निदा फाजली की गजल “खुदा”
देखा गया हूँ मैं कभी सोचा गया मैं। अपनी नज़र में आप तमाशा रहा हूँ मैं मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया … Read more
देखा गया हूँ मैं कभी सोचा गया मैं। अपनी नज़र में आप तमाशा रहा हूँ मैं मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया … Read more
पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी उषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष सराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा था। प्रभात के स्पष्ट होने पर भी धुंधले प्रकाश में सड़क के किनारे आम्रवृक्ष के नीचे बालिका कुछ देख रही थी। … Read more
“माँ, मेरा बटुआ रख लेना जरा,” बटुआ थमाकर, धोती कन्धे पर डालकर किशनू नहाने चला गया। आनन्दी का मन हुआ था, कह दे; मेरे पास बटुआ मत रख किशन, नहीं तो… पर उससे कुछ भी नहीं कहा गया था। किशनू घर से अभी निकला भी नहीं था कि शंकर सामने खड़ा था : “निकाल रुपए … Read more
“सत्यानाश हो उस हरामी के पिल्ले का, जिसने ऐसी जानलेवा चीज़ बनाई!”…खाली बोतल को हिला हिलाकर शंकर इस तरह ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था जिससे कि रसोई में काम करती हुई उसकी पत्नी सुन ले | “घर का घर तबाह हो जाए, आदमी की जिन्दगी तबाह हो जाए; पर यह जालिम तरस नहीं खाती! कैसा … Read more
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है, यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है। कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए, वो घरौंदा सही, मिट्टी का भी घर होता है। … Read more
मैंने सुना है कि दुकानदार ने भले आदमी के रूप में मेरा उदाहरण दिया। मैं उदाहरण बनने से बहुत डरता हूँ। मार्क ट्वेन ने कहा है कि लोग जिस चीज से सबसे अधिक चिढ़ते हैं वह है- अच्छा उदाहरण। अच्छा उदाहरण एक बार बन जाने पर आदमी अच्छाई का गुलाम बन जाता है। मेरे एक … Read more
कुहरे की झीनी चादर में यौवन रूप छिपाये चौपालों पर मुस्कानों की आग उड़ाती जाये गाजर तोड़े मूली नोचे पके टमाटर खाये गोदी में इक भेड़ का बच्चा आँचल में सेब कुछ धूप सखी की अँगुली पकड़े इधर-उधर मँडराये । -निदा फाजली
मैं खाना बनाने की तैयारी करने लगा। पीछे से माँ ज़िद करने लगीं ‘नहीं, खाना मैं बनाऊँगी’। इस युद्ध में जीत माँ की ही होनी थी पर मैं ज़िद करके टमाटर, प्याज़, हरी मिर्च काटने लगा। “आप इतनी दूर से सफ़र करके आई हो । खाना आप ही बनाना, मैं बस तैयारी कर देता हूँ।’ … Read more
कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए। जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा, बहुत से … Read more
हमारे पड़ोस में ही एक बाल-विधवा रहती है। मानो वह जाड़ों की ओस की बूंदों से भीगी पतझड़ी हरसिंगार हो । वह सुहागरात की फूलों की सेज के लिए नहीं वरन सिर्फ देवपूजा के लिए समर्पित थी । मैं मन-ही-मन उसकी पूजा किया करता था। उसके प्रति मेरे मनोभाव कैसे थे, उन्हें मैं पूजा के … Read more