कमज़ोर शिक्षा व्यवस्था की भेंट चढ़ते भारतीय छात्र।

तारीख 7 मई 2020, मिशन ऑपरेशन वन्दे भारत , मुख्य उद्देश्य विदेश में फंसे भारतीय लोगों को सही- सलामत वापस लाना।

ईस ऑपरेशन के तहत 34 लाख से भी ज्यादा भारतीयों को वापस स्वदेश लाया गया था । इन 34 लाख लोगों में आधे से अधिक सिर्फ भारतीय छात्र ही थें।      

अब मौजूदा समय में ऐसा ही एक और मिशन , ऑपरेशन गंगा चलाया गया है जिसका भी मुख्य उद्देश्य युक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की सही- सलामत घर वापसी ही है। इन दोनों ऑपरेशन्स का मोटिव भले ही एक हो लेकिन परिस्थितियां एक सामान नहीं है। वन्दे भारत तब चलाया गया था जब दुनिया में कोरोना का कहर था , और गंगा तब चलाया जा रहा है जब दुनिया में रूस का कहर छाया हुआ है। इन दोनों ऑपरेशन्स से सबसे ज्यादा लाभन्वित भारतीय छात्र ही हुए । लेकिन क्या हम उन्हें लाभन्वित कह भी सकतें हैं? क्योंकि जिन्होंने अपने सारे सपनों को खो दिया हो, जिन्होने माँ -बाप की गाढ़ी कमाई को बर्बाद होते देखा हो , जिनकी रातें सहम के गुजरी हो , जिनका दिन भारी भारी रहा हो , उनको भला क्या लाभ पहुँचा होगा ?   

वो तो बेचारे अच्छे भविष्य के लिए बढ़िया और सस्ती पढ़ाई के लिए , गए थें विदेश । उन्हें क्या पता था कि सस्ती पढ़ाई के चक्कर में उनकी जिन्दगी की कोई कीमत ही नहीं रह जाएगी , कोई भी गोली आकर उनका सीना पार कर जाएगी या कोई ब्लास्ट में उनके ख्वाब भी जलकर राख हो जाएँगे । तब पर भी ये होगा कि दो- चार संवेदनाए व्यक्त की जाई जाएँगी और फिर भूल जाया जाएगा उस जिम्मेदार को कतई कुछ नहीं कहा जायेगा जिसकी वजह से ये हुआ।   

ओह ! मैं तो भूल ही गई कि भारत में आए दिन कांड , दुर्घटनाएं, होतीं ही रहती हैं लेकिन सच में अपने आप ही होतीं हैं कोई जिम्मेदार नहीं होता , जैसे नई बनी बिल्डिंग को खड़ा खड़ा नहीं रहा गया तो वो आप ही बैठ गई , सड़क पर पड़ी गिट्टीओ और कांक्रीट का कोलतार से जी उब गया तो वो उखड़- उखड़ के आप ही बिखर गई , ऐसे में अगर कोई बस या बाइक गिर गिरा गई और लोग स्वर्ग सिधार गए तो गलती उसकी ,लोग शान्त बैठे बैठे तंग हो रहें थें तो बोलें और दंगा- दंगा खेलते हैं, इन सब में कोई जिम्मेदार नहीं होता, जबकि ये तो भारत के अंदर की बात है , तो भारत के बाहर की बात के लिए कोई कैसे जिम्मेदार हो सकता है?  

न इसके लिए हमारे यहाँ का सिस्टम जिम्मेदार हैं , न भ्रष्ट हो चुके शिक्षा विभाग या उसके अधिकारी जिम्मेदार हैं और महंगी पढ़ाई तो कतई जिम्मेदार नहीं हो सकती। ये सब बातें कतई किसी छात्र को विदेश में जाकर पढ़ने को विवश नहीं करती। 

लेकिन अगर शिक्षा व्यवस्था सही हो जाए तो….? अरे क्या करना सही करके होनहार बच्चे जा तो रहें हैं जब विदेश में पढ़ने और राहत से पढ़ भी रहें हैं ! लेकिन जो नहीं जा पा रहे वो ….? तो उनको पूरा अधिकार है अपनी पढ़ाई छोड़ के घर पे बैठ जाने का और अपना खानदानी धंधा चलाने का। और वैसे भी पढ़ाई पूरी करते ही नौकरी मिलना अपने यहाँ तो आसान नहीं है तो क्या करना भला Education system में सुधार करके । ठीक कहा ना भई!

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