देकर रोने लगा। सान्या…अंकल….कोई तो सुनो …कबीर मेरे भाई…. उसकी आवाज़ रूकने लगी। पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा ,”कहानी में आगे क्या हुआ जानते हो..? ये आवाज नई थी बिलकुल नई वो पलटा देखा सामने भारी-भरकम कपड़े और गहने पहने एक खूबसूरत लगभग 17 साल की लड़की थी लेकिन उसका गदराया गोरा बदन गोरी मेमसाहबो से भी ज्यादा भरा था और उसकी आँखे शायद मेनका या रम्भा से प्रेरित होकर बनाई गई थी।उसके घुटनों तक लंबे बालों ने उसके सीने पर आवरण का काम किया हुआ था जिससे बेसलिके से कमर में खोसी हुई चुनरी का महत्त्व कम हो गया था। दानिश उसे गौर से देख ही रहा था कि पीछे से फिर विक्रांत के हँसने की आवाज़ गूंजी। दानिश ने फिर से अपने कानों को कसके बंद कर लिया। दानिश जान चुका था कि अब वो बचने वाला नहीं किसी कीमत पर लेकिन वो किसी और को कुछ नहीं होने देना चाहता था खासकर सान्या को। क्योंकि आगे कहानी में क्या हुआ उसे नहीं पता लेकिन उसके बाद से सान्या के परिवार में अधिकतर लोग जिंदा नहीं बचे। दानिश सान्या को बचाना चाहता था। एक राज जो उसने 10 सालों से खुद में छुपा कर रखा है वो यही है कि वो सान्या को बचाना चाहता है हर किसी से पहले विक्रांत और कबीर से और आज इस लाल डायरी की दुनिया से। उसने कभी किसी से नहीं कहा कि वो सान्या को चाहता है लेकिन हक़िकत यही थी। एक तरफ विक्रांत की दोस्ती थी और दूसरी तरफ सान्या से मोहब्बत। काफी वक्त तक वो समझ ही नहीं पाया कि विकी और सान्या सिर्फ अच्छे दोस्त थें इसीलिए कभी दोनों से बन ही नहीं पायी । जब उसे पता चला कि ऐसा कुछ नहीं है तबसे वो सान्या को कबीर से दूर ले जाने की कोशिशें करने लगा था और विक्रांत की मौत के बाद वो कबीर को सान्या के खिलाफ भड़का कर दोनों में दूरियां पैदा करना चाहता था और इसमें कामयाब होता भी दिख रहा था लेकिन…..
विक्रांत और तेज हँसा दानिश ने उसकी तरफ देखा विक्रांत लेटा हुआ था,विक्रांत उसके सामने था और विक्रांत हँस रहा था पूरे कमरे में जले शरीर का विक्रांत था बस। जानतें हो डायरी के आखिरी पन्ने किसके पास है? दानिश कुछ नहीं बोला बस रोता रहा, कांपता रहा। निकित ने धोखा किया यार अपनी दीपू के साथ दोनों साथ-साथ रिसर्च कर रहें थें तो उसे कुछ पन्ने चुराने की क्या जरुरत थी। जब डायरी वापस करने को कही थी उसने तो वापस कर देता ये धोखा क्यों। विक्रांत हँसा अपने कानों को हाथों से ढके रखे दानिश ने भी इस बार हँसने की कोशिश की और काफी तेज-तेज हसने लगा।
दरवाजे पर दस्तक हुई तीन-चार बार दरवाजा पीटने पर दरवाजा आप ही खुल गया। दरवाजे के बाहर सभी खड़े थें। सभी को धक्का देतें हुये दानिश हँसता हुआ भागा। इधर से उधर हाथ-पैर उछालता हुआ दानिश किसी बच्चे की तरह दौड़ लगा रहा था। दानिश के पापा और सान्या उसका नाम लेते हुए उसके पीछे भागे।
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