Sexism in bollywood.

 आज के समय में हमारे समाज में एक चीज़ बड़ी कॉमन हैं और वो हैं दोगलापन। ऐसा लगता हैं की व्यक्ति अगर दो चेहरे लेकर ना जिए तो इस दुनिया में जी ही नहीं पायेगा। बड़े-बड़े उपदेश देने वाले व्यक्ति को जब अंदर से झांकते हैं तो पाते हैं वो तेरी… ये तो वैसा हैं ही नहीं जैसा बोलता हैं ! दूसरों से ये कहने वाला कि अपनी गलती स्वीकारने से कोई छोटा नहीं हो जाता जब खुद गलती करता हैं तो उस गलती को भी सही साबित करने पे तुल जाता हैं। मेरे लिए लड़के-लड़की दोनों बराबर हैं कहने वाले को जब भी भरोसा करना होता हैं तो वो लड़के पर ही दांव लगाते हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हर दूसरे व्यक्ति के अंदर एक फ्रैंक बेसेन्ट छुपा होता हैं। बात सिर्फ किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि इंडस्ट्रीज पर भी यह लागू होती हैं और सबसे ज्यादा तो बॉलीवुड इंडस्ट्री पर जो करती कुछ है और दर्शकों को दिखाती कुछ है।             

असमानता तो सभी उद्योग में व्याप्त हैं लेकिन इस ब्लॉग में बात बॉलीवुड के समानता के पीछे फैले असमानता के जाल पर है। ( यह भी पढ़े-   )                                                   – sexism in bollywood part-1                   – bollywood में रिमिक्स सांग्स…

 इन दिनों लेक्मे फैशन वीक चल रहा हैं एक से एक हसीनाएं अपनी कातिल अदाओं से दर्शकों के दिल को चुरा रही हैं, इसी फेहरिस्त में जब अपने किलर लुक के साथ रैंप पर मलाइका अरोड़ा उतरी तो उन पर लोगों की नज़र चढ़ गई। ओवरसाइज श्रग के साथ उन्होंने पर्पल कलर की मैचिंग बिकिनी पहनी थी, इतना देखना भर ही था कि बस ट्रोलर्स शुरू हो गए उम्र का वास्ता लेकर, लोग तरह-तरह के कमेंट करने लगे कि आंटी हो वैसे ही रहा भी करो, ये जबरदस्ती जवान दिखने की कोशिश कर रही है… और भी बहुत से कमेंट। 

ट्रोलर्स के इस बेहूदगी का जवाब उनके फैंस ने दिया भी लेकिन किसी बॉलीवुड सिलेब्स ने कुछ नहीं कहा। गोवा बीच पे न्यूड होकर रनिंग करने वाले 56 साल के मिलिंद सोमण को बॉलीवुड वाले फिटनेस फ्रिक कहकर बचाव करतें हैं, हर दूसरी फिल्म में शर्टलेस होने वाले 56 साल के ही सलमान खान को” उम्र तो बस एक नंबर हैं “कहके पेश वाले बॉलीवुड के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर मलाइका के बचाव में आगे नहीं आएँगे क्योंकि उनकी नज़र में 48 साल की मलाइका बूढ़ी हो चुकी हैं। अगर मलाइका भी पुरुष होती तो उनके लिए भी उम्र बस एक अंक ही होता लेकिन मलाइका महिला हैं इसीलिए वो बूढ़ी हो चुकी हैं। बॉलीवुड वालों के लॉजिक के हिसाब से देखें तो मेल एक्टर बूढ़े नहीं होते, वो रोमांस कर सकते हैं , बोल्ड पोज दे सकते हैं, एक्शन कर सकते हैं।उदाहरण आप सल्लू मियां का ही ले लें वो फिल्मों में जरीन खान, सोनम कपूर, स्नेहा उल्लाल,दिशा पाटनी जैसी न्यू हिरोइंस के साथ कास्ट किये जा सकते हैं लेकिन वहीं पर करीना कपूर खान कार्तिक आर्यन, आयुष्मान खुराना, टाइगर श्रॉफ के साथ कास्ट नहीं की जा सकती क्योंकि वो अधिक उम्र की हैं। आपको की एंड का मूवी तो याद ही होगी जिसमें करीना के अंडर अर्जुन कपूर को कास्ट किये जाने पर खूब हंगामा किया गया था कि ऐसे कैसे हो सकता हैं बड़ी उम्र की अभिनेत्री को कम उम्र के अभिनेता के साथ रोमांस करते हुए दिखाया जाये इससे क्या संदेश जाएगा हमारे समाज पर। और इस पर बॉलीवुड ने तत्काल गौर किया कि हाँ भाई ऐसा तो नहीं होना चाहिए हिरोइंस तो किसी की पत्नी, माँ, बहन और बहू होती हैं वो कैसे रोमांस कर सकती हैं? बाकी अधिक उम्र के हीरो तो किसी के बाप, भाई या पति तो होते नहीं हैं? उन्हें पूरा हक़ हैं कमसिन उम्र की हीरोइन के साथ परदे पर इश्क़ फरमाने का। 56 साल के अक्षय कुमार को आप मानुषी छिल्लर, कृति शेनन , रकुलप्रीत के साथ तो देख ही चुके हैं लेकिन क्या आपने जूही चावला,माधुरी दीक्षित जैसी हिरोइंस को राजकुमार राव, उत्कर्ष शर्मा या वरुण धवन जैसे हीरोज के साथ देखा हैं? नहीं! क्योंकि कोई उन्हें अब रोमांटिक रोल के लिए कास्ट ही नहीं करना चाहता वो अगर कमबैक भी करना चाहे तो उन्हें गजराज राव जैसे सेकंड लीड एक्टर के साथ काम करना पड़ता हैं।

जब चीनी कम मूवी रिलीज हुई तो इसकी जम के तारीफ हुई , क्या तो टॉपिक दिखाया गया है फिल्म में, ऐसी फिल्में समय-समय पर बनती रहनी चाहिए। फिल्म में क्या दिखाया गया बस इतना कि एक बाप की उम्र का पुरुष बेटी की उम्र की लड़की से शादी करना चाहता हैं और इसके लिए वो लड़की के पिता को खुश करने के लिए कुकिंग भी करता हैं। चारों तरफ चर्चाएं हुई इस बहादुरी भरी फिल्म की लेकिन इसमें बहादुरी जैसा क्या था ऐसा तो हमारे समाज में अक्सर होता रहता हैं। बहादुरी भरा तो ये तब होता जब माँ की उम्र की एक महिला से 20-22 साल का लड़का शादी करना चाहता।क्योंकि ऐसा हमारे समाज में नहीं होता। सोचिए अगर ऐसी फिल्म बनी होती तो उसकी क्या दुर्दशा होती?? 

आज की दुनिया में जहाँ gender equality पर बहुत जोर दिया जा रहा हैं वहीं फिल्म इंडस्ट्रीज में खुलेआम लड़की को अबला, दुखियारी, पुरुष पर निर्भर रहने वाली, माल, आइटम , पटाखा जैसी दिखाया जा रहा हैं। कुछ एक निर्माता-निर्देशक समाज में जागरूकता लाने के लिए “महिला प्रधान” फिल्में बनाने की कोशिश करतें हैं तो वहीं कई सारे “महिला सामान ” वाली फिल्में बनाकर सारा मामला चौपट कर देतें हैं। 

Gender equality की बेरहम हत्या आपको बॉलीवुड में सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं। यहाँ जब तक आप फेमस हीरोइन नहीं हैं तब तक हीरो भी भले ही नया क्यों ना हो आपको बराबर की फीस नसीब नहीं होगी। एक्टिंग के नाम पर आपसे पूरी उम्मीद की जाएगी की आप कैमरे के सामने भरपूर अंग प्रदर्शन करें ताकि दर्शकों की भीड़ थियेटर्स तक खींची चली आएं। यहाँ फिल्म में हिरोइंस को सिर्फ ग्लैमर के लिए लिया जाता हैं। कई बार जब कुछ फिल्मे देख के थियेटर के बाहर आतें हैं तो मन में एक सवाल आता हैं कि इसमें हीरोइन की क्या जरुरत थी? उसका बस इतना ही जवाब होता हैं कि दर्शकों का मन बहलाने के लिए। क्योंकि हमारी इंडस्ट्री की नज़र में ये बात आ ही नहीं रही की अगर स्टोरी सही होगी तो एक दमदार फीमेल कैरेक्टर एक्शन करते हुए ज्यादा हिट हो सकता हैं। लेकिन दमदार और एक्शन वाली फिल्में दुबली-पतली सी, गोरी-लम्बी छुईमुई जैसी हीरोइन को कैसे सूट करेंगी भला? एक लड़के को एक लड़की प्रोटेक्ट करती दिखें तो क्या संदेश जाएगा समाज में? एक मुँहफट, दबंग, मार-तोड़ स्पेशलिस्ट लड़की को देख समाज की लडकियां बिगड़ सकती हैं लेकिन एक मार सहती, सहमी सी लड़की को परदे पर देख उन्हें अच्छा लगता हैं। सिगरेट-शराब पीते हुए लड़कियों को objectified करने वाले लड़के परदे पर सूट करते हैं, लेकिन बीवी की हेल्प करने वाला, घर में रहकर काम करने वाला लड़का ( की एंड का) समाज में पुरुषों की गलत छवि दिखाता हैं……!

लेकिन ये भी सही हैं कि सारा दोष केवल फिल्म इंडस्ट्रीज पर नहीं डाला जा सकता कुछ दर्शक भी होतें हैं उच्च कोटि के। जिन्हें अकिरा जैसी फिल्में समझ नहीं आती, जिस्म जैसी फिल्में मुनासिब लगती हैं। चाक एंड डस्टर , नील बट्टे सन्नाटा, थप्पड़ जैसी फिल्में अच्छी नहीं लगती उन्हें हेटस्टोरी, बीए पास, कबीर सिंह जैसी मूवीज अच्छी लगती हैं। इनके लिए equality तो छोड़ ही दीजिये मेल के अलावा दूसरा gender ही नहीं होता। फीमेल को ये जेंडर नहीं सेक्स सिम्बल समझते हैं और ऐसे दर्शकों को ध्यान में रख कर अगर फिल्में बनाई जाती रहेंगी तो वो दिन दूर नहीं जब बॉलीवुड के एक्टर-एक्ट्रेस साउथ इंडस्ट्री में काम मांगते नज़र आएँगे और हिंदी फिल्में देखने बस इक्का-दुक्का लोग ही जाएँगे और अपने दोगलेपन का शिकार खुद बॉलीवुड इंडस्ट्री हो जाएगी।

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