धार्मिक मसले,राजनैतिक फायदे और कुछ विद्वान व्यक्तियों के विचार।

“हमारे जीवन के अंत की शुरुआत उसी दिन होने लगती है जिस दिन से हम गंभीर मुद्दों पर चुप्पी साधने लगतें हैं।” मार्टिन लूथर किंग 



 Pk movie देखी ही होगी आप लोगों ने जिसमें आमिर खान दूसरी दुनिया से आए हुए व्यक्ति के किरदार में दिखें थे। वहीं फिल्म जिसपर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगा था (हालांकि ऐसा कुछ था नहीं उस फिल्म में लेकिन अपने यहाँ की राजनीति तो सब जानतें ही ….खैर)। उस मूवी में एक सीन था जहां pk पेड़ के नीचे एक पत्थर रख देता है और उस पर पान के पत्ते से तिलक लगा देता हैं, फिर शुरू होता है वहाँ लोगों का जमावड़ा… माने कि pk का business । जिसका अर्थ ये था कि भारत में मंदिर बनाने के लिए कुछ खास नहीं बस एक पत्थर की जरुरत होती है। यानि फ्री में शुरू होकर लाखों का फायदा करवाने वाला यह एकलौता धंधा है।

मुझे ईश्वर से डर नहीं लगता क्योंकि वो कहीं नहीं है, मुझे ईश्वर को मानने वाले लोगों से डर लगता है। ” – स्टीफन हाकिंग 


अभी हाल ही में UP के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने भी इससे मिलता-जुलता कुछ कहा था सारा याद नहीं है बस काम का मैं आपको बताए दे रही हूँ कि भारत में जगह जगह पर मंदिर बनवाने के लिए कुछ विशेष प्रकार सामग्री की कोई आवश्यकता नहीं है। जिस व्यक्ति के मन में जहाँ श्रद्धा जगी वहाँ मंदिर उगा ।बिलकुल ऐसे जैसे कि ज़मीन पर अक्सर जो भूरे रंग का एक से चार इंच के बीच नाजुक सा कुछ उगता है क्या कहतें हैं उसे कुकुर…... अरे हटाओ नाम नहीं याद आ रहा समझ लो बस वहीं उग रहें हो….। लेकिन मैं यादव जी के इस बयान की सख्त निंदा करतीं हूँ ऐसे कैसे भला हम जैसे कट्टर हिन्दूओं की भावनाएं आहत कर सकते है । उनको हमारी भावनाओं की इज्ज़त करनी चाहिए थी कि बताओ हम बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे भले न जुटा सके पर मंदिर में चंदा जरूर जमा करेंगे। एक दिन खाना ना खाए लेकिन मंदिर गए है तो बिना चढावा चढाएं वापस नहीं आए हैं। उन्हें क्षमा मांगनी चाहिए कि भले ही राजनीतिक फायदे के लिए ही सही लेकिन उन्होंने धर्म को इंसानियत के ऊपर लाने की कोशिश की तो की कैसे?

हम जैसे कट्टर हिन्दू जब ज्ञानवापी के लिए ‘उपासना एक्ट 1991′ जो कि ये कहता है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था वह उसी स्वरूप में रहेगा, के खिलाफ खड़े हो गए ( समझ लो क़ानून के खिलाफ ) तो उनकी ये बयानबाजी क्या चीज़ हैं। 


राजनीति में तो ऐसी न जाने कई बयान बाजियां हुआ ही करती है हो भी क्यों न इसी के तो दम पर हमारे देश की राजनीति खाद-पानी पाती हैं , अगर ये न हो तो कुछ तुच्छ किस्म के हिन्दू-मुस्लिम लोग विकास की , प्रगति की , समृद्धि की, योजना की, नौकरी की , और पता नहीं किन किन फालतू विषयों पर बात करने लगेंगे। पहले तो चलो ये लोग 1.5 जीबी डाटा के साथ सुकून से रह रहें थे एक तो वो भी महंगा हो गया दूसरे उनके घर वाले भी उनको बेरोजगार होने के ताने देने लगे।अरे समझ नहीं आता कि कैसे माँ-बाप हैं जिनके लिए मंदिर-मस्जिद से बढ़कर अपने बेटे का भविष्य हो गया , कमअक्ल कहीं के! इतना भी नहीं सोचते मंदिर नहीं बनेगा तो उनके युवा बेटे जैसे नौजवान कहाँ खड़े होकर भीख मांगेंगे?आखिर फिर पंडित-मौलवी साहब क्या करेंगे? मैं तो इस बात कि समर्थक हूँ कि जो देश की राजनीति के लिए इतना भी नहीं करते उन्हें तो सीधा देश द्रोही करार दिया जाना चाहिए (जैसा कि कुछ लोगो सबक सिखाया ही जा चुका है।)। 

मैं ऐसे माँ बाप से हाथ जोड़कर विनती करती हूँ कि वो देश की राजनीति के प्रति थोड़ी संवेदना दिखाए स्वार्थी न बने , अपने बच्चे का भविष्य भगवान, अल्लाह ,गॉड के भरोसे छोड़ दे क्योंकि अभी अयोध्या ही हुआ है ज्ञानवापी की तो शुरुआत है मथुरा तो बाकी है ।अभी जितना शोर कमज़ोर हिन्दू-मुस्लिम लोग रोजगार ,शिक्षा , चिकित्सा जैसे मुद्दों को लेकर करेंगे उससे दुगनी तेजी से मजबूत हिन्दू-मुस्लिम लोग मंदिर-मस्जिद , अजान-प्रर्थना और इतिहास को झूठा साबित करने में लगाएंगे। क्योंकि हम जैसे कट्टर हिन्दू देशभक्त नहीं चाहेंगे कि पूरी दुनिया को पता चलें कि इंडिया में भुखमरी है , बेरोजगारी है , बीमारी है , घर की बात है आखिर। फिर हमारे राजनेता जब धार्मिक आग लगाकर भावनाओं की रोटी अपने हाथ से सेंक कर हमें खिलाते हैं तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है हम अपने दर्द को , तकलीफ को बेरोजगारी को अत्याचार को , हत्या , बलात्कार को भूल कर चुपचाप से वो रोटी साम्प्रदायिकता के आचार के साथ खा लें।

आखिर हमें भी समझना चाहिए कि धार्मिक मुद्दे उठाकर , जनता को भड़का कर , हमारी सरकार हमारा ही तो भला करती है। देखो ना अगर हम हिन्दू-मुस्लिम करके झगडे़गे नहीं मार काट कैसे होगी ?आबादी कैसे कम होगी ? अगले चुनाव में फिर किस आधार पर हम वोट देंगे ? मीडिया साल भर क्या कवर करेगी ? टीवी पर हम क्या देखेंगे ? 

ये सब बातें हमें सोचनी चाहिए क्योंकि सरकार तो हमने ही बनायीं है अपने वोट से ,अब उसे पालने-पोसना भी तो जरुरी है चाहे एक नफ़रत फैलाने वाली राजनीति को कितना ही न खून पिलाना पड़ जाए! 

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