निदा फाज़ली की सुकून भरी कविता “एक बात”
उसने अपना पैर खुजाया अँगूठी के नग को देखा उठ कर ख़ाली जग को देखा चुटकी से एक तिनका तोड़ा चारपाई का बान मरोड़ा भरे-पुरे घर के आँगन में कभी-कभी वह बात! जो लब तक आते-आते खो जाती है कितनी सुन्दर हो जाती है!
उसने अपना पैर खुजाया अँगूठी के नग को देखा उठ कर ख़ाली जग को देखा चुटकी से एक तिनका तोड़ा चारपाई का बान मरोड़ा भरे-पुरे घर के आँगन में कभी-कभी वह बात! जो लब तक आते-आते खो जाती है कितनी सुन्दर हो जाती है!
लचकती डाल पे खिलता हुआ गुलाब का फूल लबों के ख़म, झुकी आँखों की बोलती तस्वीर नई नई किसी बच्चे के हाथ की तहरीर लचकती डाल पे खिलता हुआ गुलाब का फूल … Read more
बाँटने वाले उस ठरकी बूढ़े ने दिन लपेट कर भेज दिए हैं नए कैलेंडर की चादर … Read more
देखा गया हूँ मैं कभी सोचा गया मैं। अपनी नज़र में आप तमाशा रहा हूँ मैं मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया … Read more
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है, यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है। कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए, वो घरौंदा सही, मिट्टी का भी घर होता है। … Read more
कुहरे की झीनी चादर में यौवन रूप छिपाये चौपालों पर मुस्कानों की आग उड़ाती जाये गाजर तोड़े मूली नोचे पके टमाटर खाये गोदी में इक भेड़ का बच्चा आँचल में सेब कुछ धूप सखी की अँगुली पकड़े इधर-उधर मँडराये । -निदा फाजली
कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए। जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा, बहुत से … Read more
बड़ा अजीब है आजकल का प्यार, जो पल भर में हो जाता है, उस पर से … Read more
सातवें आसमान पर, चल ना ! चल! सितारों के जाल पर, चल ना ! दिल बिना देवता की कासी है जिस में हर घाट पर उदासी है। कुछ है चटका हुआ सा मुझ में भी तू भी कितने जनम से प्यासी है मेरे अश्कों के ताल पर चल ना सातवें आसमान पर, चल ना ! … Read more
ये जुबाँ हमसे सी नहीं जाती, ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती। इन फ़सीलों में वो दरारें हैं, जिनमें बसकर नमी नहीं जाती। देखिए उस तरफ़ उजाला है, जिस तरफ़ रोशनी नहीं जाती । शाम कुछ पेड़ गिर गए वरना, बाम तक चाँदनी नहीं जाती। एक आदत-सी बन गई है तू, और आदत कभी नहीं … Read more