“मुझे तुमसे मुहब्बत थी ” -निदा फाज़ली।

                    “मुझे तुमसे मुहब्बत थी ” -निदा फाज़ली।  एक ख़त  तुम आईने की आराइश में जब खोई हुई सी थीं   खुली आँखों की गहरी नींद में सोई हुई सी थीं  तुम्हें जब अपनी चाहत थी  मुझे तुमसे मुहब्बत थी ।   तुम्हारे नाम की ख़ुशबू से … Read more

“उम्र का फ़र्क निदा फ़ाज़ली की कविता

 बहुत सारी खनकती हुई किलकारियों को सुन कर मैं किताब बंद करके कमरे से आँगन में आया लेकिन मुझे देखते ही मारिया के साथ हँसते खेलते उसके सारे नन्हे-मुन्ने साथी सहम सहम कर अपनी-अपनी शाख़ों पर वापस जाकर फिर से फूल बन गए केतकी चमेली गुलाब