हिमालय के पथिक”जयशंकर प्रसाद की रचना

 ‘गिरी-पथ में हिम वर्षा हो रही है, इस समय तुम कैसे यहाँ पहुंचे? किस प्रबल आकर्षण से तुम खिंच आये?’ खिड़की खोलकर एक व्यक्ति ने पूछा। अमल-धवल चन्द्रिका तुषार से घनीभूत हो रही थी। जहाँ तक दृष्टि जाती है, गगनचुम्बी, शैल-शिखर, जिन पर बर्फ का मोटा लिहाफ पड़ा था। ठिठुरकर सो रहे थे। ऐसे ही … Read more

मोची और शैतान- चेखव।

 क्रिसमस का दिन था, सांझ ढल चुकी थी । मारिया भट्ठी पर बहुत देर से खर्राटे भर रही थी। लैम्प का सारा कैरोसिन जल चुका था, पर फ्योदर नीलोव अभी तक बैठा काम कर रहा था। उसका बहुत मन कर रहा था कि काम बन्द कर दे और बाहर जाये, पर दो हफ़्ते पहले कलाकोलनी … Read more

निदा फाजली की गजल “खुदा”

 देखा गया हूँ मैं कभी सोचा गया मैं।                                  अपनी नज़र में आप तमाशा रहा हूँ मैं                              मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया      … Read more

साल 2022 से क्या हमने क्या सीखा?

 नए साल को अब कुछ ही टाइम बचा है लोगों की घड़ी ने काउन्टडाउन करना शुरू कर दिया है,डायरियों ने अपने भीतर नए-नए वादें रखनें शुरू कर दिए हैं,पार्टी की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रहीं हैं। सभी नए साल के स्वागत में पलकें बिछाएं बैठें हैं। लेकिन इन सब के बीच हमें ये भी तो … Read more

जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानी दुखिया

 पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी उषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष सराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा था। प्रभात के स्पष्ट होने पर भी धुंधले प्रकाश में सड़क के किनारे आम्रवृक्ष के नीचे बालिका कुछ देख रही थी। … Read more

बड़े कमज़ोर होते हैं मजबूत दिखने वाले ये लोग।

 24 दिसम्बर को जब सभी नई उम्मीद, नई आशा के साथ जीवन में कुछ नया मिलने की आहट से खुश होकर सेंटा का इंतजार कर रहें होतें हैं, ठीक उसी दिन टीवी इंडस्ट्री की जानी-मानी अभिनेत्री तुनिशा शर्मा ने अपनी सारी उम्मीदें खोते हुए अपने मेकअप रूम में सुसाइड कर लिया वो भी तब जब … Read more

औरत के हर कपड़े से मर्द को ऐतराज क्यों हैं?

 कुछ वक्त पहले प्रोग्रेसिव सोच के कुछ समझदार एवं जागरूक लोगों को इस बात पर बड़ा ऐतराज था कि भारत जैसे विकासवादी देश में महिलाओं पर बुरका या हिजाब थोपना बिलकुल भी सही नहीं हैं। आज जब दूसरे देश चाँद पर पहुँच रहें हैं उस वक्त हम महिलाओं को बुर्के में कैद रखने की कोशिश … Read more

मन्नू भंडारी की रचना- नशा, अंतिम भाग।

 “माँ, मेरा बटुआ रख लेना जरा,” बटुआ थमाकर, धोती कन्धे पर डालकर किशनू नहाने चला गया। आनन्दी का मन हुआ था, कह दे; मेरे पास बटुआ मत रख किशन, नहीं तो… पर उससे कुछ भी नहीं कहा गया था। किशनू घर से अभी निकला भी नहीं था कि शंकर सामने खड़ा था : “निकाल रुपए … Read more

मन्नू भंडारी की रचना- नशा

 “सत्यानाश हो उस हरामी के पिल्ले का, जिसने ऐसी जानलेवा चीज़ बनाई!”…खाली बोतल को हिला हिलाकर शंकर इस तरह ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था जिससे कि रसोई में काम करती हुई उसकी पत्नी सुन ले | “घर का घर तबाह हो जाए, आदमी की जिन्दगी तबाह हो जाए; पर यह जालिम तरस नहीं खाती! कैसा … Read more

आकाश से पथराव – दुष्यन्त कुमार की कविता

 रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है,                       यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है।  कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए,                         वो घरौंदा सही, मिट्टी का भी घर होता है।  … Read more