सियासत को खून पीने की लत है….. वरना मुल्क में सब खैरियत है।
हमारा भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें निरंतर , सतत् हर साल कहीं ना कहीं किसी ना किसी राज्य में चुनाव होतें ही रहतें हैं , कभी पंचायती चुनाव कभी राज्यसभा चुनाव तो कभी लोकसभा चुनाव । एक चुनाव के जाते ही दूसरा चुनाव सर पर आ जाता है। ऐसे में भारतीय राजनीति के धुरंधरों को हर वक्त तैयार रहना पड़ता है, हर वक्त कुछ ऐसा करते रहना पड़ता है कि मतगणना के समय उन्हें मतों की बाट न जोहनी पड़े। ऐसा करने के लिए कभी वे किसानों के खेत में नज़र आतें हैं, कभी किसी रेप पीड़िता के घर में घुस जातें हैं, सड़को पे खड़े हो आंदोलन चलवाते हैं ,खूनी का साथ देने पहुँच जाते हैं , इतना सब तो भगवान माफ़ भी कर दे लेकिन इन लोगों की वहशीयत ये कि अपने फायदे के लिए बेकसूरों की जान लेते हैं दंगे करवाते हैं।
उनकी इस राजनीति में लोग पिसते हैं , घर जलते हैं, जिंदगी बर्बाद होतीं हैं और दंगों के साये में आस्था सूली चढ़ जाती हैं। जी वही आस्था , वही आरती , वही अजान जिसके नाम पे लाखों लोग मरने- मारने पे तुले रहते हैं , जिस्म छलनी करतें हैं एक दूसरे का , एक दूसरे की बहू-बेटियों की इज्जत से खेलते हैं , अरे इसी के नाम पे ही तो दंगे होतें हैं । मुझे तो दोस्तों आज तक समझ नहीं आया कि ये कैसी अजान है जो जान मांगती है!
दिल्ली में रमजान के इस पाक महीने में हनुमान जयंती के अवसर पर निकल रहे जुलुस पर इबादत करने के बाद पत्थर बरसाए गयें ,बिलकुल इसी तरह का पैटर्न उत्तराखंड के भवानीपुर में भी सामने आया ,कुरनूल, लोहरदगा, शिवपुरी आदि स्थानों पर भी कुछ अलग नहीं था । मुझे समझ नहीं आया कि क्या आपके अल्लाह ने आपसे ये कहा था मेरी इबादत के बाद जाकर मेरे ही बच्चों का सर फोड़ दो, मेरी ही बेटियों की इज्जत लुटो, मेरे ही बच्चों को अनाथ कर दो ! अरे ये किस अल्लाह की इबादत करतें हो आप लोग (समुदाय विशेष[लिखना पड़ा यह शब्द]) ? मैं जिस अल्लाह को जानती हूँ वो तो बिलकुल ऐसा नहीं है , नेकदिल है , रहमदिल है , हिंसा नहीं स्वीकारता , सब मनुष्यों को बराबर प्यार करता है। तो जिसके नाम पे ये दंगे हुए हैं न वो मेरा अल्लाह मेरा भगवान तो नहीं है सच कहुँ तो ऐसा अल्लाह किसी भी इंसान का नहीं हो सकता जो नफ़रत फैलाने का काम करता हो, न मोहम्मद ऐसे थें और न ही अली ।
फिर किस अल्लाह के बहकावे में आ गए आप ? कहीं ये राजनीति वाले अल्लाह तो नहीं आपके! सच कहूं तो दिल्ली कि जिस संवदेनशील गली में ये घटना घटी वहाँ महज 50 पुलिस वालों की संख्या तो यही दर्शाती हैं कि…… ऐसा सिर्फ एक जगह नहीं 15 दिनों में जहां जहां दंगे हुए हैं वहाँ वहाँ भी देखने को मिला है। तो शक तो हो ही जाता है कि आपका अल्लाह कहीं ……! बात सिर्फ एक तरफ की नहीं है वो कहतें हैं न कि ताली एक हाथ से नहीं बजती इसके लिए दोनों हाथ मिलते हैं। ठीक वैसे ही पूरा एक मोहल्ला अकेले नहीं जलता आग दोनों तरफ से सुलगाई जाती हैं। अबकी बार एक हनुमान जी के नाम पे और दूसरे अल्लाह के नाम पे आग लगाने आ गए , और जिन्होंने आग लगवाई वो कहीं ऊंची कुर्सी पे आराम से एसी में पैर फैलाके बैठे होंगे , और कुछ कमअक्ल उनके बहकावे में आ मासूम लोगों को आग में जला रहें होंगे । बेचारे हनुमान जी भी सोचते होंगे “इतनी आग तो मैंने पूरी लंका में नहीं लगायी थी जितने ये पाजी लोग मेरे नाम जगह जगह लगवा रहें हैं।” मोहम्मद साहब तो अंदर से ही कांप उठे होंगे अपने रोजेदारों को ऐसा करते देख के कहतें होंगे ” मैंने इन्हें ईमान पे चलने को कहा था ये तो इनाम पे चल रहें है।”
बस चन्द लोगो की गठजोड़ में मासूम भोले भाले लोगों कि आस्था के साथ खेला जाता हैं , उन्हें एक दूसरे के खिलाफ भड़काया जाता है , उनसे कहा जाता है उसने तुम्हारे अल्लाह को बुरा कहा इनसे कहा जाता है तुम्हारे भगवान को झूठा कहा बस इतने में ही वो लोग एक दूसरे को मरने- मारने पे उतारू हो जातें हैं , और चारों तरफ खून ही खून ,शोर ही शोर .. रमजान के पाक महीने के माथे पे कलंक लग जाता है , और खून से सनी नवरात्री , हनुमान जयंती मनाई जाती है। राजनीति जानती है कि आमलोगों के घर में एक वक्त का खाना भले ना बने लेकिन एक वक्त की अजान या आरती कतई नहीं छोड़ी जाती , आस्था इनके लिए साँस लेने जैसा हैं तभी वो दशकों से जनता की साँस के साथ ही खिलवाड़ करती है, और बेवकूफ जनता एक दूसरे पे शक ही शक करती रह जाती है कि उसने मेरा गला दबाया, नहीं उसने मेरी साँस रोकी ,परदे के पीछे बैठे शख्स जिसके हाथ में दोनों के माइंडसेट का रिमोट है उसपर दोनों का ही ध्यान नहीं जाता , और बेचारी आस्था उन लोगो की इस तिकड़म में सिसकी ले रहती है । नहीं पता कि इस जंग में किस मंदिर को किस मस्जिद को फायदा होता है पर इतना जरूर पता है कि सियासत करने वालों के मकान जरूर भरे रहतें हैं , नहीं पता आरती जीतती है कि अजान पर इतना जरूर पता है कि राजनीति जरूर जीतती है,नहीं पता कि हर दंगे के बाद पंडित ज्यादा बढ़ते है कि उलेमा , पर इतना पता है कि वोट जरूर बढ़ती हैं , नहीं पता कि इसके बाद किसके घर प्रसाद बंटता है किसके घर सहरी-इफ्तरी सजाई जाती हैं पर इतना पता हैं नेताओं के घर जरूर दावत चलती है, नहीं पता कि इस को बदलने के लिए पहले राम कदम आगे बढाएगा या रहीम मगर इतना जरूर पता है कि जो भी बढाएगा सत्ता उसके कदम ही तोड़ देगी, नहीं पता कि विमला रसोई पकाएगी या नहीं , बानो अपना चूल्हा जलायेगी की नहीं पर इतना जरूर पता है सियासत अपनी रोटी जरूर सेकेगी।
काश!इसमें से आधा उन लोगो को भी पता होता जो मस्जिद के अंदर घुसे थे या उन्हें पता होता जिन्होंने मस्जिद जैसी पवित्र जगह की छत से पत्थर बरसाए तो जो हर साल ये छोटे-बड़े दंगे करवाए जातें हैं, ये नहीं होतें। ये जो देश में जातिवाद , धर्मवाद बढ़ता जा रहा है एक समुदाय दूसरे समुदाय को नफ़रत भरी नज़रों से देखने लगा है ये नहीं होता।
कैसे समझाऊं इन बेवकूफ , जाहिल लोगो को कि ऊपरवाले के नाम पे जो नफ़रत फैलाने वाले हैं यही असली काफिर हैं यार….। थोड़ा तो समझो अब कि तब समझोगे जब देश में इंसानो से ज्यादा मंदिर-मस्जिद बेचेंगे , और उनमें आरती गाने वाला या नमाज पढ़ने वाला भी मुश्किल से मिलेगा , जब नन्हे-नन्हे बच्चों के बस्ते में किताबों की जगह गोली, असलहे मिलेंगे, जब दिवाली पे दंगा होगा और ईद पे कत्लेआम। अरे अपने बारे में नहीं तो कमसे कम आने वाली पीढ़ियों का तो सोचो कि अंधभक्ति में इतना अंधे हो गए हो की आने वाले वक्त कि गर्दिश भी नहीं देख पा रहे…?
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