“उम्र का फ़र्क निदा फ़ाज़ली की कविता
बहुत सारी खनकती हुई किलकारियों को सुन कर मैं किताब बंद करके कमरे से आँगन में आया लेकिन मुझे देखते ही मारिया के साथ हँसते खेलते उसके सारे नन्हे-मुन्ने साथी सहम सहम कर अपनी-अपनी शाख़ों पर वापस जाकर फिर से फूल बन गए केतकी चमेली गुलाब